पंकज सुबीर के काव्य संग्रह का शीर्षक ‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’- महज़ एक भावनात्मक आग्रह नहीं है, बल्कि जीवनदृष्टि का उद्घोष है. शैलेन्द्र शरण बता रहे हैं कि इस काव्य संग्रह कविताएं अपेक्षाकृत छोटी और गहन हैं. कहीं-कहीं उनमें सूक्तियों जैसी संक्षिप्तता है तो कहीं गद्यात्मक विस्तार. यह विविधता संग्रह को एकरूपता से मुक्त कर देती है और पाठक को ताज़गी का अनुभव कराती है.
पुस्तक: उम्मीद की तरह लौटना तुम
विधा: कविता संग्रह
लेखक: पंकज सुबीर
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन
मूल्य: 300 रुपए
पंकज सुबीर का कविता संग्रह ‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’ एक ऐसे समय में आया है, जब साहित्य और विशेषकर कविता से समाज की अपेक्षाएं लगातार बढ़ी हैं. उपभोक्तावादी संस्कृति, तकनीकी शोर और राजनीतिक-सामाजिक जटिलताओं के बीच कविता अपने लिए न केवल एक स्थान तलाश रही है, बल्कि मनुष्य के भीतर छिपी संवेदनाओं को जगाने का कार्य भी कर रही है. पंकज सुबीर का यह संग्रह इन्हीं मानवीय संवेदनाओं, रिश्तों, पीड़ा और पुनर्जीवन की आकांक्षा का दस्तावेज़ है.
‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’- यह शीर्षक भावनात्मक आग्रह नहीं है, बल्कि जीवनदृष्टि का उद्घोष है. यहां ‘उम्मीद’ का प्रतीक बहुआयामी है. यह संग्रह विछोह और संघर्ष के बाद पुनः उठ खड़े होने और भविष्य के प्रति आस्था का एक आयाम है. पंकज सुबीर की आत्मीय भाषा, व्यक्तिगत संघर्ष के बावजूद लोक-संवेदना से संपन्न है. वे कठिन शब्दावली या जटिल बिंबों में कविता को उलझाते नहीं, बल्कि सहज-सरल भावों के माध्यम से पाठकों के हृदय तक पहुंचते हैं. शैली संवादात्मक है, जिसमें बातचीत करते हुए वे सभी को अपने साथ समेट लेते हैं. उनकी कविताओं में गद्य-कविता का आभास वर्तमान आधुनिक हिंदी कविता की एक प्रमुख प्रवृत्ति है.
इस संग्रह में कई स्तरों पर विषयों का विस्तार स्पष्ट होता है. आत्मीय रिश्ते और प्रेम को वे निजी अनुभव के रूप में नहीं, बल्कि मानवीय अस्तित्व के सार के रूप में देखते हैं. प्रेम के बिना जीवन अधूरा है और उसकी वापसी ही ‘उम्मीद की तरह लौटना’ है. कविताओं में समकालीन समाज की विडंबनाएं, अन्याय और विषमताएं भी उपस्थित हैं. लेकिन कवि केवल निराशा व्यक्त नहीं करता, वह समाधान की दिशा में उम्मीद जगाता है.
प्रकृति के माध्यम से जीवन और संवेदना की गहराई को पकड़ना उनके साथ आत्मसात होना इस किताब की बहुधा कविताओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है. प्रकृति कविताओं में प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि आत्मीय साथी की तरह आती है. इन कविताओं में समय-समय पर पंकज सुबीर आत्म से संवाद करते है, जो पिता की अचानक अनुपस्थिति से उपजे प्रश्नों के उत्तर पा लेने की गहन आकांक्षा है. यह संवाद जीवन के मूल प्रश्नों जैसे मृत्यु, अस्तित्व, समय, स्मृति तथा भविष्य के लिए चिंतन की ओर ले जाता है.
संग्रह की कविताओं में एक प्रमुख गुण उनकी संवेदनात्मक गहराई है. वे मामूली-सी घटना या भाव को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि वह बड़े जीवन-दर्शन में बदल जाता है. उदाहरण के लिए, बिछोह की पीड़ा को वे केवल आंसू और दर्द तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उसे पुनः मिलन और लौटने की आशा में ढाल देते हैं. उनका भाव-संसार एक तरलता लिए हुए है, जहां व्यक्तिगत दुख भी उनकी कविताओं में आकर सामूहिक अनुभव बन जाता है.
इस संग्रह में संबंधों की गरिमा और उनकी संवेदनाओं को विशेष स्थान मिला है. लेकिन यह संवाद केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे समाज में रिश्तों की उपस्थिति और उसकी भूमिका का भी सम्मान करता है. कवि इस रिश्ते को ‘उम्मीद’ के रूप में देखता है तथा जीवन में उजास और कोमलता लाने वाली शक्ति के रूप में भी.
पंकज सुबीर की कविताएं अपेक्षाकृत छोटी और गहन हैं. कहीं-कहीं उनमें सूक्तियों जैसी संक्षिप्तता है, तो कहीं गद्यात्मक विस्तार. यह विविधता संग्रह को एकरूपता से मुक्त कर देती है और पाठक को ताज़गी का अनुभव कराती है. कविताओं का विचार और भाव का प्रवाह, बांधे रखता है.
आज के समय में जब समाज हिंसा, अविश्वास और विघटन की ओर बढ़ रहा है, तब कविता का दायित्व है कि वह मनुष्य में मनुष्यता को बचाए रखे. पंकज सुबीर की कविताएं यही करती हैं. वे बार-बार कहती हैं कि निराशा की कोई अंतिम मंज़िल नहीं है, बल्कि आशा ही जीवन का स्थायी सत्य है. यही कारण है कि उनका काव्य-स्वर समकालीन परिदृश्य में सार्थक और प्रासंगिक है.
संग्रह को पढ़ते हुए हम एक आत्मीय यात्रा पर निकल जाते हैं. अपने खोए हुए रिश्तों को याद करते हैं, कभी वर्तमान समाज की जटिलताओं से रू-ब-रू होते हैं, अंततः एक उजाले की ओर लौटते हैं. संग्रह की यह एक बड़ी उपलब्धि है कि वह भीतर तक छू लेता है और विचार मंथन के लिए प्रेरित करता है.
‘उम्मीद की तरह लौटना तुम’ केवल कविताओं का संग्रह नहीं, बल्कि एक मानसिक-आध्यात्मिक यात्रा है. यह जीवन के अंधकार में एक मद्धम लौ में जलते दीपक की तरह है, जो आश्वस्त करता है कि चाहे कितनी ही कठिन घड़ियां आएं, मनुष्य अंततः उम्मीद और प्रेम की ओर लौटेगा. पंकज सुबीर की कविताएं पाठक के भीतर छिपी आर्द्रता को जागृत करती हैं और एक बेहतर मनुष्य बनने का आह्वान करती हैं.
यह संग्रह हिंदी कविता की परंपरा में उम्मीद, प्रेम और मानवीय संवेदना के स्वर को और प्रखर करता है. यह संग्रह आग्रह करता है प्रत्येक कठिनाई, हर विफलता और सर्वथा अंधेरे के बाद ‘उम्मीद की तरह’ हमें लौटना ही होगा. यह संग्रह इसलिए भी सार्थक है कि यह कविता से सिर्फ़ सौंदर्य नहीं, बल्कि जीवन का साहस और दिशा पाने के लिए भी प्रेरित करता है.