कमलेश्वर की छोटी-सी कहानी सर्कस ने कला और कलाकार के बारे में काफ़ी कुछ बता दिया है. यहां कला है छुरियां फेंकना और कलाकार है वह व्यक्ति जो सर्कस में छुरियां फेंकता है. वह ग़लत तरीक़े से छुरी फेंककर अपनी बेवफ़ा पत्नी से बदला ले सकता है. पर क्या वह ऐसा कर पाता है?
सर्कस तो आपने ज़रूर देखा होगा. उसमें तरह-तरह के ख़तरनाक और दिल दहलाने वाले करतब दिखाए जाते हैं. शायद आपने वह बेमिसाल खेल भी देखा हो, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा चक्का घूमता हुआ आता है. उसी के साथ एक छरहरे बदन की बेहद ख़ूबसूरत लड़की आती है. फिर एक कलाकार अपने हाथों में तेज़-चमकदार छप्पन छुरियां लेकर आता है! दिखाता है. फिर छुरियां पास रखी मेज पर रख देता है और लाउडस्पीकर पर आवाज़ आती है-साहिबानो! इस दिलकश ख़तरनाक खेल का नाम है-छप्पन छुरी! दर्शकों में से भी आवाज़ आ ही जाती है-वाह! क्या नाम है…लड़की भी तो छप्पन छुरी है!
तभी म्यूज़िक बजने लगता है. दर्शकों में से किसी मनचले को बुलाया जाता है. उस मनचले से पुरुष कलाकार की आंखों पर पट्टी बंधवाई जाती है ताकि वह कुछ देख न सके. फिर म्यूज़िक तेज़ होता है. लकड़ी का गोलाकार चक्का घूमने लगता है. वह छरहरी ख़ूबसूरत लड़की उस चक्के पर गड़ी दो खूटियों का सहारा लेकर, बल खाकर चिपक जाती है. असली खेल शुरू हो जाता है. म्यूज़िक और तेज़ हो जाता है. आंखों पर बंधी पट्टी वाला वह पुरुष कलाकार मेज पर रखी आठ-दस छुरियां टटोलकर उठाता है. उन्हें माथे से लगाकर इबादत के अन्दाज़ में चूमता है. गोलाकार चक्का घूमना शुरू करता है. चक्के पर चिपकी वह ख़मदार कमर वाली लड़की भी साथ-साथ घूमती है.
पुरुष कलाकार पहली छुरी फेंकता है. वह लड़की के जिस्म के पास चक्के में धंस जाती है. चक्का चलता रहता है. और फिर म्यूज़िक के बैंग के साथ एक छुरी आती है और उस ख़ूबसूरत लड़की के बदन के ख़मों के मुताबिक धंसती जाती है. चक्के की रफ़्तार के साथ चमचमाती छुरियों के आने और धंसने की रफ़्तार भी बढ़ती जाती है. दर्शकों की सांस रुकी-सी रह जाती है.
फिर छप्पन छुरियों का यह खतरनाक खेल समाप्त होता है. और सर्कस का तम्बू तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है. वह लड़की चक्के से बेदाग़ उतरती है. पुरुष कलाकार अपनी पट्टी खोलकर उसे आगोश में लेता है. फिर वे दोनों सर झुका कर दर्शकों को धन्यवाद देते हैं और तालियों के संगीत पर वहां से दौड़ते हुए नेपथ्य में चले जाते हैं.
दूसरा करतब शुरू हो जाता है. पर यहां कुछ दूसरा ही हुआ. वह छरहरी ख़ूबसूरत लड़की उस पुरुष कलाकार की बीवी थी. वह दिलोजान से अपनी बीवी को प्यार करता था. पर कुछ ऐसा हुआ कि उसकी बीवी बेवफ़ा हो गई. कलाकार ने अपने प्यार की दुहाई दी. बड़ी मिन्नतें कीं. लेकिन वह नहीं मानी…वो रास्ता बदलकर चलती रही. कलाकार उदास-निराश और आधा पागल हो गया. पर सर्कस का छप्पन छुरी वाला खेल बदस्तूर चलता रहा!
आख़िर एक रोज़ एक दोस्त ने कलाकार को राय दी कि बीवी की बेवफ़ाई बर्दाश्त करने के बजाय वह एक छुरी ग़लत फेंक कर बेवफ़ाई का यह खेल ख़त्म क्यों नहीं कर देता?
कलाकार सोचता रहा. खेल तो बदस्तूर जारी था. कई दिन उसने दोस्त की बात पर अमल करने के इरादे से छुरी ग़लत तरीक़े से फेंकने की कोशिश की, लेकिन नहीं फेंक पाया. और ज़िन्दगी के साथ-साथ सर्कस का यह ख़तरनाक खेल भी चलता रहा.
आख़िर दोस्त ने एक दिन कह ही दिया-तू बुजदिल है! ग़लत छुरी फेंक कर बेवफ़ाई का बदला नहीं ले सका!
तो कलाकार ने सोचते हुए कहा-क्या करूं दोस्त! मैं अपनी उंगलियों को जुम्बिश देकर किसी भी दिन उसके कलेजे को चीर कर बदला ले सकता था, लेकिन इन उंगलियों ने जो हुनर सीखा है…उसने ऐसा नहीं करने दिया!
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