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फ़िक्शन अफ़लातून#4 नीली शॉल (लेखिका: राजुल अशोक)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 4, 2023
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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Fiction-Aflatoon_Rajul-Ashok
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कुछ चीज़ें अपने साथ यादों की पोटली लेकर चलती हैं. कहानी प्रतियोगिता फ़िक्शन अफ़लातून में लेखिका राजुल अशोक की इस कहानी में नीली शॉल यादों की एक ऐसी ही भारी-भरकम पोटली लेकर चल रही है.

श्रेया ने चेक इन कर लिया था और इस वक़्त वो लाउंज में फ़्लाइट का इंतज़ार कर रही थी. बार-बार उसकी नज़र बग़ल की कुर्सी पर रखे पैकेट पर जा रही थी, जो चलते वक़्त दीपक फूफू पकड़ा गए थे, जिसे देखकर पहले तो श्रेया को झटका लगा था, क्या दीपक फूफू को पता है कि वो सब जानती है? ये ख़याल आते ही श्रेया ने सकुचते हुए उनके चेहरे की ओर देखा था. वो जैसे कहीं शून्य में देखते हुए कह रहे थे,‘कब से रखा है, किसी के काम भी नहीं आता, इससे तो अच्छा है कि उसे किसी ऐसे को दे दिया जाए जो उसका इस्तेमाल करे, उसका भी भला होगा और विनी को भी शांति मिलेगी.’
श्रेया चुप खड़ी थी और वो बोलते जा रहे थे,‘पहले सोचा था मणि से कहूंगा, वो आई नहीं तो अब तुम ही ले जाओ, मणि के साथ तुमसे भी विनी की गहरा लगाव था, इसे रख लो श्रेया, बस बुआ को पता ना लगने देना वरना वो आफ़त कर देगी.’ श्रेया को धक्का लगा, बुआ आफ़त कर देगी? उसे अपनी निरीह बुआ याद आ गई और श्रेया चाहकर भी मना नहीं कर सकी थी. कभी बुआ ने इसे देख लिया तो दुखी होंगी, क्या पता देखा भी हो और अकेले में रोई भी हों, बुआ की जिन आंखों में उसने कुछ देर पहले चमकते सितारे देखे थे उनमें अब वो दोबारा आंसू तो नहीं आने देगी. बुआ ने चलते समय मीठा दही खिलाया था, पैकेट हाथ में लेते ही श्रेया की ज़ुबान कड़वा गई. चेकइन से पहले मिल जाता तो ये पैकेट सूटकेस में डाल देती, अब तो इसे रास्ते भर ढोना पड़ेगा, इसी की वजह से उसे एक कुर्सी पर बैठना पड़ा था, वरना एयरपोर्ट पर आकर चेकइन के बाद वो कभी नहीं बैठती, घूम-घूमकर आसपास की दुकानें देखती है, ख़ासतौर से किताबों की दुकान पर तो ज़रूर जाती है. उसे दीपक फूफू पर ग़ुस्सा आ रहा था, मन हुआ आज उनसे खुलकर बात कर लेती तो अच्छा रहता, लेकिन क्या फ़ायदा, बात करने से गुज़रा वक़्त फिर लौट आता और लौट आतीं वो तमाम उदास, गीली शामें, जिसमें मणि का उतरा चेहरा और आंसू इकट्ठा थे, फिर फूफू भी तो वापिस चले गए थे. कहती तो किससे कहती, और क्या कहती. कितने अच्छे मन से आई थी, लेकिन वापसी में स्मृतियों की सीवन कितनी बेदर्दी से उधड़ गई थी. बुआ फूफू की शादी की स्वर्णजयंती वर्षगांठ थी. मां ने बड़े मन से बुआ के लिए सुनहरे रंग पर लाल बॉर्डर की साड़ी भेजी थी, उसने बुआ को सजा-धजाकर वो साड़ी पहना दी थी. बुआ ना ना करती रहीं, लेकिन तैयार होकर जब उन्हें फूफू के सामने ले गई तो उनके गालों पर कैसे गुलाब खिल आए थे और आंखों में सितारे चमकने लगे थे. बुआ ख़ुश लग रही थीं, देखते-देखते उसके साथ अजय, सुदीप, सोना और रूपा सभी बुआ को घेर कर खड़े ही गए थे बस एक मणि की कमी थी. ‘मणि होती तो…’ बुआ को अपनी दुलारी मणि याद आ गई थी, लेकिन बात पूरी करते-करते वो रुक गईं थीं. ‘उसका काम भी तो ज़रूरी है,’ उधर दीपक फूफू भुनभुना रहे थे. ‘तुम सब लड़की वाले बन जाओगे तो मैं क्या अकेला बारात लेकर आऊंगा?’
वो बोल पड़ी थी,‘क्यूं फूफू अपनी शादी में तो ये दूल्हा अपनी बारात लेकर अकेला ही आया था!’ वो बुआ-फूफू की मुहलगी थी, बोल तो गई फिर ख़ुद ही ज़ुबान भी काट ली, मां ने बताया था कैसे फूफू बुआ से शादी का प्रस्ताव लेकर घर आ पहुंचे थे, पापा तो राज़ी ही नहीं थे, कहते थे सुमन पढ़ने में तेज़ है, अभी से उसे घर गृहस्थी में नहीं झोकूंगा, फिर लड़के की माली हालत भी ठीक नहीं लगती, अभी-अभी तो नौकरी शुरू की है. लेकिन फूफू अड़ गए थे, बुआ भी उदास हो गई थीं, ये देखकर आख़िर पापा ने शादी के लिए हामी भर दी. फूफू की तरफ़ से शादी में कोई नहीं था, उनका एक भाई पागलखाने में दिन गुज़ार रहा था और दूसरा घर से भाग गया था, ले-देकर मां थीं, तो वो बहू के स्वागत के लिए घर में ही रुक गईं थीं, फूफू की बारात में उनके दो चार दोस्त ही आए थे. श्रेया को लगा उसने ग़लत वक़्त पर मज़ाक़ कर दिया था. लेकिन दीपक फूफू ने बात को हल्का कर दिया,‘तब की बात और थी अब तो तुम हो ना, फिर क्यूं अकेला आऊं?’ सुनकर वो फूफू की ओर चली गई थी.
ख़ूब धूमधाम हुई, मेहमान आए, नाचते गाते बुआ-फूफू ने पचास सालों के साथ का जश्न मनाया. उसे विदा करते वक़्त बुआ की आंखें नम हो गईं थीं, चलते वक़्त हमेशा की तरह उसके हाथ में उन्होंने कुछ दबा दिया, कार में बैठकर उसने मुट्ठी खोली तो जड़ाऊ टॉप्स की डिब्बी थी, श्रेया बुआ का स्नेह याद कर मुस्कुरा दी थी. श्रेया ने इन टॉप्स की तारीफ़ की थी तो चलते समय बुआ ने वो ही टॉप्स उसे दे दिए थे. फूफू के हाथ का पैकेट देखकर उसने सोचा था शायद वो भी उसके लिए कोई उपहार लाए हैं. पैकेट की याद आते ही उसकी नज़र फिर से बग़ल की कुर्सी पर चली गई.
***
फ़्लाइट लेट थी अब लाउंज तेज़ी से भर रहा था और वो दो कुर्सियां हथियाकर बैठी थी. उसने पैकेट गोद में रख लिया और जगह ख़ाली कर दी. अगर वो ये पैकेट एयरपोर्ट पर ही छोड़ दे तो? तसल्ली सी महसूस हुई. लेकिन फिर फूफू, बुआ और विनी के चेहरे याद आ गए. वो फिर बेचैन हो गई. उसने आसपास नज़रें घुमाईं, कुछ लोग मोबाइल पर व्यस्त थे, तो कुछ बार-बार घड़ी देख रहे थे, तीन चार बच्चे भी थे, जिन्हें मांओं ने ज़बरन कुर्सी पर बैठा रखा था, एक छोटी बच्ची लगतार ठुनक रही थी और बार-बार मां के बैग की ज़िप खोलने की कोशिश कर रही थी. श्रेया ध्यान से देखने लगी, मां उसे लगातार कुछ कह रही थी, लेकिन बच्ची सुनने को तैयार ही नहीं थी. आखिरकार ज़िप खुली और मां ने अंदर से निकालकर उसकी गुड़िया दे दी. गदबदाए बदन और घुंघराले बालों वाली गुड़िया हाथ में लेकर बच्ची ख़ुश हो गई थी और मगन होकर खेलने लगी थी. श्रेया ने ठंडी सांस ली, कितना सुनहरा और निश्चिन्त होता है बचपन! एक गुड़िया में ही बहल जाता है? नहीं, कई बार गुड़िया भी होती है, खेल में रोकने टोकने वाला भी कोई नहीं होता, लेकिन नन्हा सा मन अचानक सहम जाता है, उसे मणि की आंखों में चमकते आंसू याद आ गए. मणि, बुआ की सबसे बड़ी बेटी, उससे कुछ ही साल छोटी थी, लेकिन उनके बीच दोस्ती का रिश्ता बड़ा गहरा था. तभी उसकी गोद से पैकेट गिर गया. श्रेया ने चौंककर देखा. बच्ची के हाथ से गुड़िया गिर गई थी, उसे उठाते हुए वो श्रेया के पांव से टकराई थी और पैकेट नीचे गिर गया था, बच्ची की मां उसे डांट रही थी, श्रेया ने मुस्कुराकर उसकी असहजता दूर की और झुककर पैकेट उठाया. पैकेट थोड़ा खुल गया था, अंदर से आसमानी रंग झांक रहा था. श्रेया को याद आ गया, विनी के पास इसी रंग की एक शॉल थी, जो उसे बहुत पसंद थी. उसने देखने के लिए शॉल बाहर निकाल ली, हां वही शॉल थी, किनारे पर कश्मीरी कढ़ाई का सुन्दर सा बॉर्डर था. श्रेया अनायास ही उस पर हाथ फेरने लगी. पहली बार जब ये शॉल उसे दिखा था तब भी बरबस वो हाथ फेरने लगी थी, शॉल तो आकर्षक थी ही, लेकिन उसे पहनने वाली भी बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी, उस दिन विनी को पहली बार साड़ी में देखा था, कटे हुए केश गुच्छ बड़े सलीक़े से कंधे पर लहरा रहे थे, गले में पड़ा हीरे के पेंडेंट वाला चोकर और मैचिंग टॉप्स उस पर जंच रहे थे, हल्के से मेकअप भी किया था, वो घर में घुसी तो सामने ही बैठी थी विनी और उसके बग़ल में ही फूफू बैठे थे,बुआ वहां नहीं थी, फूफू उससे कुछ कह रहे थे और विनी मुस्कुरा रही थी, श्रेया को विनी इतनी अच्छी लगी कि वो उसके पास बैठकर शॉल पर हाथ फिराने लगी, फूफू उसे देख वहां से उठ गए थे और विनी ने उससे पूछा था,‘हाई डार्लिंग, आज तुम्हारी फ़्रेंड नज़र नहीं आ रही, कहां है मणि?’ तब श्रेया को याद आया, अरे वो दोनों तो साथ ही घर में घुसी थीं लेकिन मणि जाने कहां चली गई थी. विनी ने भी ये सवाल शायद ऐसे ही पूछा था क्यूंकि अगले ही पल वो एक बॉक्स उसके हाथ में थमाकर खड़ी हो गई थी,‘कप केक्स फ़ोर यू एंड योर फ़्रेंड!’ वो दरवाज़े से निकल रही रही थी कि तभी ना जाने कहां से फूफू भी आ गए. ‘आओ तुम्हें छोड़ देता हूं’ विनी के स्कूटर की चाभी उन्होंने हाथ में ले रखी थी. फूफू के पीछे विनी बैठ गई, उसने कमर में हाथ डाला और स्कूटर चला गया. फूफू और विनी के जाने के बाद जब श्रेया अंदर आई तो मणि को ड्राइंग रूम के दरवाज़े पर खड़ा पाया, उसने परदे को मुट्ठी में भींच रखा था और बेहद चुप नज़र आ रही थी. श्रेया ने पूछ लिया था, अरे तुम कहां चली गई थी? विनी आंटी तुम्हें पूछ रही थीं, ये देखो कप केक दे गई हैं.’
मणि कुछ नहीं बोली थी लेकिन जब श्रेया कप केक खाने के लिए बुआ से प्लेट लेने गई तब उसने देखा बुआ की आंखें लाल थीं. श्रेया उस दिन समझ नहीं पाई थी, लेकिन बाद में उसने ध्यान दिया था कि जब भी विनी आंटी घर आतीं मणि बुलाने पर भी उनके आसपास नहीं फटकती थी और बुआ घर के अंदर ही रहती थीं. उस दिन भी बुआ अंदर ही थीं, वो और मणि बाहर ड्राइंग रूम में कैसेट लगाकर डांस कर रही थीं कि तभी कालबेल बजी थी. म्यूज़िक प्लेयर ऑफ़ करके मणि ने झट से दरवाज़ा खोला था. सामने स्कर्ट पहने एक सुन्दर सी छरहरी लड़की खड़ी थी, मणि को देखते ही उसने झट से हाथ आगे बढ़ दिया था,‘हेल्लो डार्लिंग’ मणि ने हाथ मिलकर कहा था,‘मेरा नाम मणि है, आपको किससे मिलना है?’
विनी ने पूछा था, मिस्टर सक्सेना घर पर हैं? तब तक रसोई से हाथ पोछती हुई बुआ बाहर आ गई थीं,‘जी नहीं. वो घर पर नहीं हैं, आप बैठिए.’ विनी ने बुआ से बड़े तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा था,‘मेरा नाम विनी डिसूज़ा है ऐंड आई गेस, आप उनकी भाभी हैं?’ बुआ हंसते हुए बोली थीं,‘नहीं, मैं उनकी वाइफ़ हूं.’ विनी एकदम हड़बड़ा गई थी,‘ओह, मुझे पता नहीं था.’ बुआ से दो-चार बातें करने के बाद वो फूफू से मिले बिना चली गई थीं. फूफू जब घर लौटे तो बुआ ने उन्हें है है कर पूरी बात बताई और पूछा,‘क्या मैं सचमुच तुम्हारी भाभी लगती हूं?’ फूफू कुछ बोले बिना वहां से अपने कमरे में चले गए थे. ये तो सच था की फूफू जहां सजीले जवान की तरह बने ठने रहते, वहीं बुआ घर के कामों और पांच बच्चों को संभालने में ही लगी रहतीं, ख़ुद को संवारने या आईने में देखने की फुरसत ही उनके पास नहीं थी, लेकिन उनकी बड़ी-बड़ी आंखें, मुस्कुराते होंठ और चम्पई रंग आज की तरह उस वक़्त भी हमेशा चमकते रहते. उस उस दिन के बाद विनी अक्सर आने लगी, फूफू शहर के नाट्य संसथान में अधिकारी थे, इसलिए कलाकारों का आना कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन ये कलाकार सबसे अलग थी,ज़्यादातर फूफू के आने से पहले ही आ जाती, मणि के लिए खिलौने लेकर आती,बुआ से बतियाती, लेकिन जैसे ही फूफू आते उसकी आंखें उनका पीछा करने लगती. बुआ कभी हंसकर कहती भी थीं,‘ये लड़की तो तुम्हारी भक्त बन गई है.’ फूफू गंभीर मुंह बनाए वहां से हट जाते. कोई हो न हो, लेकिन श्रेया और मणि तो विनी की भक्त बन ही गई थीं. उसके आते ही दोनों ख़ुश हो जातीं. विनी ऑन्टी उनसे खेलती जो थी.
***
एक शाम श्रेया घर पर अपना प्रोजेक्ट तैयार कर रही थी कि मणि हांफती हुई आई,‘पापा का एक्सीडेंट हो गया है.’ श्रेया और उसकी मां तुरंत बुआ के साथ चल पड़े. हॉस्पिटल पहुंचकर देखा, फूफू बेहोश थे, उन्हें काफ़ी चोटें आई थीं, पता लगा था स्कूटर ट्रक से टकरा गया था. ‘स्कूटर! लेकिन टूर पर तो ये ऑफ़िस की कार से गए थे.’ बुआ ने पूछा था. तब पता लगा था कि फूफू स्कूटर पर ही थे, उनके साथ एक लड़की भी थी, जो इन्हें यहां तक लाई थी. उसे ज़्यादा चोट नहीं लगी थी, इसलिए उसे डिस्चार्ज कर दिया गया था, लेकिन फूफू को रोक लिया गया था. बुआ हैरान-सी बार बार बुदबुदाती,‘ये स्कूटर पर क्यों गए थे?’ इसका जवाब तो सिर्फ़ फूफू ही दे सकते थे, इसीलिए ठीक होने के बाद घर आने पर बुआ ने उनके सामने भी ये सवाल दोहराया होगा और फूफू से उनकी बहस हुई होगी. क्योंकि मणि ने उसे बताया था कि रात में पापा-मम्मी से बहुत तेज़ आवाज़ में कुछ कह रहे थे, जिसकी वजह से वो बहुत डर गई थी. हो सकता है बुआ को इससे भी पहले पता लग चुका हो या हो सकता है उस रात पहली बार उन्होंने सच जाना हो. लेकिन श्रेया की प्यारी-सी छोटी बहन उस रात के बाद ही शायद बड़ी होने लगी थी, उसकी शरारतें जाने कहां ग़ायब हो गई थीं. पिता का ग़ुस्सा, मां के आंसू उससे उसका बचपन छीन ले रहे थे. कई बार वो श्रेया से लिपटकर कहती,‘दीदी पापा इतना ग़ुस्सा क्यों करते हैं?’ तब नहीं, लेकिन कुछ साल बाद श्रेया फूफू के ग़ुस्से की वजह जान गई थी. एक दिन मणि ने उससे कहा,‘विनी आंटी गन्दी है. वो मम्मी को रुलाती है.’
श्रेया ने अचकचाकर मणि को देखा था,‘कुछ भी कहती है मणि,अच्छी भली सुन्दर विनी आंटी बुआ को भला कैसे रुला सकती हैं? कितना तो अच्छी डांस करती हैं. हरदम हंसती रहती है.’ लेकिन बुआ के साथ ही मणि भी सच जान गई थी. बिना बोले उसने मां का दुःख महसूस कर लिया था, बुआ की तरह वो भी विनी से दूर रहने लगी थी, विनी जब घर आती तो बुआ रसोई में और मणि किताबों में छिपने की कोशिश करती. सिर्फ़ फूफू ही उससे बात करते, उस वक़्त उनका चिड़चिड़ापन जाने कहां चला जाता. घर को सन्नाटे का घुन खाने लगता. सिर्फ़ बीच-बीच में मणि से छोटे भाई-बहनों का शोर सुनाई देता, जिन्हें समझ ही नहीं थी कि घर में कैसा भूचाल आया है. ऐसे दिनों मणि ज़रूरत से ज़्यादा चुप हो जाती, लेकिन उसकी आंखें चुप नहीं रहतीं. उसकी आंखें ही तो थीं, जिन्हें देख श्रेया कई बार चौंक जाती, उसके कंधे पर हाथ रखती और मणि अपना दिल खोल देती, कई बार वो तमाम जतन करने के बावजूद चुप ही रहती और तब श्रेया जान लेती कि आज कुछ ऐसा गुज़रा है, जिससे मणि अंदर तक टूट गई है. मणि जितना तो नहीं, लेकिन श्रेया भी इस टीस को महसूस करने लगी थी, कई बार तो उसने बुआ को बिलखते और फूफू को गिड़गिड़ाते हुए भी देखा. एक रात जब बुआ की बीमारी की वजह से वो वहीं रुक गई थी, तो अचानक ड्राइंग रूम से आती आवाज़ सुनकर उसे ताज्जुब हुआ था इतनी रात में कौन आया है, उसने देखा, मणि और सारे बच्चे गहरी नींद में थे, बुआ भी सो गई थी, उसे कुछ डर लगा, लेकिन हिम्मत करके वो जब दरवाज़े तक आई फूफू अंधेरे में फ़ोन पकड़े खड़े थे. वह उन्हीं की आवाज़ थी. ‘तुम समझती क्यूं नहीं, आफ़्टर ऑल शी इज़ माइ वाइफ़!’ श्रेया वहीं जड़ हो गई थी, उधर से जाने क्या कहा गया, कि फूफू का याचना भरा स्वर सुनाई दिया,‘लिसन विनी, प्लीज़ ऐसा मत कहो, मेरी बात समझने की कोशिश करो.’ उधर से फ़ोन रख दिया गया था, फूफू चुपचाप फ़ोन के पास खड़े रहे, श्रेया तुरंत वहां से लौट आई. बुआ से उसने कुछ नहीं पूछा, लेकिन मणि ने बताया था की विनी फूफू से शादी करना चाहती है. उसे आश्चर्य हुआ, फूफू से शादी? लेकिन क्यूं? इसका जवाब जिनके पास था, उनसे श्रेया कभी पूछ नहीं पाई. बुआ ने अपना दर्द कभी किसी के साथ साझा नहीं किया, लेकिन कानों-कानों ये ख़बर श्रेया के माता-पिता को भी मिल चुकी थी, कई बार लगता कि शायद आज पापा फूफू से कुछ कहेंगे, लेकिन श्रेया देखती कि अचानक बीच में बुआ आ जातीं और पापा चुपचाप घर लौट आते. बुआ अपने दुःख में सिमट गई थीं, मां और पापा विवाहित बहन की चिंता में घिर गए थे और फूफू, जैसे एक सम्मोहन में जी रहे थे.
***
उस दिन रविवार था. श्रेया नहाकर बाल सुख रही थी कि उसे मणि छोटे बच्चों का हाथ पकड़े आती दिखी. श्रेया को लगा शायद आज कोई बड़ी बात हुई है. वो दौड़कर नीचे आ गई. वाकई बड़ी बात थी. विनी घर आई थी और ज़ार-ज़ार रोते हुए उसने बुआ के पैर पकड़कर कहा था,‘मिसेज़ सक्सेना, अब आप ही मुझे बचा सकती हैं.’
मणि ने घृणा से मुंह सिकोड़कर कहा,‘पक्की ड्रामा आर्टिस्ट है. मां को शीशे में उतरने के लिए ग्लीसरीन लगाकर आई होगी.’
‘तो बुआ ने क्या किया?’ श्रेया ने बेचैनी से पूछा था. ‘करेगी क्या, मुझसे कह दिया, मुझे बहाने से तुम्हारे घर भेज दिया, इन सबको लेकर, मैं उनके सामने से तो हट गई लेकिन छिपकर सारी बातें सुनी हैं, उसकी शादी तय हो गई है. बार-बार मम्मी से कह रही थी. मुझे नहीं करनी ये शादी. प्लीज़, मेरे पैरेंट्स को समझा दीजिए. और भी जाने क्या-क्या.’ मणि की आंखें ग़ुस्से से जल रही थीं. ‘और दीदी उस वक़्त पापा वहीं खड़े थे, चुपचाप जैसे वहां हो ही नहीं.’
फूफू ने तटस्था ओढ़ी, थी लेकिन बुआ ने विनी का मुंह धुलाकर उसे पानी पिलाया था. बहुत देर तक समझाती रही थीं. श्रेया उस दिन जब मणि को छोड़ने बुआ के घर आई, तो विनी की शादी का कार्ड मेज़ पर पड़ा था. फूफू सोफ़े पर उदास बैठे थे. उनके कंधे पर ऐसा ही आसमानी शॉल पड़ा था. शायद विनी देकर गई थी. श्रेया ने उस वक़्त सोचा था कि तूफ़ान गुज़र गया है, लेकिन दो महीने बाद मणि ने बताया था,‘दीदी विनी फिर आई थी और पापा के कंधे पर सर रखकर देर तक रोती रही थी. उसका शराबी पति उसे बहुत तंग करता था, पापा उसे घर छोड़ने गए हैं.’श्रेया फिर से चिंतित हो गई, कहीं विनी वापिस आ गई तो क्या होगा? वो बुआ को देखती, लेकिन उसकी पथराई आंखों में कुछ नज़र नहीं आता था. दिन गुज़रते गए एक दिन मणि ने आकर बताया की विनी नहीं रही. वो डांस परफ़ॉर्मेंस देकर लौटी तो पति से कुछ झगड़ा हुआ वो रोती हुइ; विनी को छोड़कर घर बंद कर बाहर चला गया, दो दिनों तक घर बंद रहा और जब ताला तोड़ा गया तो विनी की लाश मिली. श्रेया बुआ के घर गई, तो उसने सुना फूफू रो रोकर बुआ से कह रहे थे, जब वो दुनिया में थी तब उसके साथ रह नहीं सकता था, लेकिन जब वो दुनिया से जा रही थी उस वक़्त भी मैं उसके साथ नहीं था, इसके लिए ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा, तुमने उसका चेहरा देखा होता सुमन, कितना दर्द लेकर गई है वो!’ वो हिचकियां ले रहे थे, बुआ की आंखों में भी आंसू थे, अपने लिए, फूफू के लिए या फिर विनी के लिए? ये वो नहीं जान सकी. लेकिन उसने ये देखा था की उस वक़्त बुआ फूफू की पीठ पर हाथ फिराती जा रही थी. और मणि, उसकी आंखें जाने कैसी हो रही थीं.
***
उसी साल मणि ज़िद करके हॉस्टल चली गई, फिर बाहर ही रही. छुट्टियों में भी घर आने से बचती. होस्टलवासी मणि आख़िरकार फ़ेलोशिप लेकर विदेश चली गई. बुआ लगातार उसे वापिस आने और शादी करने की चिट्ठियां भेजती रहीं, इस बार तो श्रेया से भी कह बैठीं,‘मणि को समझाओ श्रेया, शादी करने को तैयार ही नहीं होती, एक से बढ़कर एक लड़के ढूंढ़े लेकिन मना कर दिया. उससे बात करके देखो, वहां कोई पसंद है तो उसी से शादी कर ले. उसे समझाना बेटा, ये जीवन ऐसे नहीं चलता.’ श्रेया जानती है मणि को वो कभी नहीं समझा पाएगी, वो क्या, उसे अब कोई नहीं समझा पाएगा.
आज इतने सालों बाद इस नीली शॉल ने कितनी यादें ताज़ा कर दीं. फूफू और बुआ से उसने कभी विनी के बारे में बात नहीं की और ना ही कभी करेगी. वो नहीं चाहती बुआ के ज़ख़्म कभी ताज़ा हों. इसीलिए वो इस शॉल को किसी ज़रूरतमंद को देगी और प्रार्थना करेगी, विनी की आत्मा को शांति मिले और मणि के मन को सुकून मिले. फ़्लाइट आ गई थी उसने नीली शॉल लपेटकर वापिस पैकेट में रख दी और उठ खड़ी हुई.

Illustration: Pinterest

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