कोविड महामारी के मद्देनज़र केंद्रीय व राज्य के शिक्षा मंत्रालयों ने ग्यारहवीं कक्षा तक की परीक्षाएं कैंसिल कर दी हैं, जबकि 12वीं की परीक्षाओं को आगे धकेलते हुए जून माह में स्थितियों के आधार पर आकलन करते हुए कराने का फ़ैसला लिया जाएगा, यह बताया है. देर-सबेर जब ये परीक्षाएं होंगी तो विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र तक जाकर ही इम्तहान देने होंगे. ऐसे में छात्रों को और परीक्षा आयोजित करने वाले स्टाफ़ व शिक्षकों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सिनेशन दिलवाना सरकार का पहला कर्तव्य होना चाहिए.
कोविड-19 महामारी के दौरान हर क्षेत्र की तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं. स्कूली शिक्षा की बात करें तो सरकार ने ग्यारहवीं कक्षा तक की परीक्षाएं रद्द कर दी हैं, जबकि बारहवीं कक्षा के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता. क्योंकि इस कक्षा में छात्रों के अंकों के आधार पर उन्हें उच्च-शिक्षा के लिए कॉलेज में आवेदन करने होते हैं, ताकि वे ग्रैजुएशन के लिए दाख़िला ले सकें. यहां से हमारे युवाओं के भविष्य की शुरुआत होती है, उनका करियर टिका होता है. यही वजह है कि सरकार ने जून के महीने में स्थितियां देखते हुए परीक्षाओं की तारीख़ की घोषणा का मन बनाया है.
जब भी ये परीक्षाएं आयोजित होंगी बारहवीं के छात्रों को परीक्षा केंद्रों में जाकर परीक्षा देनी होगी. बारहवीं के छात्रों की उम्र 17 से लेकर 18 वर्ष के बीच होती है और हाल ही में केंद्र/राज्य सरकार ने 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के वैक्सिनेशन की घोषणा कर दी है, लेकिन वैक्सीन की कमी के कारण 18 से 44 वर्ष की उम्र के लोगों को कहीं भी वैक्सीन नहीं दी जा रही है. ऐसे में बारहवीं में पढ़ रहे छात्रों के माता-पिता चिंतित हैं, क्योंकि इनकी परीक्षाएं भले ही पोस्टपोन की गई हैं, लेकिन वे जब भी आयोजित की जाएंगी, इन बच्चों को परीक्षा केंद्रों पर जाना ही होगा. परीक्षा केंद्रों पर जाना, सारी सावधानियों को पालन करते हुए जाने के बाद भी, उन्हें इस बीमारी के लिए एक्स्पोज़ तो करेगा ही. यदि इन छात्रों का वैक्सिनेशन नहीं हुआ होगा तो इन्हें कोविड होने का ख़तरा बना रहेगा. अब चूंकि सरकार ने 2 वर्ष तक के बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल की बात शुरू कर दी है, सरकार को चाहिए कि देशभर में 12 वीं कक्षा में पढ़ रहे बच्चों (चाहे वे 17 वर्ष के ही क्यों न हों!) का भी प्राथमिकता के आधार पर वैक्सिनेशन करवाए. क्योंकि कॉलेज में जाने के लिए 12 वीं की परीक्षाएं ऑफ़ लाइन ही करवानी होंगी.
यह काम बहुत कठिन इसलिए नहीं है कि हर स्कूल के पास अपने बच्चों के नाम, उम्र, फ़ोन नंबर आदि की सूची होती है. स्कूलों से इनके बारे में सूची प्राप्त कर सरकार स्कूलों को ही वैक्सिनेशन सेंटर में तब्दील करते हुए इन बच्चों का आसानी से वैक्सिनेशन करवा सकती है. ये बच्चे जो देश का भविष्य हैं, उनके स्वास्थ्य के लिए सरकार को यह कदम यथाशीघ्र उठाना चाहिए, ताकि परीक्षाओं की तारीख़ की घोषणा से पहले हर छात्र को कम से कम वैक्सीन की एक डोज़ लग चुकी हो और उनके संक्रमित होने का ख़तरा कम से कम हो. छात्रों के अलावा स्कूलों से परीक्षाओं में बतौर पर्यवेक्षक नियुक्त किए जानेवाले शिक्षकों की सूची मांगकर उन्हें भी वैक्सीन दिया जाना चाहिए और ये दोनों ही काम स्कूल परिसर को वैक्सिनेशन केंद्र बनाकर एक या दो दिन सम्पन्न कराए जा सकते हैं.
यदि पिछले वर्ष का आंकड़ा देखें तो देशभर में 12 वीं कक्षा की परीक्षा के लिए कुल 14,433,107 छात्रों ने पंजीयन कराया था, जिसमें से 1,100,000 छात्र सीबीएसई के, 74,544 छात्र आईएससी के और शेष अन्य राज्य सरकारों के बोर्ड के थे. पूरे देश में इस वर्ष भी यह आंकड़ा कमोबेश 1 करोड़ 40 लाख के आसपास ही बैठेगा और ऐसे में यदि इन छात्रों को बिना वैक्सीन दिए परीक्षा केंद्रों में बुलाकर परीक्षाएं ली जाती हैं तो यह क़दम डिज़ास्टर साबित हो सकता है. अत: केंद्रीय शिक्षा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री सहित हर राज्य के शिक्षा मंत्री व स्वास्थ्य मंत्री को चाहिए कि 12 वीं के छात्रों के वैक्सिनेशन पर अपना ध्यान केंद्रित करें. और एक वैक्सिनेशन ड्राइव केवल 12वीं के छात्रों और शिक्षकों के लिए ही चलाई जाए. इस तरह हम एक बड़े समूह को वैक्सीन देने में भी क़ामयाब होंगे और इन छात्रों, शिक्षकों व सपोर्टिंग स्टाफ़ को सुरक्षा कवच देने में भी सफल होंगे.
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