आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी: नज़ीर बनारसी की नज़्म
छब्बीस जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र बन गया. उसे दिन के महत्व को बताने-समझाने के लिए कई कवियों ...
छब्बीस जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र बन गया. उसे दिन के महत्व को बताने-समझाने के लिए कई कवियों ...
संविधान में मिले तमाम अधिकारों के बावजूद आम आदमी को यहां-वहां भटकना पड़ रहा है. इस हक़ीक़त को बयां कर ...
कविता लिखना और फसल उगाना दोनों सिद्धांत की बात है, ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता सिद्धांत और ढोंग के बीच का ...
यूं तो बिजली की चमक के काफ़ी बाद आवाज़ सुनाई देने का वैज्ञानिक कारण होता है. पर एक कवि इसके ...
बदली हुई हवा से कुछ असहज कर देनेवाले सवाल पूछती है कैफ़ी आज़मी की कविता ‘ऐ सबा लौट के किस ...
क़ैसर-उल ज़ाफ़री की यह शायरी प्रतीकों और विरोधाभासों के साथ ख़ूबसूरती से खेलते हुए सीधे दिल में उतर जाती है. ...
देश के मेहनतकश वर्ग और गांधी का नाम लेकर नेतागिरी करनेवालों की ज़िंदगी में कितना फ़र्क़ है, अदम गोंडवी यह ...
वर्ष 1964 में आई फ़िल्म हक़ीक़त का यह देशभक्ति गीत कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखा गया था. देश के लिए मर ...
बच्चे के लिए मां का कोई एक रूप नहीं होता. वह मां को हर रूप में देख सकता है. जैसे ...
उर्दू शायरी प्रेम की विसंगतियों को एक कसक के साथ जताने के लिए जाती है. इसी परंपरा का पालन कर ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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