• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ओए हीरो

दाग़… नहीं बुलंद आवाज़ हूं मैं: स्वर्णकांता

विटिलिगो का बुलंदी से सामना कर रही महिला की प्रेरणादायी कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 15, 2022
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मेरी डायरी
A A
दाग़… नहीं बुलंद आवाज़ हूं मैं: स्वर्णकांता
Share on FacebookShare on Twitter

विटिलिगो एक ऐसी स्किन डिज़ीज़ है, जिसमें त्वचा के मेलानिन प्रोड्यूस करने वाले सेल्स, जिन्हें मेलानोसाइट्स कहा जाता है, सही तरीक़े से काम करना बंद कर देते हैं. यह एक ऑटोइम्यून डिज़ीज़ है और दुनियाभर की दो प्रतिशत आबादी को यह समस्या है. पत्रकार, एडिटर और टेक ब्लॉगर स्वर्णकांता भी विटिलिगो का सामना कर रही हैं. उनकी डायरी के पन्नों में जानिए कितनी हिम्मत से उन्होंने इसका सामना किया, ताकि यदि आप इस समस्या का सामना कर रहे हों तो अपने प्रति या अपने आसपास किसी को इस बीमारी से जूझते देखें तो उनके प्रति संवेदनशील बन सकें. हमारे देश में बॉडी शेमिंग आज भी एक समस्या है. इसे पढ़ कर यदि आप बॉडी शेमिंग से किनारा कर लेंगे तो यक़ीनन इन पन्नों का असल उद्देश्य पूरा हो जाएगा.

‘‘रंग-रूप कम था. मोहल्ले वाले, दोस्त, रिश्ते-नाते बेचारी की तरह देखते, भेद करते. पीठ पीछे काली-कलूटी बैंगन लूटी कहते. बार-बार एहसास कराते, तुम कमतर हो. बिना किसी गुनाह, मैं शर्मिंदगी की पोटली लिए फिरती. ख़ुद को एक खोल में क़ैद कर लिया. सबके सामने चुप रहने लगी. हां, एक सांवली लड़की मेरी हमजोली थी, पर फ़ेयर ऐंड लवली पक्की सहेली थी.

‘‘काश, तब किसी ने मेरे कच्चे मन को समझाया होता. बताया होता, कि ये कोई बड़ी बात नहीं कि ख़ूबसूरत क़द-काठी, रंग-रूप और ‘परफ़ेक्ट बॉडी’ की परिभाषा बाज़ार और पितृसत्ता ने मिलकर गढ़ी है. तुम सुंदर हो, कभी ख़ुद को मत हार जाना. पर लोग हर राह में चाबुक लिए खड़े रहे. मैं समाज के बनाए इस खांचे में फ़िट नहीं हो पा रही थी. कमतरी का एहसास इतना हावी हुआ कि स्कूल हो, कॉलेज हो, इश्क़ हो, जीवन हो… हर जगह लाइन में सबसे पीछे रहती. मन घुट रहा था.

इन्हें भीपढ़ें

इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

इस दर्दनाक दौर की तुमको ख़बर नहीं है: शकील अहमद की ग़ज़ल

February 27, 2025
फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
Butterfly

तितलियों की सुंदरता बनाए रखें, दुनिया सुंदर बनी रहेगी

October 4, 2024

‘‘अब शादी की बारी थी. जैसा कि होना था, लड़के वालों के सामने मेरी परेड लगने लगी. पूरी मेहनत लगन से तैयार होती. पर… रंग दबा हुआ है, बस एक शेड और साफ़ होता, ब्यूटी-पार्लर में तैयार करवा लेते तो कोई छांट ही नहीं सकता था… और भी कई बातें सुनने को मिलतीं. सारे सब्जेक्ट में फ़ेल कर दी जाती. बार-बार रिजेक्ट होने से पूरी ज़िंदगी रेड मार्क लगने लगी थी. तभी किसी रिश्तेदार ने आगे बढ़ कर मुझे इस तकलीफ़ से निकाला. और आख़िर में मुझ जैसी लड़की के दिन ‘फिर’ गए. मेरे सांवलेपन के ऐब के बावजूद जिन्होंने मुझे स्वीकारा. उनसे फ़ोन पर हिदायतें मिलने लगी थीं- धूप में मत निकलना, चेहरे पर दही-बेसन और नींबू रोज लगाना, सोते वक़्त 4-5 बूंदें जैतून का तेल लगाना मत भूलना. मन की घुटन बढ़ती जा रही थी. पूरे परिवार से जब पहली मुलाक़ात हुई तो फुसफुसाहट शुरू हो गई, लड़की का रंग कितना दबा हुआ है. मैं उन सबके एहसान तले और दब गई थी, आख़िर किसी ने मुझे रिजेक्ट जो नहीं किया. पर भविष्य की आशंकाओं से मन कांपता रहता. फिर हिम्मत की और उस होने वाली शादी से निकल आई. एक संजीदा, समझदार साथ ने बीते वक़्त की सारी कड़वाहटें भुला दीं. ख़ुद के लिए मुंह न खोलने वाली मुक्ता, दूसरों के लिए आवाज़ उठाने लगी. पटना से शुरू हुए जीवन के सफ़र में दिल्ली का पड़ाव आया. सब अच्छा था. रूह ख़ुश थी.

‘‘वर्ष 2017 में मुंबई आई. आने के एक साल बाद अचानक एक दिन किसी ने टोका था, तुम्हारे चेहरे पर ये दाग़ कैसा है… सफ़ेद दाग़. पिछले बरसों में मेरी बुनावट कुछ ऐसी हो गई थी कि लुक की कोई परवाह नहीं होती. बिंदास बिना आईना देखे एक चोटी बनाती, ना सजना-संवरना और ना कोई मेकअप. इसलिए सफ़ेद दाग़ सुना तो यही लगा… तो क्या हुआ? एक ही झटके में सब भुला दिया. आईने से दोस्ती तो थी नहीं. इसलिए कई महीने बाद जब फिर से किसी ने टोका तो ध्यान आया. दाग़ धीरे- धीरे बढ़ते जा रहे थे. फिर तो कॉन्फ़िडेंस का दामन भी छूटने लगा. ख़ुद को मॉर्डन और मज़बूत मानने वाली मुक्ता का मन उसके साथ लुका-छिपी खेल रहा था.

‘‘लड़की सरेंडर करने को तैयार नहीं थी. इस बीच लोगों की नज़रें चुभनी शुरू हो गई थीं, रास्ते पर, बाज़ार में, दुकान पर, किसी पार्टी में, मोहल्ले में… कई बार जो पहले मिलते ही तपाक से बातें करने लगते थे, अब रास्ते में देखते तो चुप रह जाते. ये चुप्पी खलने लगी थी. रेशा रेशा कुछ था, जो मन को कचोट रहा था. एक दिन मार्केट जा रही थी. जैसे ही ऑटो से उतरने लगी, ड्राइवर की नज़र मुझपर पड़ी. लगभग तरस खाता हुआ बोला, आपके घर का तो कोई पानी भी नहीं पीता होगा. मेरी तो हंसी छूट गई, सच में. जानती हूं उसका इशारा किस ओर था. मैं बस इतना ही कह सकी, भइया कुंए के मेंढक कब तक बने रहोगे? बाहर निकलो, दुनिया बहुत बदल चुकी है.

‘‘पर दुनिया की हवा बदली थी, खांचा तो वही था, बॉडी शेमिंग का कोई मौक़ा नहीं छोड़ने वाला. पारंपरिक सोच वाले ‘विटिलिगो’ यानी सफ़ेद दाग़ को छुआछूत की बीमारी और अपशगुन मानते हैं. पुराने जमाने में तो इसे कोढ़ जैसा कुछ मानते थे. आज लोग आधुनिक दिखने के लिए भले बाहर से तो शो नहीं करते, पर दिल में कुछ गांठ ज़रूर बना लेते हैं.

‘‘देह के दाग़ जब बढ़ने लगे, तो दिल के दाग़ गहरे होने लगे. अगले दो-तीन साल बड़े भारी रहे. घर और बाहर सबको दिखाती कि मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, पर फ़र्क़ तो पड़ने लगा था. कितनी ही बार डोर बेल बजने पर, झट से दरवाज़ा नहीं खोल पाती थी. पहले ख़ुद को समेटती, सामने वाले की किसी भी नज़र के लिए मन को तैयार करती. कभी घर आए लोगों के समाने आने से बचती. अचानक वीडियो कॉल आ जाए, तो कतरा के निकल जाती. कोई दोस्त बहुत दिन बाद मिले तो, असहज ना हो जाऊं इसलिए दाग़ छिपाती. कमज़ोर पड़ रही थी, पर ख़ुद को प्यार करने, ख़ुद को स्वीकार करने की जद्दोजहद जारी थी. भरोसा था जीत जाऊंगी.

‘‘धीरे- धीरे बाहर निकलने से, कहीं जाने से कतराने लगी. वर्क फ्रॉम होम अच्छा लगने लगा. जिसे सजना-संवरना पसंद नहीं था, वो मेकअप करने लगी थी. जिसके मेकअप किट में सिवाय काजल के कुछ भी नहीं होता था, वहां कंसीलर, लिप लाइनर, महंगा फ़ेस पाउडर, फ़ाउंडेशन, डार्क लिपस्टिक भरे होते. लगता, मुंह चिढ़ा रहे हैं. मानो कह रहे हो, हमें ख़ुद से दूर रखा, देखो अब हम कैसे बदला लेते हैं?

‘‘मैं मेकअप करके ‘ख़ूबसूरत’ बन गई थी. कहीं कोई दाग़ नहीं दिखता था. बाहर पूरे कॉन्फ़िडेंसस से जाने लगी. ख़ुश रहने लगी. पर लम्हा लम्हा मेकअप बोझ लगने लगा. मैं अब ख़ुश क्यों नहीं थी, मुझे समझ नहीं आ रहा था. किसी को पता ना चले, मैं बेदाग़ दिखूं यही तो मैं चाहती थी. पर उलटा हो रहा था. ये बोझ अब मन पर सरकने लगा था. भीतर कुछ छटपटाता रहता. मैं असहज होने लगी. फिर समझ में आया ऐसे नहीं रह सकती. विटिलिगो से मैं एड्जस्ट नहीं कर पा रही थी.

‘‘मैं ख़ुद को ये भी समझाती कि मेरी सूरत अच्छी नहीं, तो क्या सीरत तो अच्छी है. पर मन के भीतर भारी सवाल जवाब चल रहे थे. ब्लैक इज़ ब्यूटिफ़ुल माना जाता है; सांवली है तो क्या, नैन नक्श तो अच्छे हैं; मोटी तो है, पर कितनी फरहर (active) है ऐसा कहा जाता है. काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं जैसे न जाने कितने तराने गाए जाते हैं. ये सोचते-सोचते ऐसा लगने लगा डार्क, कमतर सूरत, चमड़ी, शरीर वालों पर कितना प्रेशर है, अच्छा होने का, पर क्यों? लड़की है तो आज्ञाकारी ही होगी, गुणों की खान होगी, लड़का है तो आवारा होगा, उद्दंड होगा, झगड़ालू होगा, स्वार्थी होगा. मां है तो सुबह सबसे पहले वही उठेगी, सबसे आख़िर में ही रोटी खाएगी, पिता हैं तो ग़ुस्सैल ही होंगे, कितनी रूढ़ियां, पूर्वाग्रह पाल रखे हैं हमने?

‘‘किसी भी तरह की शारीरिक कमी या कंडिशन से जूझ रहे व्यक्ति पर बहुत अच्छा होने का प्रेशर आख़िर क्यों है? इसलिए कि उसमें समाज के तय पैमाने के हिसाब से कमी है. मतलब उसमें बहुत सारी ख़ूबियां होनी चाहिए, उसे ख़ुद को प्रूव करना, साबित करना होगा. गोरे से, सुंदर से, छरहरे से तो ख़ुद को साबित करने को नहीं कहा जाता? ऐसे न जाने कितने स्टीरियोटाइप हैं. डार्क इज़ ब्यूटत्रफ़ुल कहना भी तो रंगभेद ही है, बेटी को प्यार से बेटा पुकारना भी तो लिंगभेद ही है. कहीं जाने अनजाने हम ऐसी कमी से जूझ रहे लोगों के लिए नई बंदिशें तो नहीं गढ़ रहे? क्यों वो भी एक इंसान की तरह नहीं रह सकते, जिसमें अच्छाई भी होती है, तो दूसरी कमियां भी हो सकती हैं.

‘‘सुंदर होना कुदरती नहीं, ज़रूरी बना दिया गया है. अच्छा दिखना, संवरना कोई बुरी बात नहीं, पर उसे एक पैमाना, कसौटी के रूप में क्यों देखना? हमें दूसरों को इंसान नहीं देह के रूप में देखने की आदत हो गई है, ख़ासतौर से महिलाओं को. इस सोच ने हिंसा और ग़ैरबराबरी को ही बढ़ाया है.

‘‘इसी बीच एक दिन मेरी बेटी ने इंस्टाग्राम पर विनी हर्लो की तस्वीरें दिखाई. गूगल किया तो कई और नाम मिले. इन सबसे मैं ख़ुद को कनेक्ट करने लगी थी. लगा इससे आगे जहान और भी है. मैं अकेली नहीं. उनकी हिम्मत, ख़ुदमुख्तारी, बोल्डनेस मुझमें आ रही थी. मैं सोचने लगी थी, ये सिर्फ़ एक नामुराद स्किन की बीमारी ही तो है!

‘‘मैं ख़ुद से भी सवाल कर रही थी. मैं अपने आप से नाउम्मीद कैसे हो सकती हूं? मैं सुंदरता की तथाकथित परिभाषा के हिसाब से सुंदर नहीं, चलो मान भी लूं, पर मैं केवल स्त्री तो नहीं, एक इंसान भी हूं. वो इंसान कैसे हार सकता है? ख़ुद से ये मेरी बगावत थी, प्रोटेस्ट था. मतलब मैं डिप्रेशन में तो थी, पर ख़ुद से नाउम्मीद नहीं थी. एहसास हुआ कि ऐसे घुटकर नहीं जी सकती. जानती हूं, मैं समाज के तय पैमाने के हिसाब से शायद फ़िट नहीं. मगर धीरे-धीरे ख़ुद को स्वीकार करने लगी, इसी दाग़ के साथ. आसपास की दुनिया और लोग साफ़ नज़र आने लगे थे. समझ में आया कि हर किसी में कोई न कोई कमी है. असल में कोई भी तो परफ़ेक्ट नहीं!

‘‘अब मन को देह का ये दाग़ टू-कलर स्किन लगने लगा था. जब दोस्त के बेटे ने पूछा, ये क्या है- मैंने बताया ये टैटू है. मैंने अपने पंख फैलाए, दोस्त बनाए, खुलकर जीना शुरू किया, मनपसंद कपड़े पहने और दुनिया से डर कर जीना छोड़ दिया. फिर ठान लिया कि पूरी दुनिया को अपनी स्टोरी बताउंगी. फ़ेसबुक पर लिखने लगी, अपनी तस्वीरें लगाने लगी. अब डोर बेल बजती है, तो झट से दरवाज़ा खोल देती हूं, घर आए लोगों के समाने आने से बचती नहीं, अचानक वीडियो कॉल आ जाय तो कतरा के नहीं निकलती. कोई दोस्त बहुत दिन बाद मिले तो उसके सामने असहज होने के डर से दाग़ नहीं छिपाती.

‘‘मेरे लिए सहज होना ख़ूबसूरत होना है, ख़ुदमुख्तार होना, ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करना ख़ूबसूरत होना है. ये जीवन है, मुझे इसके इस पन्ने को पूरे प्यार से पढ़ कर पलट देना है. झूठ नहीं कहूंगी, मन के किसी कोने में आज भी उदास और मायूस हो जाती हूं. पर उस मेंटलफ्रेमिंग से लड़ती हूं, जो इस समाज ने मुझे दी है. अब जान लिया है, ये बस एक कॉस्मेटिक प्रॉब्लम है और कुछ नहीं. ख़ुद को इस रूप में स्वीकार करने में वक़्त तो लगा, पर आज मैं आपके सामने हूं यक़ीन मानिए, मैं वही मुक्ता हूं.

‘‘वो कहते हैं ना सर्फ़ वाले, कुछ अच्छा करने में दाग़ लगते हैं, तो दाग़ अच्छे हैं. उसी तरह सेंसिटिव और केयर करने वाले लोगों की पहचान कराने वाले ये दाग़ भी अच्छे हैं. इसने मुझे अपने-पराए, सच्चे इंसान की अच्छे से पहचान कराई है. जो मुझे चाहते हैं, वो मुझे ज़ियादा चाहने लगे हैं. अब तो यही दाग़ मेरी पहचान बन गए हैं. शुक्रिया विटिलिगो, जो मुक्ता कभी सबसे नज़रें चुरा कर बात किया करती थी, अब नज़र भर, जी भर बतियाती है. ये हिम्मत तुमसे ही आई है. दाग़ अच्छे हैं!’’

 

 

Tags: Autoimmune DiseaseBody ShamingSkin DisorderVitiligoऑटोइम्यून डिज़ीज़बॉडी शेमिंगविटिलिगोस्किन डिस्ऑर्डर
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)
क्लासिक कहानियां

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
ktm
ख़बरें

केरल ट्रैवल मार्ट- एक अनूठा प्रदर्शन हुआ संपन्न

September 30, 2024
Bird_Waching
ज़रूर पढ़ें

पर्यावरण से प्यार का दूसरा नाम है बर्ड वॉचिंग

September 30, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.