हम सब इतने आरामपसंद हो चुके हैं कि हमारा चलना, घूमना ही मुश्क़िल से हो पाता है. ऐसे में कोई आपसे यह पूछे कि क्या आप नंगे पैर चलते हैं कभी? तो आपका जवाब ‘ना’ होना ही हुआ. पर जब आप डॉक्टर दीपक आचार्य से नंगे पैर चलने के सेहत से जुड़े फ़ायदों के बारे में जानेंगे तो यक़ीनन बेहिचक कम से कम सप्ताह में एक बार इस तरह की वॉक को अपने जीवन का हिस्सा बना लेंगे.
अपने दिल पर हाथ रखो और मुझे सच सच बताओ कि आप अपने घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर 500 मीटर यानी आधा किलोमीटर तक पैदल नंगे पांव आख़िरी बार कब चले थे? याद नहीं आ रहा ना? तो कोई बात नहीं, ज़्यादातर लोगों को वाक़ई याद नहीं आ रहा होगा. भागने के चक्कर में हमने चलना भुला दिया, नंगे पांव चलना तो बिल्कुल ही भुला दिया… और अब कभी नौबत आ जाए नंगे पांव चलने की, तो जान हलक में अटक जाती है, है ना? नर्म, मुलायम, गद्देदार जूतों, चप्पलों और सैंडिल्स ने पैरों को इस कदर सहेजा कि मुए पालने के बन के रह गए हैं, है ना नाज़ुक जनता?
हम आरामपसंद जीव हो चुके हैं. कांटा ना चुभ जाए, पत्थर ना गड़ जाए, चोट ना लग जाए, रफ़्ता कम न हो जाए इस डर के चक्कर में हमने अपने तलवों को गद्दे भेंट स्वरूप दे दिए. गद्दों, नर्म मुलायम सतह, चिकनी फ़र्श पर टिकने वाले तलवे अब नाज़ुक हो चुके हैं. यक़ीन ना हो तो तलवों पर गुदगुदी करवा के देखिए, झनझना जाओगे. अब इसकी वजह ये है कि तलवे नाज़ुक और नज़ाकत वाले बनकर रह गए हैं. तो इससे नुक़सान भला क्या हुआ? हुआ, बहुत हुआ… जोड़ दर्द, कमर दर्द हुआ, बॉडी का बैलेंस बिगड़ा और मिट्टी और ज़मीन से जुड़ाव दूर हुआ और उसका सीधा असर मानसिक स्तर पर हुआ. बात समझ रहे हैं मेरी? तनाव दूर करना हो, शरीर से नेगेटिविटी दूर करना हो, लंबे समय के बाद जोड़ दर्द, बदन दर्द और शरीर के बैलेंस की समस्या से जूझने से बचना हो तो हफ़्ते में एक बार, सिफ़र् एक बार, 500 मीटर तक पैदल, नंगे पांव चलने की आदत डाल लें… शुरुआत 100 मीटर चलकर करें, आहिस्ता-आहिस्ता इसे 500 मीटर तक लेकर जाएं, लेकिन ऐसा हर हफ़्ते करें, या तब-तब करें, जब-जब मौक़ा हाथ लगे.
नंगे पांव खुले मैदान में भटकने का, नंगे पांव चलने से होने वाले फ़ायदों के वैज्ञानिक प्रमाण भी हैं, लेकिन यहां आपका दोस्त दीपक आचार्य उन एक्सपेरिमेंट्स पर ज़्यादा बात नहीं करेगा. उन एक्स्पेरिमेंट्स से ज़्यादा बड़े हमारे बुज़ुर्गों के एक्स्पीरियंसेज़ हैं, उन्हें अपनाना ज़रूरी है. भागने की रफ़्तार कम कीजिए, थोड़ा पैदल भी चलें याद है ना, हमारे बुज़ुर्ग आज भी कहते हैं, घास पर नंगे पांव चलो, आंखों की रौशनी बेहतर होती है, है ना याद? तलवों को थोड़ा दबाव सहने की आदत दिलाएं, एक जैसी सतह, गद्देदार सपोर्ट की वजह से पैर का ये हिस्सा कमज़ोर होता जा रहा है… नंगे पांव चलेंगे तो लम्बी दूरी तक फ़ायदा मिलेगा. हफ़्ते में सिर्फ़ एक ही बार तो करना है, कीजिए. ना… मेरे लिए नहीं, अपने आप के लिए कीजिए. ज़मीन से सीधा संपर्क होगा तो सारी नेगेटिविटी छू मंतर होती चली जाएगी, सच्ची…!
भटको थोड़ा, आज़माओ तो सही अपने देश का ज्ञान, मानो तो सही बुज़ुर्गों की बात. एक बार फिर याद दिला दूं, सिर्फ़ एक बार, हफ़्ते में सिर्फ़ एक बार वो भी सिर्फ़ 500 मीटर, नंगे पांव चलना शुरू कर ही दीजिए.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट