वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाठक के संपादन में हाल ही में आए कविता संग्रह ‘बहुत कुछ कहा हमने अकविता की वापसी’ की भूमिका, जिसे डॉ विकास दवे निदेशक, साहित्य अकादमी, भोपाल, के निदेशक, डॉक्टर विकास दवे ने लिखा है, उसे हम जस का तस प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि आप इस कविता संग्रह के मिज़ाज से रूबरू हो सकें.
कविता संग्रह: बहुत कुछ कहा हमने अकविता की वापसी
प्रकाशक: संदर्भ प्रकाशन, भोपाल
संपादक: पंकज पाठक
मूल्य: 175 रुपए
मेरे हाथों में नवीन काव्य संग्रह ‘बहुत कुछ कहा हमने’ है. यह साझा काव्य संग्रह प्रख्यात पत्रकार और हम सबके आत्मीय मित्र पंकज पाठक के संपादन में तैयार हुआ है. इन दिनों साहित्य क्षेत्र में साझा काव्य संकलनों की परंपरा बड़ी अच्छी प्रारंभ हुई है. इसी श्रृंखला में ‘बहुत कुछ कहा हमने’ मील का पत्थर साबित होगी.
इस संग्रह में अनुभूति चतुर्वेदी, शिल्पा शर्मा, पंकज पाठक, डॉ. संतोष व्यास, ऋचा चतुर्वेदी और युगांक चतुर्वेदी की नवीनतम कविताओं को संग्रहित किया गया है. इन छह रचनाकारों की अनेक श्रेष्ठ कविताएं, इन रचनाकारों के परिचय के साथ इस संग्रह में ली गई हैं.
अनुभूति चतुर्वेदी की रचनाओं के खंड में न्याय, सृजन, मां, समानांतर, बेटे के लिए और मानवता जैसी कविताएं संग्रहित की गई हैं. अनुभूति, सामान्यतया भारतीय परिवार परंपरा के रिश्तों से जुड़ी रचनाओं को बहुत सुंदर ढंग से उकेरती हैं. अपने व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने इन रिश्तों को अत्यंत संवेदनशीलता से जीया होगा, तभी इतनी श्रेष्ठ रचनाए वे दे पाईं. इन रचनाओं के मध्य कुछ सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई रचनाएं भी मन को मोह लेती हैं.
शिल्पा शर्मा प्रेम और श्रृंगार की एक श्रेष्ठ रचनाकार हैं, किंतु इस संग्रह में इस कलेवर की 2-3 रचनाओं को छोड़कर शेष सभी रचनाएं जीवन विज्ञान से जुड़ी हुई दिखाई देती हैं. विशेषकर वे बचा ले जाएंगे, सबसे बड़ा संबल, इच्छाएं, हार या जीत, वजूद आदि छोटी छोटी रचनाएं पाठक को बांधे रखने में सक्षम हैं.
संग्रह के संपादक पंकज पाठक, क्योंकि वरिष्ठ पत्रकार रहे और समाज जीवन की विकृतियों ओर विद्रूपताओं को अत्यंत निकट से देखने का अवसर उन्हें प्रात होता रहा, इसलिए उनके विषय निश्चय ही विराटता लिए हुए हैं. नागरिक, आसमान से भी आगे और भाग्य शीर्षक से तीन कविताएं अत्यंत प्रभावकारी बन पड़ी है. एक चेहरा कविता ओर उसी से जोड़कर दूसरा चेहरा नाशुक्रे जैसी कविताएं एक के बाद दूसरी कविता को पढ़ने के लिए पाठक को बाध्य करती हैं.
डॉक्टर संतोष व्यास की कविताएं भी छोटी, किंतु प्रभावकारी हैं. ध्वस्त, छटपटाहट, गांधीवाद पर भाषण, भयावह सत्य, कितना बौना है आदमी जैसी कविताएं, जहा समाज जीवन को रेखांकित करती हैं, वहीं प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ी उनकी कविता नर्मदा माँ कब नदी बन गईं अत्यंत प्रभावकारी बन पड़ी है.
ऋचा चतुर्वेदी ने अपनी रचनाओं शाश्वत अस्तित्व, प्रतिदान, प्यारे शुभ के लिए, खामोशी और नियति जैसी रचनाओं में न केवल अपने आसपास के परिवेश को समाहित किया है, बल्कि अपने परिजनों को भी इन रचनाओं में चित्रांकित करने का प्रयास किया है. पिता, भाई बहन और एक साथ जैसी कविताएं भारतीय कुटुंब परंपरा में रिश्तों की ऊष्मा को अभिव्यक्त करने वाली रचनाएं हैं. माँ ने कहा था जैसी छोटी सी रचना भी इसी भाव प्रवणता के कारण अत्यंत प्रभावकारी बन गई है.
युगांक चतुर्वेदी ने दिवस के भिन्न भिन्न काल खंडों पर छोटी छोटी रचनाओं की एक श्रृंखला सी तैयार की है. सुबह, दिन, शाम, रात और सुबह को एक सलाम जैसी कविताएं इसी श्रेणी की हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने घर में पाले हुए लाड़ले प्राणी तक को भी अपनी कविता का विषय बनाने का प्रयास किया है. कोविड को लेकर उनकी तीन रचनाएं बहुत भावुक बन गई हैं.
एक बात सभी रचनाकारों की कविताओं में दिखाई देती है और वह है कोरोना काल में आए अवसाद से बाहर निकलने की छटपटाहट. समाज जीवन में आई शिथिलता को गतिज ऊर्जा में बदलने में सक्षम यह रचनाएं निश्चय ही कोरोना काल में भी लिखी गई हैं. यही कारण है कि कहीं कहीं
इनमें अवसाद की छाया दिखाई देती है, किंतु तुरंत ही हमारे यह छ: रचनाकार साहित्य के अवदान की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दिशा ले लेते हैं और इनकी अगली कविताएं मनुष्य मन को ऊर्जा से भरने में सक्षम हो जाती हैं. मैं सभी रचनाकारों को हृदय से बधाई देता हूं कि उन्होंने एक साथ मिलकर साहित्य जगत को यह अनूठा उपहार दिया है.
हां, यदि एक और रचनाकार इसमें सम्मिलित हो जाते, तो यह संग्रह रचनाकारों का सप्तक हो जाता, किंतु इस सांख्यिकी की कोई सीमा नहीं होती, इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि छ: रचनाकारों ने मिल कर भी जो रचनाएं दी हैं, वह अपने आप में समर्थ और सशक्त हैं. हृदय से ‘बहुत कुछ कहा हमने’ के प्रकाशन हेतु ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं और इन रचनाकारों ने मौन साहित्य साधना को इस संग्रह के रूप में मुखर बनाया, इसके लिए साधुवाद भी देता हूं.