अब तो लॉकडाउन हट चुका है, लेकिन उस कठिन समय में सीखी हुई कई बातें हमारे जीवन में हमेशा काम आएंगी. और क़तई ज़रूरी नहीं कि आप अच्छी बातों की समझ अपने से बड़ों से ही ले सकते हैं, कई बार बच्चों के साथ समय बिताते हुए भी आप उन बातों को दोबारा जीने लगते हैं, दोबारा गहराई से समझने लगते हैं, जो समय के साथ-साथ आपकी चेतना में पीछे चली गई थीं. ज्योति जैन की डायरी का यह पन्ना इस बात की बानगी है.
लॉकडाउन में कुछ बातें बड़ी अच्छी भी हुईं. भगवान का अंश यानी मानव, भगवान यानी पंचतत्व भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि और न से नीर को स्वच्छ करने का कारण (बीमारी के डर से ही!) बन गया था.
और इन सब बातों के अलावा पारिवारिक माहौल तो बदला ही था. इसी बदलाव के चलते मेरी छोटी भतीजी जिसे स्कूल के रूटीन होमवर्क से फ़ुर्सत नहीं मिलती थी, वो मेरे साथ कार्टून देख रही थी. कहा यूं जाना चाहिए कि मैं भी उसके साथ देख रही थी. कोई ‘फ्रोज़न’ नामक कार्टून फ़िल्म थी.
चूंकि मैंने बाद में देखना शुरू किया सो वह मुझे उसकी पहले की कहानी बताने लगी, ‘‘देखो मां… ये जो राजकुमारी है ना… इसके हाथों में जादू है और ये एक राजकुमार है… और ये दूसरी वाली है ना…ये राजकुमारी की बहन है…. ये जो जादू के हाथों वाली राजकुमारी है ना… जब ये दुखी या ग़ुस्सा होती है ना… तो इसके हाथों से बर्फ़ निकलना शुरू होती है, और सब कुछ जम जाता है और बर्फ़ का तूफ़ान आ जाता है. जैसे अभी है…’’
मैंने स्क्रीन पर देखा तब मैं उस जगह की सुन्दरता की तारीफ़ ही कर रही थी कि कितना सुन्दर है… एकदम साफ़ बर्फ़…
वह आगे बोली,‘‘तो अभी वह ना दुखी है… उसकी बहन उससे दूर चली गई है. और पता है जब वह ख़ुश होती है ना और वह प्यार करती है ना… तो सारी बर्फ़ हट जाती है और ख़ूब सारे फूल और हरियाली आ जाती है.’’
और उसकी ये बात चलते-चलते फ़िल्म की जादुई हाथों वाली राजकुमारी भागती जा रही थी… उसकी बहन मौत की कगार पर थी… बहन का दोस्त राजकुमार भी क्रोधित हो उसे मारने को भाग रहा था. तभी दोनों राजकुमारी बहने मिलती हैं, गले लगती हैं और ठंड से मरने जा रही राजकुमारी ठीक होने लगती है. क्योंकि जादुई राजकुमारी जैसे ही बहन से गले मिलती है, उसके हृदय में प्यार उमड़ता है… वो ख़ुश हो जाती है और पूरे बर्फ़ से ढंके पहाड़, वृक्ष, महल, मकान, बगीचे सब पर से बर्फ़ हट जाती है और चारों ओर हरियाली, फूल और ख़ुशियों का आलम हो जाता है…
बिटिया को भी ये संदेश इस कार्टून फ़िल्म के माध्यम से समझ आया कि क्रोध व दुख से वातावरण अच्छा नहीं होता. सब निगेटिव होता है, सब बर्बाद होता है और लोग परेशान होते हैं, लेकिन प्यार और ख़ुशी से सब कुछ अच्छा हो जाता है.
ये संदेश तो हर माहौल के लिए सही/सटीक लग रहा है. एक बीमारी के रूप में कोई विपदा आई थी. तब क्रोध-दुख और निराशा से माहौल, वातावरण ख़राब और नकारात्मक ही हुआ. लेकिन यदि हम जो मिल रहा है उसमें ही प्रसन्न, संतुष्ट और सकारात्मक रहे, अपनी सामर्थ्य जितनी एक-दूसरे की मदद की तो देखिए वातावरण ने भी सकारात्मक नतीजे ही दिए.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट