सच्ची दोस्ती अमीरी-ग़रीबी नहीं देखती. सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी ‘दो सखियां’ इसकी मिसाल है.
मालिन क्यारियों को निरा रही थी. ऊपर से रग्घू ने आकर कहा-ऊपर जा बाई साहब बुला रही हैं. मालिन घबराई. सबेरे ही सबेरे बाई साहब ने बुलाया है कोई अपराध तो नही हो गया है. वह हाथ की खुरपी भी रखना भूल गई. क्षण भर में हाथ में खुरपी लिए बाई साहब के सामने जा खड़ी हुई और पास ही उसकी धोती का पल्ला पकड़े खड़ी थी उसकी छोटी-सी बेटी रमिया.
‘मालिन रोज़-रोज़ हमारी मुन्नी पढ़ने जाती है और स्कूल में बैठी-बैठी थक जाती है. इधर तुम्हारी रमिया दिनभर घास खोदती है और बगीचे में मज़ा करती है. अब यह न होगा. रमिया को भी पढ़ने जाना पड़ेगा.’
मालकिन का स्वर सुनते ही मालिन का भय जाता रहा. बोली,‘रमिया तो आपकी ही है बाई साहब चाहे पढ़ने भेजो चाहे बगीचे में काम कराओ. पर रमिया पढ़ने जाएगी तो मुन्नी रानी का बगीचा न सूख जाएगा? उसे कौन सींचेगा?’
किसी के बोलने के पहिले ही मुन्नी बोल उठी,‘तो फिर हम भी बगीचा सींचेंगे. रमिया पढ़ने न गई तो हम भी न जाएंगे चाहे कुछ भी हो.’
मालिन ने कहा,‘पर रमिया के पास पट्टी भी नहीं है पुस्तक भी नहीं है कौन देगा मुन्ना रानी?’
मुन्नी बोली,‘पट्टी और पुस्तक का बहाना मत करो मालिन. हम देंगे. पर रमिया पढ़ने नहीं जाती तो हम भी नहीं जाते. यह लो-कहती हुई पट्टी पुस्तक फेंककर मुन्नी भागी.’
मां ने उसे पकड़कर कहा,‘ठहर जा मुन्नी रमिया भी जाएगी पढ़ने.’
पर मुन्नी तो किसी-न-किसी बहाने पढ़ने जाना ही नहीं चाहती थी. मालिन के हाथ से खुरपी लेती हई बोली मां रमिया कैसे जाएगी पढ़ने? उसके पास साफ़ कपड़े कहां हैं? मैं अब बगीचे में काम करने जाती हूं.’ मुन्नी जीने से नीचे उतरने लगी.
मुन्नी को आख़िर पढ़ने के लिए जाना ही पड़ा. साथ में ज़बरदस्ती रमिया को भी जाना पड़ा. पट्टी पुस्तक घर से ही ढूंढ़कर दे दी गई. मुन्नी का ही एक पुराना फ्राक पहिनकर रमिया पहिले दिन स्कूल गई. धीरे-धीरे दोनों में ख़ूब मेल हो गया. अब वे स्कूल जाने से घबराती न थीं. दोनों साथ स्कूल जातीं साथ लौटतीं और साथ-साथ पढ़तीं. अब मुन्नी को भी कोई शिकायत न थी कि वह मुफ़्त में पढ़ने जाती है और रमिया दिनभर मज़ा करती है.
दिन जाते देर नहीं लगती. देखते-देखते लड़कियां बड़ी हो गईं. दोनों जिस दिन से साथ-साथ पढ़ने लगीं, उनमें सद्भावों के साथ-साथ गाढ़ी मैत्री भी हो गई. मुन्नी अपने किसी भी व्यवहार से यह न प्रकट होने देती कि रमिया उसकी आश्रिता मालिन की बेटी है. रात को रामी ज़रूर मां के पास सोती थी बाकी सारे समय मुन्नी उसे नीचे आने ही न देती थी. इसी साल दोनों ने मैट्रिक की परीक्षा दी है. मुन्नी के पिता मुन्नी के ब्याह की तैयारी में हैं. पर रामी की माता के सामने एक समस्या थी. वह सोच रही थी रामी इतना पढ़ गई है. चाल-ढाल, बात-व्यवहार से वह मुझ अनपढ़ की लड़की-सी जान ही नहीं पड़ती. मैं इसका विवाह कैसे ओर कहां करूंगी? फिर वह सोचती नहीं विवाह कोई बात नहीं. मेरी रामी स्कूल की मास्टर बनेगी. और तब रामी मुझे यहां मालिन का काम न करने देगी. तो क्या मैं अपने इतने अच्छे मालिक को छोड़कर, चली जाऊंगी? यहां मेरी ज़िंदगी बीती है. यहीं मरूंगी भी.
रामी दिनभर दूसरी चिन्ता में घूमा करती थी. उसे मां के साथ बगीचे में काम करने में लज्जा और संकोच मालूम होता था. पर यह भी न सहा जाता था कि उसकी मां दिनभर मेहनत करे और वह बैठी रहे. मां को काम करते देख उसे बड़ी वेदना होती पर कोई दूसरा उपाय भी तो न था. उसने सोचा परीक्षाफल के निकलते ही चाहे पास होऊं, चाहे फेल, मैं कहीं न कहीं नौकरी कर लूंगी. पन्द्रह-बीस रुपए ही मिलेंगे, तो क्या हुआ, मां को तो दिन भर मज़दूरी न करनी पड़ेगी. मां ने बहुत कष्ट उठाया है. अब वे बूढ़ी हो चलीं. अब उन्हें अधिक दिन कष्ट न सहने दूंगी. और इसी निश्चय के अनुसार उसने कई स्कूलों में प्रार्थनापत्र भी भेज दिए.
मुन्नी की खिचड़ी अलग ही पक रही थी. उसे चिन्ता थी रामी के ब्याह की. वह सोच रही थी हम दोनों साथ-साथ पढ़ीं और बड़ी हुई. साथ ही मैट्रिक की परीक्षा दी और अब विवाह केवल मेरा हो रहा है. रामी का भी तो विवाह होना चाहिए. रामी का विवाह उसकी मां के लिए न होगा. और फिर रामी को पढ़ा-लिखाकर किसी अनपढ़ के गले से बांधना भी कितना बुरा होगा. पिता की लाड़ली मुन्नी अपने इन उठते हुए भावों को न दबा सकी. एक दिन पिता से बोली,‘बाबूजी, रामी को तुम्हीं ने पढ़ाया-लिखाया है. उसके विवाह की फिकर भी तुम्हीं को करनी पड़ेगी. अब उसका विवाह किसी गंवार से तो न हो सकेगा.’
पिता ने आश्वासन के स्वर में कहा,‘इस विवाह के बाद रामी के ही विवाह का नम्बर आएगा. मैं लड़के की तलाश में हूं.’
मुन्नी का भाई जगत सिंह जो इधर पांच साल से विदेश में था आज आ रहा है. मुन्नी के पिता लड़के को लेने पहले से बम्बई पहुंच चुके हैं. शाम को गाड़ी आएगी. मुन्नी और रामी दोनों सखियां बड़ी लगन के साथ जगत सिंह का कमरा सजा रही हैं. मुन्नी बड़ी ही प्रसन्नचित और चंचल स्वभाव की लड़की थी. वह स्वयं ख़ुश रहना जानती थी और पास रहनेवालों को भी ख़ुश रहने के लिए विवश किए रहती थी. भाई की मेज पर एक सुन्दर टेबलक्लॉथ बिछाते हुए मुन्नी बोली,‘देख, रामी मैंने तेरे विवाह के लिए भी पिताजी से कहा है. वह कोई सुन्दर सा तेरे ही सरीखा पढ़ा-लिखा वर खोजकर तेरा भी विवाह कर देंगे.’और मुन्नी ने एक हल्की-सी चपत रामी के गालों पर जड़ दी. रामी उदासी में बोली,‘पर मैं तो विवाह करूंगी ही नहीं.’
मुन्नी हंसती हुई बोली-ऐसा तो मत बोल रामी. तू मुझसे डरती नहीं. मैं कहीं मचल गई तो पिताजी को मेरे विवाह के पहले तेरा विवाह करना पड़ेगा. स्कूल जाने की बात भूल गई क्या?’ और दोनों हंस पड़ीं. अचानक श्रृंगार मेज के पास बड़े आइने में दोनों को अपना प्रतिबिम्ब दिख पड़ा. मुन्नी कुछ देर तक देखती रही, फिर बोली रामी मैं तुझसे गोरी हूं पर सुंदर तू ही मुझसे ज़्यादा है. अच्छा देख, तुझसे कहे देती हूं, तू मेरे पति के सामने मत आना. कहीं ऐसा न हो कि वह मुझे छोड़कर तुम्हें पसन्द कर लें.’
मुन्नी को एक धक्का देकर रामी बोली,‘अब तुम मेरा मज़ाक तो मत उड़ाओ. कहां तुम और कहां मैं? बहुत फ़र्क़ है. तुम मुझसे गोरी भी है हो, सुन्दर भी हो. पर फिर भी तुम घबराना मत. मैं तुम्हारे पति के सामने न आऊंगी. तुम्हारे ऊपर उनका जो प्रेम होगा उससे कण भर भी न लूंगी. अब ख़ुश हुई.’
मुन्नी बोली,‘पर सुन्दर मुझसे ज़्यादा तू ही है, मेरा दिल कहता है और यह दर्पण भी कहता है. जी चाहता है इसे तोड़ दूं.’
फिर कुछ ठहरकर बोली,‘अच्छा भैया को आने दो जिसे सुन्दर कहेंगे बस वही सुन्दर. ठीक है न?’
‘और फिर चाहे बन्दर को भी सुन्दर कह दें,’रामी ने कहा और एक फूलदान में फूल सजाने लगी. दोनों हाथ रामी की पीठ पर धम से पटकते हुए मुन्नी बोली,‘पर यहां बन्दर कौन है तू कि मैं, बोल न?’
रामी ने कहा,‘न तुम, न मैं, पर कहीं वे किसी तीसरे को ही सुन्दर बता दें तो?’
जगत सिंह को लेने उनके पिता मुन्नी और बहुत से लोग स्टेशन पहुंचे थे, घर आए. बहुत देर तक घर में चहल-पहल मची रही.
जगत कुछ अस्वस्थ था. सबसे विदा लेकर वह सोने के लिए अपने कमरे में आया. कपड़े उतारकर वह लेट गया. वह सचमुच थका हुआ था. किन्तु एक ही मिनट के बाद आंधी के झोंके की तरह दोनों दरवाज़ों को फटाफट खोलती हुई, पहुंची मुन्नी. एक हाथ से वह रामी को घसीटती हुई ला रही थी वह बोली,‘भैया सोने से पहले तुम्हें एक बात का फ़ैसला करना है. सच-सच कहना! मैं ज़्यादा सुन्दर हूं कि यह?’ जगत हंस पड़ा, बोला,‘मुन्नी तू अभी तक निरी बच्ची ही है. जा मुझे सोने दे. मैं थक गया हूं. और वह करवट बदलकर सो गया.’
‘भैया तुम अभी तक बड़े ख़राब हो,’ कहती हुई रूठकर, मुन्नी चली गई. किन्तु इसके बाद जगत सो न सका. उसके सामने रह-रहकर शरमाई हुई रामी का चित्र आ जाता था. वह यही निर्णय न कर सकता था कि यह लड़की कौन है विवाह में दूर-दूर के बहुत से सम्बन्धी-रिश्तेदार आए होगें. मुमकिन है उन्हीं में से किसी की लड़की हो. पर इसे तो जगत ने कभी देखा है. चेहरा पहचाना हुआ-सा लगता है. जिस बात का उतर वह मुन्नी को न दे सका था वही उत्तर बराबर उसके दिमाग़ में चक्कर काट रहा था,‘कितनी सुन्दर लड़की है!’
सुबह छह भी न बज पाए थे मुन्नी के ऊधम के मारे जगत का सोना मुश्क़िल हो गया. जगत उठकर बैठ गया. मुन्नी से बोला,‘मुन्नी ज़रा गम्भीर बनो बहिन. अब तेरी शादी होने वाली है.’ जगत की दृष्टि दरवाज़े की ओर गई. दो सुकुमार पैर दरवाज़े की ओट में ठिठक गए थे. मुन्नी ने जैसे जगत की बात सुनी ही न बोली,‘भैया देखो! रामी अब तुमसे शरमाती है. आती नहीं अन्दर. वह देखो वहां खड़ी है. और एक बार भैया तुम्हें याद है. न? वह कितनी मचली कि तुम्हीं से शादी करेगी. और फिर जब तुमने कहा कि तुमने शादी कर ली और इसे दो पैसे दे दिए तब कहीं यह मानी.’ मुन्नी एक सांस में यह सब कहकर हंस पड़ी. जगत चौंक पड़ा-तो यह रामी है? फआओ रामी, अन्दर आओ! वहां क्यों खड़ी हो? चाहो तो दो पैसे और ले लो,’कहकर वह हंस पड़ा.
रामी लाज और संकोच में सिमटी हुई सी भीतर आई. पर वह खुलकर जगत से बातचीत न कर सकी. न जाने कहां की लज्जा ने उसकी ज़बान पर ताले डाल दिए. वह चुपचाप खड़ी रही जगत ने उससे बोलने की कोशिश बहुत की पर उसका सिर नीचे से ऊपर न उठा.
जगत ने कहा,‘लो तुम मत बोलो. मैं तो जाता हूं. मुन्नी की समझ में न आया कि आख़िर जगत भैया से रामी इतना क्यों शरमाती है? उसने रुठकर कहा-जा तू बड़ी ख़राब है रामी! तूने मेरे जगत भैया का अपमान किया है. तू उनसे नहीं बोली. मैं भी तुमसे न बोलूंगी. रामी ने नम्रता से कहा,‘नहीं बहिन मेरी अपमान करने की नियत नहीं थी. तुमने छुटपन की ऐसी बात कह दी जिससे शर्म के मारे मैं मरी जा रही थी. फिर कैसे बोलती?’ और दोनों सखियों में उसी समय मेल भी हो गया.
उसी दिन लड़कियों का रिज़ल्ट निकला-दोनों पास थीं. मुन्नी सेकेन्ड डिवीजन में और रामी फ़र्स्ट में. मुन्नी ने इससे कुछ बुरा न माना. वह रामी के पास आकर उससे लिपटकर बोली,फदेख रामी तू सभी बातों में मुझसे बढ़ती है. मैं सेकेन्ड में पास हुई तू फ़र्स्ट में. यह ठीक नहीं. तुझे मेरे साथ-साथ चलना चाहिए.’
रामी ने कहा,‘सभी बातों में नहीं बढ़ रही हूं! विवाह तुम्हारा ही पहले, हो रहा है.’
‘कौन जाने तू इसमें भी मुझसे आगे न बढ़ जाय,’ कहती हुई मुन्नी भाग गई.
रामी जगत के कमरे से फूलदान लेकर बाहर आ ही रही थी कि इतने में ही वह पहुंच गया. वह कर्इ दिनों से रामी से एकान्त में कुछ बात करना चाहता था. उसने रामी का हाथ पकड़कर अन्दर खींच लिया. बोला,‘रामी, ठहरो, मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं.’ रामी घबरा गई. इधर-उधर देखती हुई बोली,‘आप मेरा हाथ छोड़ दीजिए. कोई देख लेगा.’
जगत बोला,‘पर तुम ठहरोगी, जाओगी तो नहीं?’
रामी का स्वर कांप रहा था, वह बोली,‘ठहरूंगी पर पहले आप मेरा हाथ छोड़ दीजिए.’
रामी का हाथ छोड़ जगत दरवाज़े के पास रास्ता रोककर खड़ा हो गया और बोला,‘रामी मेरे पास भूमिका बांधने का समय नहीं है. मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं. तुम्हें स्वीकार है?’
रामी कांप उठी, उसने कहा,‘पर यह कैसे हो सकता है! मैं मालिन की लड़की हूं. और आप क्षत्रिय!’
‘फि़क्र मत करो मैं केवल तुम्हारी राय जानना चाहता हूं.’
अब रामी कैसे बोले? सिर नीचा करके वह खड़ी रही. पर अनुभवहीन जगत क्या जाने कि यह मौन स्वीकृति का सूचक है. वह अधीर होकर बोले,‘रामी उत्तर दो, हां या ना. मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं. तुम ख़ुशी से स्वीकर कर लोगी तो ठीक है. इनकार करोगी तो मैं तुम पर किसी प्रकार का दबाव न डालूंगा. सच्चे आदमी की तरह मैं तुमसे पूछता हूं. क्योंकि मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं, पर तुम्हारी अनुमति से, तुम्हारी इच्छा के विरूद्ध नहीं.’
रामी फिर चुप.
जगत से रहा न गया उसने फिर रामी का हाथ पकड़ लिया और बोला,‘रामी मेरा भविष्य तुम्हारे उत्तर पर निर्भर है. बोलो तुम्हारी इच्छा के ख़िलाफ़ मैं तिल भर इधर-उधर न जाऊंगा. बोलो तुम्हें स्वीकार है?’
‘मैं बहुत पहले ही स्वीकार कर चुकी हूं,’कहती हुई हाथ छुड़ाकर रामी भाग गई. और सीधी जाकर अपनी मां की खाट पर लेट गई. उसने मन ही मन कहा,‘रामी के चण्डी ठाकुर, तुम्हीं रामी को भुला देते तो रामी का दुनिया में कौन रह जाता?’
जगत ने अपना निश्चय पिता से कहा. पिता के पास काफ़ी पैसा था. रुपयों का उन्हें लोभ न था. फिर वे स्वयं रामी को बहुत चाहते थे. इस बात पर किसी को कुछ एतराज़ हुआ तो जगत की मां को. वे किसी बड़े आदमी से ही सम्बन्ध जोड़ना चाहती थीं. एक मालिन की लड़की से ब्याह कर, उनके दृष्टिकोण से समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ने की जगह कम हो जाएगी. पर उनकी कुछ न चली. एक ही मण्डप में रामी का विवाह जगत से और मुन्नी का विवाह शान्तिस्वरूप से हो गया.
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