लखनऊ का चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया कहलाने वाले जाने-माने इतिहासकार, लेखक योगेश प्रवीन का निधन. नवाबों के शहर के इतिहास और संस्कृति पर दो दर्जन के क़रीब किताबें लिखनेवाले योगेश शहर का इतिहास जानने के इच्छुक लोगों की पहली पसंद थे.
गोमती के किनारे बसा उत्तर प्रदेश की राजधानी का शहर लखनऊ, भारतीय राजनीति की दिशा भी तय करता है. यानी हम कह सकते हैं भूगोल और राजनीति में इस घनी बसाहट वाले शहर का बड़ा महत्व है. पर शहर लखनऊ जितना भूगोल और राजनीति की किताबों में रहता है, उससे से कहीं ज़्यादा क़िस्सों-कहानियों में रहता है. और इस शहर के इतिहास को क़िस्से-कहानियों के रूप में अपने अंदर समेट कर रखने वाले लखनवी शख़्स का नाम था योगेश प्रवीन. उम्र के आठवें दशक में युवाओं जैसे जज़्बे के साथ शहर की कहानियां (इतिहास) सुनानेवाले लखनऊ का चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया कहलाने वाले योगेश प्रवीन अपने इस महबूब शहर से रुख़सत कर गए.
लखनऊ का चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया
पद्मश्री से सम्मानित इतिहासकार और लेखक योगेश को यूं ही इस ऐतिहासिक शहर का विश्वकोष नहीं कहा जाता था. उन्होंने लखनऊ के इतिहास, इसकी संस्कृति पर दो दर्जन से अधिक किताबें लिखी थीं. दास्तान-ए-अवध, ताजदारे-अवध, बहार-ए-अवध, गुलिस्तान-ए-अवध, बहार-ए-अवध, गुलिस्तान-ए-अवध, डूबता अवध, दास्तान-ए-लखनऊ, लखनऊनामा, आपका लखनऊ जैसी उनकी कई किताबें चर्चित रहीं. लखनऊ की पृष्ठभूमि पर बननेवाली फ़िल्मों और सीरियल्स के निर्माता-निर्देशक शहर को बारीक़ी से समझने के लिए योगेश प्रवीन से संपर्क किया करते थे. निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली जब उमराव जान बनाने जा रहे थे, तो लखनऊ के इतिहास के बारे में जानने के लिए उन्होंने योगेश प्रवीन से ही संपर्क किया था. योगेश प्रवीन ने तालकटोरा स्थित उमराव जान की क़ब्र खोज निकाली थी.
वर्ष 2020 में पद्मश्री से सम्मानित होनेवाले योगेश प्रवीन यश भारती, यूपी रत्न और नैशनल टीचर अवॉर्ड सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके थे. उम्र के आठवें दशक में बिना किसी लंबी बीमारी के योगेश प्रवीन का यूं अकस्मात चले जाना शहर के दीवानों को मायूस कर गया है. आख़िर वे शहर में रहते थे और शहर उनके अंदर. उनके अचानक जाने से तहजीब के इस शहर के कई जीवंत क़िस्से भी चले गए.