बदलते समय के साथ भारत भी बदल रहा है और हमारे खानपान का तरीक़ा भी. रेडी टू ईट (RTE) और रेडी टू कुक (RTC) फ़ूड अब हमारे भोजन में शामिल होने लगे हैं. सुज़ु ऐग्रो प्राइवेट लिमिटेड, जो मुंबई बेस्ड रेडी टू कुक और रेडी टू ईट फ़ूड प्रोडक्ट्स की कंपनी है, की को-फ़ाउंडर और सीईओ प्राची पाटिल बता रही हैं कि किस तरह भारत में अब आरटीई और आरटीसी फ़ूड की मांग बढ़ रही है.
ज़रा इन दो दृश्यों पर ध्यान दीजिए:
पहला दृश्य: आप घर देर से पहुंचे/पहुंचीं, थकान से चूर, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं और बहुत तेज़ नींद आ रही है. तभी ध्यान आया कि आज तो आपकी मेड ने भी छुट्टी ली थी. आप परेशान थे/थीं, लेकिन आपको थोड़ी राहत मिली यह सोच कर कि दो दिन पहले जो आपने पैकेज्ड पावभाजी ख़रीदी थी, वह आज खाई जा सकती है. आपने अच्छा सा डिनर किया और आराम से सोने चले गए.
दूसरा दृश्य: आपके दोस्तों ने सर्प्राइज़ दिया और इकट्ठा हो कर आपसे मिलने आ पहुंचे. आप जानते/जानती हैं फ्रिज में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो उन्हें सर्व किया जा सके. ऑनलाइन फ़ूड डेलिवर होने में भी बहुत समय लगेगा. तभी आपको ध्यान आया कि फ्रीज़र में फ्रोज़न चिकन नगेट्स रखे है और शेल्फ़ में पैनकेक मिक्स भी रखा हुआ है. तो आप लोगों की गपशप के बीच थोड़ी-मोड़ी मंचिंग भी चलती रही.
इन दोनों ही परिस्थितियों में झटपट बन जाने वाला क्विक मिल आपके बेहद काम आया. पहले दृश्य में पैकेज्ड पावभाजी रेडी टू ईट (आरटीई) और दूसरे केस में फ्रोज़न चिकन नगेट्स रेडी टू कुक (आरटीसी) फ़ूड हैं. और आज के समय में केवल आप ही नहीं हैं, जो ऐसे प्रोडक्ट्स पर भरोसा करते हैं. दरअसल शहरी भारतीय घरों में अब आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल लोग नियमित तौर पर भी करने लगे हैं.
क्या हैं आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स
यदि आरटीई प्रोडक्ट्स की बात करें तो इनका मतलब ऐसे पैकेज्ड फ़ूड से है, जो खाने के लिए एकदम तैयार हैं. आपको उनका स्वाद बढ़ाने के लिए केवल उन्हें गर्म भर करना पड़ता है. जबकि आरटीसी प्रोडक्ट्स वो होते हैं, जो आधे पके होते हैं, जिन्हें उबालना पड़ता है, तलना पड़ता है या फिर अच्छी तरह गर्म करना पड़ता है और तभी आप उन्हें खा सकते हैं. बहुत जल्दी बन जाने के कारण आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स हमारे देश में उन लोगों के बीच ख़ासे लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनके पास समय की कमी है.
क्या है इनकी पृष्ठभूमि
सदियों से भारतीय घरों के बारे में यही जाना जाता रहा है कि यहां के भोजन में घर पर बने कई तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं, लेकिन आधुनिक युग ने यहां भी अपने हिस्से का योगदान दे दिया है. शहरों में आम लोग इन दिनों बहुत व्यस्त जीवन जीते हैं, काम में डूबे रहते हैं, डेडलाइन्स से जूझते रहते हैं. इतने बिज़ी शेड्यूल में और पूरे दिन के काम के बाद की थकान के चलते अब घर पर ढेर सारे व्यंजनों वाला खाना पकाने के लिए समय ही नहीं बच पाता. यही वजह है कि लोगों की पिछले एक दशक में आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स पर निर्भरता बढ़ गई है. इन प्रोडक्ट्स की मांग कामकाजी लोगों और अलग-अलग शहरों में अपने घरों से दूर रह रहे अकेले सदस्यों के बीच बढ़ी है. इनमें से कई के पास कुकिंग के लिए समय की कमी है तो कई अपने अकेले के लिए खाना पकाना ही नहीं चाहते. यही वजह है कि आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स पर लोगों की निर्भरता बढ़ रही है, क्योंकि वे रोज़ाना बाहर का खाना नहीं खा सकते. क्योंकि वह सेहत के लिए बुरा हो सकता है.
इनका इस्तेमाल बढ़ने का कारण
पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती मांग के साथ आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स बनाने वाली इंडस्ट्री का भी विकास हो रहा है. कोविड 19 पैन्डेमिक के दौरान इस सेक्टर ने दुनियाभर में एक बार फिर बढ़ोतरी देखी. कोविड का डर और उसके बाद के लॉकडाउन और सुरक्षा नियमों के चलते एक बड़ी आबादी वर्क फ्रॉम होम कर रही थी. पिछले ढाई वर्षों में घर से काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है और वे सभी खानपान के हेल्दी विकल्प तलाश रहे हैं, आरटीई और आरटीसी प्रोडक्ट्स पर भरोसा कर रहे हैं. इंडस्ट्री एक्स्पर्ट्स के अनुसार, इन प्रोडक्ट्स की मांग में और बढ़ोतरी इस लिए भी हुई कि लोग पैन्डेमिक के दौरान बाहर कुछ खाने जाने और बाहर से खाना मंगाने से भी बच रहे थे, ताकि कोविड संक्रमण से बच सकें. अत: इन प्रोडक्ट्स की मांग में इतनी बढ़ोतरी हुई कि इस बाज़ार में नए खिलाड़ी भी आए और इन प्रोडक्ट्स की रेंज में भी बहुत जल्दी इज़ाफ़ा हो गया.
अब यह परिदृश्य कैसा है
मार्केट सर्वेज़ की मानें तो लोग अधिकतर आरटीई प्रोडक्ट्स की रेंज में से पारंपरिक चीज़ें लेना ज़्यादा पसंद करते हैं, जैसे- पनीर, चना, राजमा, पावभाजी, परांठा इसके अलावा पाश्चात्य व्यंजन जैसे- पिज़्ज़ा और सॉसेजेज़ भी पसंद करते हैं. वहीं आरटीसी प्रोडक्ट्स की बात करें तो इनमें रेडी टू कुक ग्रेवीज़, खिचड़ी, सूप, पास्ता, नूडल्स, दोसा और इडली बैटर, रेडी टू फ्राइ नगेट्स, फ्रिटर्स और फ्राइज़ के अलावा डिज़र्ट मिक्स, मसलन- पैनकेक और गुलाब जामुन मिक्स ख़रीदना पसंद करते हैं. जो ब्रैंड्स इन व्यजंनों के प्रिज़र्वेटिव्स-फ्री वर्शन देते हैं, उनकी मांग ज़्यादा है, क्योंकि भारत के लोग भी धीरे-धीरे खाने के सेहतमंद विकल्पों को ज़्यादा पसंद कर रहे हैं.
इसका भविष्य सुनहरा है
रेडसीर कंसल्टिंग सर्वे के अनुसार, पैन्डेमिक के दौरान होम-कुक्ड फ़ूड पर 61% की वृद्धि हुई थी. यह अध्ययन बताता है कि वर्ष 2024 तक आरटीसी का बाज़ार भारत में 18% की दर से बढ़कर लगभग 4800 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा. वहीं आरटीई का बाज़ार जिसे वर्ष 2020 में 8000 करोड़ रुपए आंका गया था, वर्ष 2025 तक दोगुना हो जाएगा. तो अगली बार जब आप इन्स्टैंट चिकन सूप या दोसा मिक्स का पैकेट खोलें थोड़ा ख़ुश हो जाइएगा, क्योंकि आप भी अपने देश के इस सेक्टर के विकास का हिस्सा हैं!
फ़ोटो: फ्रीपिक