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पान के कद्रदानों! अपने प्रिय पान की कहानी भी जानो

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
April 9, 2022
in ज़रूर पढ़ें, ज़ायका, फ़ूड प्लस
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पान के कद्रदानों! अपने प्रिय पान की कहानी भी जानो
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हमने मंगाई सुरमेदानी, ले आया ज़ालिम बनारस का ज़र्दा
अपनी ही दुनिया में खोया रहे वो, हमरे मन की न पूछे बेदर्दा
पान खाए सैयां हमारो, सांवरी सूरतिया होंठ लाल लाल
हाए हाए मलमल का कुर्ता, मलमल के कुरते पे छींट लाल लाल…
तो आप समझ गए न कि आज की हमारी-आपकी बातचीत होगी पान पर!

 

बात पान की हो और बॉलिवुड की न हो, ये तो ज़रा मुश्क़िल ही है. बॉलिवुड ने पान को जैसे घर-घर से उठाकर सुनहरे परदे की चमक तक पहुंचाया है, वो तो सब जानते ही हैं. अब आप सोच रहे होंगे ज़्यादातर चीज़ें तो सुनहरे परदे से प्रसिद्धि पाकर घर-घर तक पहुंच जाती हैं… यूं तो बात एकदम सही भी है पर पान के मामले में, मामला उल्टा है. पान पहले से ही हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है. बॉलिवुड ने तो उसे वो चमक दी कि वो लोग उसे खाने के साथ गुनगुनाने भी लगे. आप ही बताइए,“खई के पान बनारस वाला” बजाए बिना कौन-सा बैंड बाजे वाला वापस जाता है? या कौन-सा देसी उत्सव पूरा होता है? तीसरी कसम की वहीदा रहमान जब पान खाए सैयां गाती हैं तो क्या लोग अपना दिल हार नहीं बैठते?
गप्प और गिलौरी (तिकोना मसाले भरा पान) हमारी हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है और ये सिर्फ़ चौराहे पर ही नहीं होता था, बल्कि घरों में भी बकायदा पानदान हुआ करते थे, सरौते हुआ करते थे. घर में पान बनाए, खाए जाते थे और साथ में होती थीं दुनियाभर की बातें, बतकहियां और क़िस्से.
किसी काम का बीड़ा उठाना बड़ी बात मानी जाती रही, वो काम कुछ भी हो सकता था किसी की बेटी की शादी की तैयारियों से लेकर किसी की हत्या करने तक हर काम के बीड़े भी तो उठाए जाते थे.
खाना हज़म करना हो या बात, हर जगह पान का सहारा लिया जाता रहा. औरतों के सोलह श्रृंगार में पान चबाकर होंठों को लाल किया जाता था.

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इतिहास में पान: पान का उद्गम 5000 साल से भी पुराना माना जाता है हालांकि इसे भारतीय ही माना जाता रहा है, पर ये कहा जाता है कि ये जावा, सुमात्रा और श्रीलंका जैसे देशों से भारत आया. रामायण में पान के पत्ते का उल्लेख मिलता है जब सीता जी अशोक वाटिका में हनुमान जी को पान की माला भेंट करती हैं. वहीं महाभारत में भी अर्जुन जब नाग लोग जाते हैं तो पान का उल्लेख मिलता है. अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में भी ताम्बूल अर्थात पान का उल्लेख मिलता है. फ़ूड हिस्टोरियन के टी आचार्य की किताब फ़ूड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया में उल्लेख है कि 12 वीं सदी में, जब मार्को पोलो भारत आया तो उसने अपनी किताब में लिखा कि उसने देखा कि यहां के लोग ताम्बुल नाम की एक पत्ती हमेशा चबाते रहते हैं और एक तरह का तरल पदार्थ दिनभर थूकते हैं. चौदहवीं सदी में इब्ने बतूता ने भी दिल्ली सल्तनत का उल्लेख करते हुए साथ में पान का उल्लेख किया है.
आयुर्वेद के कई प्राचीन ग्रंथों में भी पान का प्रयोग औषधि के रूप में किए जाने का उल्लेख मिलता है. इसके साथ खाए जाने वाले चूना और सुपारी के साथ पान का कॉम्बिनेशन शरीर के लिए लाभकारी माना जाता रहा है.

कैसे खाया जाता है: आमतौर पर घरों में पान, चूना, सुपारी और सौंफ के साथ खाया जाता रहा है. कुछ लोग इसके साथ कत्था भी खाते रहे. बनारसी पान सबसे ज़्यादा फ़ेमस रहा है. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि अलग-अलग जगह की पान की पत्ती में भी अलग-अलग स्वाद होता है. बनारस और मद्रास का पान अच्छे पानों में गिने जाते हैं. बाद के समय में इसमें गुलकंद, इलाइची, खोपरा, बूरा, हेमामालिनी, चेरी, रसगुल्ला जैसे आइटम भी मिलाए जाने लगे.

यादों में पान: पान हमारे बचपन में हर दिन का हिस्सा रहा है. जब नानाजी के घर जाते थे हम बच्चों की टोली शाम को पान की दूकान पर मीठा पान बनवाने पहुंच जाती थी. हालांकि हमारे पान में चूना नहीं लगाया जाता था बस थोड़ी गुलकंद थोड़ी सौंफ और बच्चों वाला पान तैयार… वो वक़्त आज भी ठीक उसी तरह आंखों में बसा हुआ है!
भोपाल के पानी के लिए कहा जाता रहा कि वहां कैल्शियम की कमी है और वहां लोगों के शरीर में भी कैल्शियम की कमी रहती थी. वहां के डॉक्टर भी लोगों को घर में पान-चूना रखने की सलाह दिया करते थे, ताकि दोपहर और शाम के खाने के बाद पान में थोड़ा चूना लगाया जाए और चबाया जाए, ताकि शरीर में कैल्शियम की कमी न रहे.
पुराने भोपाल में तो मुंह में बिना पान रखे बात करते कम ही लोग देखे जा सकते थे और न जाने कितने घरों में सुपारदान, पानदान देखे जा सकते थे.
आज की बात करें तो बरसों हुए पान खाए, पर अब भी जब कैल्शियम सप्लिमेंट लेना पड़ता है तो एक बार मन से आवाज़ आ ही जाती है कि इससे तो अच्छा होता कहीं से पान और चूना ले आते और रोज़ खा लेते कि ये कैल्शियम की गोलियां न खानी पड़तीं.
घर में कोई पूजा-पाठ हो या कथा-उत्सव हो, पान के बिना पूरा नहीं होता. कपूर जलना हो तो आरती की थाल में पान रखा जाता है, स्वस्तिक बनाना हो पान याद आता है, गणेश जी के लिए आसन रखना हो तो भी पान याद आता है. यहां तक कि बरसों तक पान की डिज़ाइन वाले कपड़े भी लोग बनवाते, पहनते रहे हैं. छोटी-सी दिखने वाली ये पत्ती भारतीयों के जीवन में गहरे तक उतरी हुई है…
अब तो बस कहीं पान फ़्लेवर वाली गोली मिल जाती है या पान फ़्लेवर की आइसक्रीम तो उसे देखकर ही मन खुश हो जाता है!

फ़ोटो: गूगल

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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