बेशक अनदेखे वायरस से हम सब डरे हुए हैं, जो कि अभी एक-डेढ़ साल की बात है. क्या आप जानते हैं, एक और डर है इसी से मिलता-जुलता, जो कई लोगों में देखा जाता है. साइकोलॉजी की भाषा में उसे कहते हैं माइसोफ़ोबिया यानी जर्म्स और संक्रमण का डर. आज हम जिस बारे में बात करने जा रहे हैं, उसके तार इसी डर से जुड़े हैं.
ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो पब्लिक टॉयलेट्स यूज़ करने से बचते हैं. कुछ ग़लती तो आमतौर पर सफ़ाई के मामले में फिसड्डी रहनेवाले पब्लिक शौचालयों की होती है, तो कुछ माइसोफ़ोबिया का असर. कुछ लोगों पर तो माइसोफ़ोबिया इतना हावी होता है कि वे साफ़-सुथरे टॉयलेट्स भी शेयर करने से डरते हैं. ऐसे लोगों को लगता है कि उन्हें दूसरे संक्रमणों के साथ-साथ कमोड शेयर करने से एसटीडीज़ (सेक्शुअली ट्रान्समिटेड डिज़ीज़) भी हो सकते हैं. आइए जानें, क्या है कमोड से एसटीडी होने की संभावना की वास्तविकता.
क्या कमोड से होता है एसटीडी का ख़तरा?
ज़्यादातर लोगों को लगता है कि टॉयलेट सीट, शावर जेट हैंडल्स, फ़्लश बटन पर जर्म्स की भरमार होती है. बेशक हाइजीन के लिहाज़ से देखा जाए तो ऐसा सोचना स्वाभाविक है, पर यह डर बेबुनियादी है कि टॉयलेट शेयर करने से एसटीडी का ख़तरा हो सकता है. डॉक्टर्स की मानें तो पब्लिक टॉयलेट से एसटीडी होने का ख़तरा न के बराबर है. पर हां, डॉक्टर और डब्ल्यूएचओ सलाह देते हैं कि पब्लिक हो या घर का टॉयलेट यूज़ करने के बाद अपने हाथों को ठीक तरह से धोना चाहिए, इससे किसी भी तरह के वायरल और बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन से प्रभावी तरीक़े से बचा जा सकता है. इन्फ़ेक्शन होने का ख़तरा तब बढ़ जाता है, जब आपकी त्वचा कहीं कटी या छिली हुई हो या आपको कहीं घाव लगा हो, जो भरा न हो. ऐसी स्थिति में भी आपको पब्लिक टॉयलेट से एसटीडी का ख़तरा तो नहीं के बराबर ही होता है. हां, आपको यूटीआई (यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फ़ेक्शन) ज़रूर हो सकता है.

फिर किन बातों से होता है एसटीडी का ख़तरा?
डॉक्टर्स की मानें तो ज़्यादातर एसटीडीज़, चाहे वह गनोरिया हो, सिफ़लिस, जेनाइटल वार्ट या क्लैमेडिया उनका संक्रमण डायरेक्ट सेक्शुअल संक्रमण से होता है. हालांकि स्कैबीज़ और क्रैब्स जैसे ट्रान्समिशन सेक्स के अलावा इऩ्फेक्टेड व्यक्ति के साथ कपड़े, चादरें और टॉवेल्स आदि शेयर करने से होते हैं.
टॉयलेट से ट्रान्समिशन के चांसेस कम होने का एक कारण यह भी है कि वायरस जैसे ही इन्फ़ेक्टेड व्यक्ति के स्किन से बाहर आते हैं, वे तुरंत मर जाते हैं. हालांकि कुछ-कुछ मामलों में टॉयलेट सीट से इन्फ़ेक्शन की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, जैसे-इन्फ़ेक्टेड व्यक्ति के तुरंत बाद टॉयलेट सीट पर बैठना, और वह भी आपकी स्किन कटी-फटी हो, तब एसटीडी होने की संभावना हो सकती है, पर काफ़ी कम. आमतौर पर इस तरह का संक्रमण हरपिस के मामलों में देखा जाता है. इसका कारण यह है कि हरपिस का वायरस इन्फ़ेक्टेड व्यक्ति के शरीर से बाहर आने के बाद लगभग चार घंटों तक जीवित रहता है. अगर आपको इससे बचना है तो यात्रा के दौरान अपने पास टिशू रोल और सैनिटाइज़र रखें. पब्लिक टॉयलेट (भले ही साफ़-सुथरे दिख रहे हों) यूज़ करने से पहले इनकी मदद से साफ़ कर लें.
Cover Photo: Gpointstudio/freepik.com