• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

डॉक्टर के शब्द: विश्वास और चमत्कार की कहानी (लेखक: आरके नारायण)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 16, 2021
in क्लासिक कहानियां, ज़रूर पढ़ें, बुक क्लब
A A
डॉक्टर के शब्द: विश्वास और चमत्कार की कहानी (लेखक: आरके नारायण)
Share on FacebookShare on Twitter

डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है. डॉक्टर की कही बातों का क्या प्रभाव हो सकता है, आरके नारायण की यह कहानी बेहद ख़ूबसूरती से बताती है.

डॉ. रमन के पास मरीज़ बीमारी के आख़िरी दिनों में ही आते थे. वे अक्सर चिल्लाते,‘तुम एक दिन पहले क्यों नहीं आ सकते थे?’ इसका कारण भी साफ़ थाः डॉक्टर की बड़ी फ़ीस और इससे भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह कि कोई यह नहीं मानना चाहता कि आख़िरी समय आ गया है और डॉ. रमन के पास जाना चाहिए. आखि़री समय और डॉक्टर रमन जैसे एक-दूसरे से मिल-जुल गये थे, इस कारण वे उनसे डरने भी लगे थे. इस तरह जब यह महापुरुष मरीज़ के सामने प्रकट होते, तब इस पार या उस पार, निर्णय तुरंत करना होता था. अब कोई हीलाहवाली या चालबाज़ी काम नहीं आती थी. बहुत समय से डॉक्टरी करने के कारण उनमें एक तुर्श स्पष्टवादिता भी आ गई थी, इस कारण उनकी राय की क़द्र भी की जाती थी. अब वे राय देने वाले डॉक्टर मात्र न रहकर फ़ैसला सुनाने वाले जज बन गए थे. उनके शब्दों पर मरीज़ की ज़िंदगी निर्भर रहने लगी थी. लेकिन डॉक्टर साहब इन सबसे परेशान नहीं होते थे. वे नहीं मानते थे कि मीठे शब्द बोलकर ज़िंदगी बचाई जा सकती है. वे नहीं सोचते थे कि झूठ बोलकर दिलासा देना उनका कर्तव्य है जबकि प्रकृति कुछ ही घंटों में फ़ैसला सुना देगी. लेकिन जब भी उन्हें उम्मीद की कोई ज़रा-सी भी किरण नजर आती, तो वे कमर कसकर मैदान में उतर पड़ते और चाहे जितने घंटे या दिन भी लग जाएं, वे सब कुछ भूलकर मरीज़ को यमराज के पंजे से छुड़ा लाने के प्रयत्न में लग जाते.
आज, एक मरीज़ के सिरहाने खड़े उन्हें ख़ुद को दिलासा देने वाले ऐसे लोगों की ज़रूरत महसूस हो रही थी, जो झूठ बोलकर भी उन्हें ढाढस बंधा सकें. रूमाल निकालकर उन्होंने माथे से पसीना पोंछा और मरीज़ के पास चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए. बिस्तर पर उनका जिगरी दोस्त गोपाल निढाल पड़ा था. उनकी दोस्ती चालीस साल पुरानी थी, जो किंडरगार्टर स्कूल से शुरू हुई थी. अब, परिवार और काम-धंधे की बातों को लेकर उनका मिलना-जुलना काफ़ी कम हो गया था, पर प्यार में कमी नहीं आई थी. इतवार के दिन शाम को अक्सर गोपाल उनके पास पहुंच जाता और अस्पताल के एक कोने में चुपचाप बैठा प्रतीक्षा करता रहता कि डॉक्टर साहब कब ख़ाली होते हैं. फिर दोनों साथ खाना खाते, फि़ल्म भी देखते और देश-दुनिया की जमकर बातें करते. यह उनकी स्थायी मित्रता थी और इसमें वक़्त और हालात का कोई असर नहीं पड़ा था.
अपनी व्यस्तता के कारण डॉ. रमन ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि गोपाल पिछले तीन महीने से उनसे मिलने नहीं आया है. एक दिन सुबह जब उन्होंने मरीजों से भरे अस्पताल की एक बेंच पर उसके बेटे को इन्तज़ार करते देखा, तब उन्हें यह याद आया. फिर भी वे घंटे भर तक उससे बात करने का वक़्त नहीं निकाल सके. इसके बाद जब वे आपरेशन-रूम जाने के लिए उठे तो उसके पास जाकर बोले,‘क्यों आए हो, बेटे?’ लड़का झेंपता हुआ धीरे से बोला,‘मां ने भेजा है.’
‘बात क्या है?’
‘पापा बीमार हैं.’
आज आपरेशन करने का दिन था और तीन बजे तक वे फ़ुरसत नहीं पा सके. इसके बाद वे तुरंत लॉली एक्सटेंशन में स्थित मित्र के घर के लिए चल पड़े.
गोपाल बिस्तर पर पड़ा सो रहा था. डॉक्टर साहब उसके सिरहाने जा खड़े हुए और पत्नी ने पूछा,‘यह कब से बीमार है?’
‘डेढ़ महीना हो गया, डॉक्टर साहब!’
‘किसका इलाज चल रहा है?’
‘एक पड़ोसी डॉक्टर का. हर तीसरे दिन आते हैं और दवा देते हैं.’
‘नाम क्या है उसका?’ यह नाम उन्होंने कभी नहीं सुना था. बोले,‘इसे मैं नहीं जानता. लेकिन मुझे तो कुछ बताना था. तुमने ख़ुद क्यों ख़बर नहीं की?’
‘हमने सोचा आप व्यस्त होंगे और व्यर्थ में आपको परेशान करना होगा.’ पत्नी ने बड़ी दयनीयता से कहा. वह काफ़ी परेशान नज़र आ रही थी. डॉक्टर समझ गया, अब गंवाने लायक वक़्त नहीं बचा है. उन्होंने कोट उतारा और बक्सा खोला. इन्जेक्शन ट्यूब निकाली, सुई खौलते पानी में रख दी. पत्नी उन्हें यह सब करते देखकर और भी परेशान होने लगी और सवाल पूछने लगी.
‘अब सवाल मत करो,’ डॉक्टर ने ज़ोर से कहा. उसने बच्चों पर नज़र डाली, जो खौलते पानी में सुई को उछलते देख रहे थे. वे बोले,‘बड़े लड़के को यहीं रहने दो, बाक़ी सबको किसी और कमरे में भेज दो.’
मरीज़ की बांह में इन्जेक्शन लगाकर वे कुर्सी पर बैठ गए और घंटे भर उसे देखते रहे. मरीज़ शान्त पड़ा था. डॉक्टर के चेहरे पर पसीना निकल आया और थकान से आंखें मुंदने लगीं. मरीज़ की पत्नी कोने में खड़ी चुपचाप सब कुछ देख रही थी. फिर धीरे-से बोली,‘आपके लिए कॉफ़ी बनाऊं?’
‘नहीं,’ हालांकि भूख से वे बेहाल हो उठे थे. उन्होंने दोपहर का खाना भी नहीं खाना था. थोड़ी देर बाद वे उठे और बोले,‘मैं बहुत जल्द लौट आऊंगा. इन्हें बिलकुल मत छेड़ना.’ थैला उठाया और बाहर खड़ी कार में जा बैठे.
पंद्रह मिनट में वे वापस आ गए, साथ में एक नर्स और सहायक भी थे. पत्नी से बोले,‘मैं एक आपरेशन करूंगा.’
‘क्यों? क्या हुआ है?’ पत्नी से घबराकर पूछा.
‘बाद में बताऊंगा. अभी तुम लड़के को यहां छोड़ दो और पड़ोसी के घर चली जाओ, और जब तक मैं बुलाऊं नहीं, वापस मत आना.’
पत्नी बेहोश होकर जमीन पर गिरने को हुई, लेकिन नर्स ने उसे संभाल लिया और बाहर जाने में मदद की.
रात को क़रीब आठ बजे मरीज़ ने आंखें खोलीं और बिस्तर पर धीरे से हिला. सहायक बहुत ख़ुश हुआ और कहने लगा,‘अब ये ज़रूर ठीक हो जाएंगे.’ डॉक्टर ने भावहीन आंखों से उसे देखा और धीरे से कहा,‘इसे ठीक करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं लेकिन इसके दिल का क्या होगा…’
‘नाड़ी में तो सुधार हुआ है.’
‘ठीक है, लेकिन इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ऐसे मामलों में शुरू में हलका सुधार दिखाई देता है लेकिन वह टिकता नहीं है. वह झूठा साबित होता है.’ फिर थोड़ी देर सोचते रहकर बोले,‘अगर नाड़ी सबेरे आठ बजे तक चलती रहती है, तो यह अगले चालीस बरस तक चलती रहेगी. लेकिन मुझे शक है कि रात को दो बजे के बाद भी यह इसी तरह चलती रहेगी.’
इसके बाद उन्होंने सहायक को वापस भेजा दिया और मरीज़ के पास बैठ गए. 11 बजे के करीब मरीज़ ने फिर आंखें खोलीं और डॉक्टर की ओर देखकर मुस्कराया. उसमें हलका सुधार हुआ था और उसने कुछ खाना भी खाया. घर भर में चैन और ख़ुशी की लहर दौड़ गई. सब डॉक्टर के पास आ खड़े हुए और कृतज्ञता प्रकट करने लगे. लेकिन वे चुप बैठे मरीज़ की ओर देखते रहे, लगता था कि वे किसी की बात सुन नहीं रहे हैं. पत्नी पूछने लगी,‘अब ये ख़तरे से बाहर हैं?’
बिना सिर घुमाए, उन्होंने कहा,‘इन्हें हर चालीस मिनट बाद ग्लूकोज और ब्रांडी देती रहो. दो चम्मच काफ़ी होगी.’
पत्नी रसोईघर में चली गई. वह बेचैन हो रही थी. वह चाहती थी कि जो भी सच्चाई हो, अच्छी या बुरी, उसे पता चल जाए. डॉक्टर साहब कुछ स्पष्ट क्यों नहीं बता रहे? दुविधा उसके लिए असह्य होती जा रही थी. शायद वे मरीज़ के ही सामने कुछ न कहना चाहते हों. इसलिए रसोई के दरवाज़े से उसने उन्हें इशारे से बुलाया. वे चले गए तो उसने पूछा,‘अब ये कैसे हैं? बच तो जाएंगे?’
डॉक्टर ने होंठ काटे और जमीन की ओर देखते हुए धीरे से कहा,‘अपने पर क़ाबू रखो. इस वक़्त कोई सवाल मत करो.’
भय से पत्नी की आंखें फैल गई. उसने उनके हाथ कसकर पकड़ लिए और कहने लगी,‘मुझे सच बता दीजिए.’
‘इस वक़्त मैं तुमसे बात नहीं करूंगा.’ यह कहकर वे कुर्सी पर जाकर फिर बैठ गए.
पत्नी ने चीखकर रोना शुरू कर दिया. आवाज़ सुनकर मरीज़ ने चौंककर आंखें खोलीं और देखने लगा कि क्या बात है. डॉक्टर साहब फिर उठे, रसोई की ओर गए, दरवाज़ा बाहर से बंद कर कुंडी चढ़ा दी, जिससे आवाज़ बाहर निकलने से रुक गई.
वे फिर कुर्सी पर आकर बैठे तो मरीज़ ने धीरे से पूछा,‘क्या आवाज़ थी? कोई रो रहा था क्या?’
डॉक्टर ने कहा,‘तुम अपने पर ज़ोर मत डालो. बात मत करो. सोने की कोशिश करो.’
मरीज़ ने फिर पूछा,‘क्या मैं जा रहा हूं? मुझसे मत छिपाओ.’
डॉक्टर ने अस्पष्ट-सी कुछ ध्वनि की और कुर्सी पर बैठे रहे. उनके जीवन में ऐसी स्थिति कभी नहीं आई थी. लीपापोती उनके स्वभाव में नहीं थी. इसी कारण लोग उनके शब्दों को बहुत महत्व देते थे. उन्होंने मरीज़ की तरफ एक नज़र डाली. उसने इशारे से उन्हें पास बुलाया और धीरे से कहने लगा,‘मैं जानना चाहता हूं कि और कितना जियूंगा, मुझे वसीयत पर दस्तख़त करना है. वह तैयार रखी है. पत्नी से कहो, उसे उठा लाये. तुम गवाह के दस्तख़त कर देना.’
डॉक्टर बोला,‘इस वक़्त अपने पर दबाव मत डालो, शान्त रहने की कोशिश करो.’ लेकिन यह कहते हुए वे स्वयं को मूर्ख महसूस कर रहे थे. सोचने लगे,‘कितना अच्छा हो, मैं इस सबसे बचकर किसी ऐसी जगह चला जाऊं, जहां मुझसे कोई सवाल न पूछा जा सके!’
मरीज़ ने अपने कमज़ोर हाथों से डॉक्टर की कलाई फिर से पकड़ ली और जोर देकर कहने लगा,‘राम, यह मेरा सौभाग्य है कि इस वक़्त तुम यहां मेरे पास हो. मैं तुम्हारे शब्दों पर विश्वास कर सकता हूं. मैं जायदाद का मामला सुलझाकर जाना चाहता हूं. नहीं तो मेरे बाद पत्नी और बच्चों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. तुम्हें सुब्बिया और उसके लोगों की जानकारी है. वक़्त रहते मुझे दस्तख़त कर लेने दो. बताओ…’
‘ठीक है, लेकिन ज़रा ठहरो…’ डॉक्टर ने उत्तर दिया, फिर वे उठे और बाहर अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए. सोचने लगे. घड़ी देखी, आधी रात हो चुकी थी.
वसीयत पर दस्तख़त होने हैं तो दो घंटे में हो जाना चाहिए, नहीं तो…वे संपत्ति के बारे में ज़िम्मेदार नहीं होना चाहते थे. घर की समस्याओं का उन्हें अच्छी तरह ज्ञान था, और सुब्बिया तथा उसके लोगों की भी उन्हें सही जानकारी थी.
लेकिन इस वक़्त वे क्या कर सकते थे? अगर वे वसीयत पर दस्तख़त करने की सुविधा उसे दे देते हैं तो यह उसकी मौत का परवाना भी हो सकता है, क्योंकि इसके कारण जीवित रहने की उसकी कोशिश एकदम ख़त्म हो जाएगी.
वे गाड़ी से निकले और घर की ओर चल पड़े. फिर कुर्सी पर जाकर बैठ गए. मरीज़ बराबर उनको देखे जा रहा था. डॉक्टर ने ख़ुद से कहा, ‘अगर मेरे शब्द इसे बचा सकते हैं तो इसे मरना नहीं चाहिए. वसीयत की फिर क्यों ज़रूरत है?’
वे बोले,‘सुनो, गोपाल!’ यह पहली दफ़ा वे अपने मरीज़ के सामने नाटक करने जा रहे थे, झूठ बोलकर जीवन जीने की उसकी इच्छा जगाने. मरीज़ के ऊपर झुककर वे ज़रा ज़्यादा ज़ोर देकर बोले,‘तुम वसीयत की फ़िक्र मत करो. तुम जियोगे. तुम्हारा दिल बहुत मज़बूत है.’
यह सुनते ही मरीज़ के चेहरे पर चमक आ गई. संतोष की सांस भर कर उसने कहा,‘तुम कह रहे हो यह? तुम्हारे मुंह से निकली बात ज़रूर सच होगी…’
डॉक्टर ने कहा,‘हां मैं कह रहा हूं. तुम हर क्षण ठीक हो रहे हो. अब सो जाओ. गहरी नींद में सो जाओ. मन से सब परेशानियां निकाल दो. मैं सबेरे तुमसे मिलूंगा.’
मरीज़ ने कृतज्ञ-भाव से डॉक्टर की ओर देखा और फिर आंखें बन्द कर लीं. डॉक्टर ने अपना बैग उठाया और धीरे से दरवाज़ा बन्द करके बाहर निकल गया.
घर जाते हुए रास्ते में वह अस्पताल में रुके, सहायक को बुलाया और बोले,‘तुम लॉली एक्सटेंशन वाले मरीज़ के पास चले जाओ-दवा की एक ट्यूब साथ ले जाना. अब किसी भी क्षण वह जा सकता है. कष्ट ज्यादा हो तो यह ट्यूब दे देना. जल्दी करो, जाओ.’
दूसरे दिन दस बजे वह फिर वहां पहुंच गए. कार से निकलते ही मरीज़ के कमरे की ओर तेज़ी से गए. मरीज़ जाग रहा था और ठीक दिख रहा था. सहायक ने बताया कि नब्ज़ सही चल रही है. उसने स्टेथेस्कोप मरीज़ के दिल पर रखा, कुछ देर सुना और पत्नी से बोला,‘देवी, अब ख़ुश हो जाओ. तुम्हारा पति नब्बे साल तक ज़िंदा रहेगा.’
अस्पताल लौटते हुए सहायक ने डॉक्टर से पूछा,‘सर, क्या वे जीवित रहेंगे?’
‘अब मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि गोपाल नब्बे साल तक ज़िंदा रहेगा. लेकिन मेरे लिए हमेशा यह पहेली बनी रहेगी कि वह यह हमला कैसे झेल गया!’

Illustrations: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

grok-reply-1

मामला गर्म है: ग्रोक और ग्रोक नज़र में औरंगज़ेब

March 24, 2025
इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

February 27, 2025
फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
Tags: Doctor ke shabdEnglish writersFamous writers storyHindi KahaniHindi StoryHindi writersIndian English writersKahaniMalgudi daysRK NarayanRK Narayan ki kahaniRK Narayan ki kahani Doctor ke shabdRK Narayan Malgudi daysRK Narayan StoriesWords of doctor by RK Narayanआरके नारायणआरके नारायण की कहानियांआरके नारायण की कहानीआरके नारायण की कहानी डॉक्टर के शब्दआरके नारायण मालगुड़ी डेज़कहानीडॉक्टर के शब्दमशहूर लेखकों की कहानीमालगुड़ी डेज़वर्ड्स ऑफ डॉक्टर आरके नारायणहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

Butterfly
ज़रूर पढ़ें

तितलियों की सुंदरता बनाए रखें, दुनिया सुंदर बनी रहेगी

October 4, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)
क्लासिक कहानियां

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
ktm
ख़बरें

केरल ट्रैवल मार्ट- एक अनूठा प्रदर्शन हुआ संपन्न

September 30, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.