करीना कपूर की डायटीशियन के तौर पर फ़ेमस रुजुता दिवेकर पारंपरिक व स्थानीय खानपान की पुरज़ोर वक़ालत करती हैं. सेलेब्रिटी यानी ख़ास लोगों की डाइटीशियन मानी जानेवाली रुजुता ने डायट से जुड़ी तमाम आम ग़लतफ़हमियां दूर करने की कोशिश की.
रुजुता दिवेकर का मानना है कि हमें हर वह चीज़ खानी चाहिए जो सदियों से हमारे पूर्वज खाते रहे हैं. उनके अनुसार भारतीयों को अपने खानपान में घी, दही, दूध, शक्कर और शहद ज़रूर शामिल करना चाहिए. रुजुता मानती हैं कि यदि उनकी ज़िंदगी में करीना कपूर न होतीं तो वे आज इतना बड़ा नाम न होतीं.
आप एक जानीमानी डायटीशियन हैं. बेस्ट सेलिंग बुक्स की लेखिका हैं. बावजूद इसके आज भी आपकी सबसे बड़ी पहचान करीना कपूर की डायटीशियन की है. करीना कपूर का आपके लिए क्या मायने रखती हैं?
मैं वर्ष 2007 से ही करीना के साथ काम कर रही हूं. उन्हें अपनी फ़िल्म टशन के लिए बिकिनी लुक पाना था. जब आप किसी के साथ काम कर रहे होते हैं तो आपको सबसे पहले उनके बारे में फ़िज़ियोलॉजी, न्यूट्रिशन साइंस, ऑर्गोनॉमिक के बायोमेकेनिक की तरफ़ ध्यान सोचते हैं. वह आपके लिए रेग्युलर इंसान की तरह हो जाता है. चूंकि करीना बड़ी विनम्र हैं इसलिए उनके साथ काम शुरू करने के बाद मुझे कुछ अलग-सा नहीं लग रहा था. बाद में जब लोगों का मेरी ओर देखने का नज़रिया बदल गया, तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी बड़ी शख़्सियत के साथ काम कर रहे हूं. आपका काम वही रहता है, पर जब आप करीना कपूर के साथ काम करते हैं तो लोगों की नज़रों में आपके काम की वैल्यू बढ़ जाती है. मुझे लगता कि यदि मैंने करीना से न जुड़ती तो आज मैं जितनी सफल हूं, उसका दसवां हिस्सा भी न होती. भारतीय खानपान के बारे में मैं आज जो जानकारियां लोगों तक पहुंचा पा रही हूं, उसका रास्ता भी करीना से ही होकर जाता है, क्योंकि दस साल पहले यदि आप किसी से कहते कि घी खाना चाहिए, क्योंकि यह फ़ैट बर्निंग है तो कोई भी नहीं मानता. लेकिन जब लोगों ने इसका करीना कपूर पर प्रभाव देखा तो उन्हें यह स्वीकार करने में आसानी हुई.
करीना के जुड़ा सवाल, जो लोग आपसे सबसे ज़्यादा पूछते हैं?
(हंसते हुए) करीना कपूर रात में दाल-चावल खाती हैं या नहीं! मेरा जवाब होता है बिल्कुल खाती हैं. यही कारण है 10 साल से ज़्यादा समय से उन्होंने ख़ुद को मेंटेन रखा है. यदि आप अपने खानपान में कंसिस्टेंसी मेंटेन नहीं रखते तो आप कभी मोटे तो कभी पतले दिखते हैं, जबकि करीना हमेशा एक जैसे शेप में रही हैं.
लोगों में डायट से जुड़ी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी क्या है?
भारत में लोगों के दिमाग़ में यह बात बैठा दी गई है कि जो भी इंडियन खाना है, वह ग़लत है. लोगों को लगता है कि हमें दाल-चावल नहीं खाना चाहिए, पर यह तो हमारे देश का पारंपरिक खानपान है. लोग यह सोचते हैं कि घी खाने से वे मोटे हो जाएंगे, चावल से मोटे हो जाएंगे. आम और केला खाने से मोटे हो जाएंगे. अचार और पापड़ खाने से मोटे हो जाएंगे. यानी जितनी भी चीज़ें हमारे यहां पारंपरिक रूप से खाई जाती रही हैं, वह सब मोटापा बढ़ानेवाली हैं. हम क्या खाकर पतले हो जाएंगे? ओट्स, मारी बिस्किट्स, डायजेस्टिव बिस्किट्स, सूप, सैलेड, कीन्वा… हमें लगातार यह बताया जाता रहा है कि हम जितना बाज़ारू खाएंगे, हमारे पतला होने का चांस उतना ज़्यादा बढ़ जाएगा, पर हक़ीक़त इसके बिल्कुल उलट है.
तो हमें खाना क्या चाहिए?
पिछले तीस सालों से हमारे यहां खाने को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फ़ैट इन तीन भागों में विभाजित करके सोचा जाने लगा है. जब तक हम इस तरह सोचेंगे, तब तक हमें किसी दिन प्रोटीन से दूर रहना होगा, किसी दिन कार्बोहाइड्रेट और तो किसी दिन फ़ैट से. लेकिन जो प्राकृतिक फ़ूड है, उसमें ये तीनों चीज़ें रहती हैं. हम अच्छी सेहत तभी मेंटेन रख पाएंगे जब हम लोकल, सीज़नल है और पारंपरिक चीज़ें खाएंगे. तब हमें हर तरह के न्यूट्रिएंट्स भी मिल जाएंगे.
आजकल बहुत सारा हिडन हंगर ग्रो हो रहा है. यानी ऐसे लोग जिनके पास खाने के लिए काफ़ी है, पर उसके बावजूद उनमें विटामिन बी १२, विटामिन डी, हीमोग्लोबिन, आयरन की समस्या होती रहती है. वह इस वजह से होती है कि हमें पारंपरिक रूप से जिस तरह खाना पकाना चाहिए हम पकाते नहीं हैं. पकाया तो खाने से डरते हैं. खाते भी हैं तो उनके साथ पारंपरिक रूप से जो चीज़ें खानी चाहिए, वो नहीं खाते हैं. हमें उस खाने से जो पूरा न्यूट्रिशन मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता.
आपकी नई किताब प्रेग्नेंसी नोट्स में रीडर्स को नया और अनूठा क्या है?
आजकल गूगल पर प्रेग्नेंसी से जुड़ी सलाहें आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन गूगल पर जो जानकारियां मिलती हैं, वह हमारी संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप नहीं होतीं. वहां खाने-पीने की जो चीज़ें बताई गई होती हैं, उन्हें ढूंढ़ना पड़ता है कि यह चीज़ कहां मिलेगी. यदि आप प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ नया या अनोखा ट्राई करते हैं तो सबसे पहली बात वह सेफ़ नहीं होता और दूसरी बात हमारे पास इसका प्रमाण नहीं होता कि वह चीज़ें काम करती भी हैं या नहीं. मैंने अपनी किताब में जो चीज़ें बताई हैं, उनके बारे में प्रमाण के साथ बताया है. इसमें हर ट्राइमिस्टर के बारे में खानपान से संबंधित जानकारी दी गई है. हमारे देश में हर ट्राइमिस्टर के अलग से स्पेशल फ़ूड हैं. मैंने इस किताब में उनके बारे में लिखा है. यह आधुनिक महिलाओं को देश के पारंपरिक ज्ञान से रूबरू कराती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान क्वालिटी नींद लेने के तरीक़ों के बारे में बताया है और हर ट्रायमिस्टर के लिए अलग-अलग एक्सरसाइज़ेस भी.
इस किताब की प्रेरणा आपको कैसे मिली?
मुझे करीना के प्रेग्नेंट होने के बाद इस किताब की प्रेरणा मिली. जब करीना प्रेग्नेंट हुईं, तैमूर पैदा हुआ, उसके बाद करीना ने जो वेट लॉस किया उसके बारे में प्रेस में दोबारा लिखा जाने लगा. फिर मुझे करीना ने कहा कि तुम्हें इस बारे में किताब लिखनी चाहिए कि मैंने प्रेग्नेंसी के दौरान क्या खाया और कैसे मेरा वज़न इतनी जल्दी घटा. करीना चाहती थीं कि उनके फ़ैन्स तक सही बात पहुंचे. मेरी पहली किताब लूज़ योर वेट, डोंट लूज़ योर माइंड भी करीना का ही आइडिया था.
आप लोगों को घी और लड्डूह खाने के लिए कहती हैं. असल ज़िंदगी में ख़ुद कितना घी और लड्डू खाती हैं?
बहुत खाती हूं. जैसे रात की बनी हुई भाकरी सुबह नाश्ते में खाती हूं. उसके ऊपर घी और चटनी लगा लेती हूं. मेरा मानना है कि हमें घी हर फ़ॉर्म में खाना चाहिए, कच्चा, तड़के के रूप में, लड्डून, हलवा, बर्फ़ी जैसे तरीक़ों से. घी खाने से त्वचा और बाल अच्छे रहते हैं. जॉइंट्स मज़बूत रहते हैं. घी ऐंटी एजिंग भी है. यह फ़ैट लॉस में भी काफ़ी मदद करता है. आजकल विटामिन बी १२ की कमी बहुत आम हो गई है. यह समस्या घी न खाने की वजह से होती है. घी हमारे शरीर के लिए बहुत ज़रूरी फ़ैट है. यदि आप घी खाते हैं तो फ़ैट सोल्यूबल विटामिन्स, जैसे-विटामिन ए, बी, ई, के आदि आपके शरीर को मिल पाते हैं. यदि आप केवल विटामिन बी खाते हैं तो आपको कोई फ़ायदा नहीं होता, क्योंकि उसको इंसानी शरीर में अवशोषित करने के लिए जो मॉलिक्यूल्स लगते हैं, आपके पास वही नहीं होते, क्योंकि आप घी जैसे ज़रूरी फ़ैट्स नहीं खाते.
आप ताज़ा पका और घर पर बना खाना खाने की बात करती हैं, पर इन दिनों वर्किंग लड़कियों के पास समय की कमी है. उनके लिए कोई सलाह…
मैं उन लड़कियों को यही सलाह दूंगी कि ऐसे लड़के ढूंढ़ो, जिन्हें खाना पकाना आता हो! यदि किचन में पुरुषों की भी पार्टनरशिप रही तो परिवार स्वस्थ रहेगा. बाहर का खाने से सबकी सेहत बिगड़ती है, बस किसी की जल्दी बिगड़ती है तो किसी की लेट. मेरी सलाह है कि युवा जोड़े किचन में ज़्यादा समय बिताएंगे तो ज़्यादा हेल्दी रहेंगे और उनके बीच प्यार भी बढ़ेगा.
मैं यह जानकार हैरत में हूं कि फ़ूड डिलिवरी ऐप्स पर प्रति महीने लाखों ऑर्डर आते हैं, जो कि बहुत ही ज़्यादा है. ज़रा सोचिए हम लोग कितना बाहर खा रहे हैं. हमारे पास हर रोज़ बाहर से ऑर्डर करने का वेल्थ आ गया है, पर हम रोज़ाना अपना हेल्थ गंवा रहे हैं. हेल्थ ऐसी चीज़ है, जो हाथ से निकलने के बाद ही पता चलता है कि हमने क्या खोया है.
एक हालिया रिसर्च में कहा गया है कि नारियल का तेल खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है. इस बारे में आपकी क्या राय है?
सिर्फ़ भारतीय ही नहीं, दुनियाभर के नेटिव कल्चर के फ़ूड को बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है. ऐसा इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि भारत जैसे विकासशील देशों में में मार्केट के विस्तार की असीमित संभावना है. जब हमें यह बताया जाता है कि वो चीज़ें, जो हमारे यहां आसानी से उपलब्ध हैं, हम पारंपरिक रूप से खाते रहे हैं, वो नुक़सानदेह हैं तो छद्म रूप से नए प्रॉडक्ट्स के लिए जगह बनाई जा रही होती है. अब नारियल तेल के बारे में भी जो कुछ कहा गया है उसमें सेहत या पोषण के हिसाब से कोई तथ्य नहीं है. व्यावहारिक बात तो यह है कि जहां-जहां नारियल के पेड़ होते हैं, वहां के लोगों को इससे बनी चीज़ों का इस्तेमाल करना ही चाहिए. दुर्भाग्य से कुछ लोग इस तरह के बहकावों में आ जाते हैं. दरअस्ल, फ़ूड मार्केटिंग हमेशा छद्म तरीक़े से की जाती रही है. पहले लोग आपको सेहत की दृष्टि से जागरूक करने की बात करते हैं, मसलन-घी मत खाओ, चावल न मत खाओ, आम मत खाओ… ऐसा करना आपकी सेहत के लिए अच्छा है. उसके कुछ समय बाद डायरेक्ट मार्केटिंग होती है. जैसे-हेल्दी हार्ट के लिए रिफ़ाइंड ऑयल यूज़ करो, शुगर कंट्रोल में रखने के लिए डाइजेस्टिव मारी बिस्किट खाओ, सेहतमंद रहने के लिए कीन्वा खाओ. यह मार्केटिंग स्ट्रैटजी है, हम लोगों को यह बात समझनी चाहिए.
जब लोकल खाना ही सबसे पौष्टिक है तो छोटे गांवों और आदिवासी इलाक़ों में बच्चों के कुपोषित होने की ख़बरें क्यों आती हैं?
सबसे पहली बात यह है कि आदिवासी लोगों का जो ज्ञान होता है, जिसे हम इंडीजिनियस नॉलेज या देशज ज्ञान कहते हैं, वह ख़त्म हो रहा है. यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जानेवाला ओरल नॉलेज होता है. आदिवासियों को अपने पुरखों से यह पता चलता है कि उन्हें कौन-से पेड़ का कौन-सा हिस्सा खाना चाहिए. कौन-से पत्ते खाने चाहिए. किस पेड़ का फूल खाना चाहिए. जब आदिवासी बच्चा स्कूल में जाता है, तब वह अपने कल्चर के हिसाब से इंडीजिनियस नॉलेज का कुछ भी नहीं सीखता, क्योंकि स्कूली सिलैबस में उनके पारंपरिक ज्ञान का कुछ भी नहीं होता. स्कूली शिक्षा में कृषि के बारे में कुछ भी नहीं पढ़ाया जाता है. दूसरी बात यह है कि जंक फ़ूड चाहे बिस्किट हो, चिप्स हो या चॉकलेट पांच रुपए के पैकेट में सभी जगह पहुंच गए हैं. छोटे-छोटे गांवों में भी लोग इन्हें खाते दिखेंगे. यही सभी चीज़ें मिलकर कुपोषण की समस्या को बढ़ाती हैं.
आप इस बारे में अपने स्तर पर क्या कर रही हैं?
मुंबई से क़रीब 80 किलोमीटर दूर हमारा पैतृक फ़ार्म हाउस है. वह पूरा आदिवासी इलाक़ा है. हम लोग कोशिश कर रहे हैं कि वहां के मौखिक ज्ञान को लिखित रूप से सुरक्षित किया जाए. हमने वहां के हर परिवार को पांच स्थानीय पेड़ दिए हैं. हम उन पेड़ों की देखभाल के लिए हर परिवार को प्रति माह ५०० रुपए देते हैं. इससे यह होगा कि जब तक उन पेड़ों की वृद्धि हो रही है, परिवार को कैश इन्सेंटिव मिलता रहेगा. जब पेड़ उन्हें फूल और फल देने लगेंगे तो वे लोग उसे मार्केट में बेचकर पैसे कमाने लगेंगे. सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे लोग स्थानीय पेड़ और फसलों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हों. पर सरकार चाहे किसी की भी हो सरकारी नीतियां ऐसी हैं कि खेती के लिए दी जानेवाली सब्सिडी फ़र्टिलाइज़र कंपनियों को जाती है. इससे किसान नॉन-नेटिव फसलें उगाने को मजबूर होते हैं. फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल करते हैं, जिससे ज़मीन की गुणवत्ता ख़राब होती है. अपने आप उगनेवाली कई सारी चीज़ें, जिन्हें हमें खाते आए हैं, वे ख़त्म हो जाती हैं. आपको समस्या का समाधान ऊपर से नीचे तक करने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि लोकल चीज़ें उगाने के लिए किसानों को कैश इंसेंटिव दिया जाना चाहिए.
सोशल मीडिया पर आप आए दिनों ट्रोल का शिकार होती रही हैं. पिछले दिनों चाय के बारे में अपनी राय व्यक्त करने पर लोगों ने आपकी काफ़ी खिंचाई की थी. आप ट्रोल्स को हैंडल कैसे करती हैं?
मैं अपनी बात कहकर दूर चली जाती हूं. उसके बाद चाहे जिसको जो कहना है कहता रहे. वैसे मुझे लगता है कि मुझे सबसे कम ट्रोल किया जाता है. दरअस्ल, ट्विटर पर यह होता है कि हमें कम शब्दों में अपनी बात कहनी होती है. हम वहां यह मानकर लिखते हैं कि जो लोग आपको फ़ॉलो करते हैं, वे आपकी बातों को समझते हैं. ट्रोल वही होते हैं, जिन्हें आपके काम के बारे में कुछ पता नहीं होता है. वे ट्वीट किए गए 280 कैरेक्टर्स से आपके कैरेक्टर का मूल्यांकन करते हैं.
दुबली-पतली दिखने के लिए बेचैन लड़कियों के लिए आपकी क्या सलाह है?
मैं उन लड़कियों से कहूंगी कि यदि प्यार और मोहब्बत में दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई तो ठीक है, पर डायटिंग में नहीं उड़नी चाहिए. खाना हमारा ऐसा होना चाहिए कि हर सुबह उठकर हमें एक्सरसाइज़ करने का मन करे. तब समझिए कि आपकी डायट सही है. सही डायट वह है, जिससे दिनभर आपमें काम करने की क्षमता हो और रात को अच्छी नींद आए. जैसे हम म्यूचुअल फ़ंड में पैसा लगाते हैं और पांच से छह साल के लिए उसे भूल जाते हैं. उसी तरह सेहत को भी हमें उसी तरह ट्रीट करना चाहिए. हमें पचास साल के लिए प्लैनिंग करनी चाहिए. हम वही चीज़ें करें, जो अगले पचास साल तक आराम से कर सकें. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कितनी जल्दी वज़न कम हो, बल्कि यह सोचना चाहिए कि क्या करें कि अगले पचास सालों तक ख़ुद को दुबला-पतला और हेल्दी रख सकें.
सबको फ़िट रखनेवाली रुजुता का ख़ुद का फ़िटनेस रूटीन क्या है?
मैं हफ़्ते में चार-पांच दिन वर्कआउट करती हूं. जितना हो सके दिनभर ख़ुद को ऐक्टिव रखती हूं. खाना एकदम सिम्पल खाती हूं. सुबह उठकर पोहा खाती हूं. लंच में भाकरी भात. बीच में मुट्ठीरभर सिंगदाना, खजूर या फल. रात को दाल-चावल खाती हूं. मैं रेग्युलर चीज़ें खाती हूं. पैकेज्ड फ़ूड कभी नहीं खाती. मैं वाइन नहीं पीती. डार्क चॉकलेट्स नहीं खाती.
डाटिंग वर्ल्ड ने लोगों के दिमाग़ में यह भर दिया है कि जो भी चीज़ टेस्ट में अच्छी नहीं है, वह हमारी सेहत के लिए अच्छी है. जबकि ऐसा नहीं है. अगर आपको मिठाई खानी है तो उसमें मिठास तो होनी चाहिए. मैं मिठाइयां खाती हूं. कई लोग मिठाइयों को चीट फ़ूड मानते हैं, जबकि मेरा मानना है कि यदि हम हर रोज़ ठीक से खाएं तो चीटिंग की ज़रूरत ही नहीं होगी. चीट फ़ूड, चीट डे यह सब मार्केटिंग टर्म्स हो गए हैं.
सेलेब्रिटी डायटीशियन की आम लोगों के लिए आसान और असरदार सलाह क्या होगी?
मेरा मानना है कि आप आम हों या ख़ास आप हैं तो इंसान ही. मैं कहूंगी ‘ईट लोकल, थिंक ग्लोबल.’ खाना हमेशा सिम्पल होना चाहिए. आप वही खाइए, जो अगले पचास सालों तक खा पाना संभव हो. मैं कई लड़कियों से कहती हूं देखिए आप डेटिंग तो पचास लड़कों के साथ कर सकती हैं, पर घर तो एक को ही ला सकते हैं. यही बात डायट पर भी लागू होती है. आप जिस खानपान के साथ लंबे समय तक रह सकें, वही आपके लिए अच्छा है.
लोग विदेशी सुपरफ़ूड की बड़ी बातें करते हैं, आपके अनुसार इंडियन सुपरफ़ूड कौन-से हैं?
यहां सदियों से चलती आ रही पांच चीज़ें हैं-घी, दही, दूध, शक्कर और शहद. इन्हें पंच अमृत कहा जाता है. इनके अलावा किचन में नमक, हल्दी, चावल और दाल के सही इस्तेमाल को मैं भारतीय सुपरफ़ूड मानती हूं. वैसे हमारे यहां हर क्षेत्र के अपने स्पेशल फ़ूड होते हैं, पर मैंने अभी जिन चीज़ों का ज़िक्र किया, वो हर क्षेत्र में मिल जाती हैं.