यदि आपके दो (या ज़्यादा) बच्चे हैं तो आप हमारे आलेख का उद्देश्य समझ ही गए होंगे. भारतीय परिवेश में हमने यही सुना है कि बच्चों के बीच कहासुनी और झगड़ों से उनके बीच प्यार बढ़ता है, पर ये तब की बात थी, जब परिवार संयुक्त हुआ करते थे और बच्चों को समझाने के लिए बड़े-बूढ़े लोग मौजूद हुआ करते थे. अब समय बदल गया है और संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है, जहां पैरेंट्स को ही अपने बच्चों पर ध्यान देना होता है. ऐसे में अपने बच्चों के बीच स्नेह बढ़ाने का काम आपको ही करना होगा. कैसे अंजाम दें इस काम को? हम यही बताने जा रहे हैं…
सभी पैरेंट्स अपने बच्चों के बीच स्नेहभरे संबंध देखना चाहते हैं. मगर जो हम देखना चाहते हैं, उसे पाने के लिए हमें प्रयास भी तो हमें ही करने होते हैं. सहोदरों यानी सिबलिंग्स के बीच नोक-झोंक होना बहुत ही सामान्य है, लेकिन कहीं यह नोक-झोंक मनमुटाव का रूप न लेने पाए या फिर किसी तरह की प्रतिद्वंद्विता में न तब्दील हो जाए इसके लिए बेशक़ आपको कई प्रयास करने होंगे. किसी भी रिश्ते को स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रयास करने होते हैं. जिस तरह एक बार स्वस्थ तरीक़े से पोषित हुए पौधे स्वस्थ पेड़ में तब्दील हो जाते हैं, बच्चों के आपसी रिश्ते भी इसी तर्ज़ पोषित किए जाएं तो बड़े होने पर ख़ुशनुमा बन जाते हैं. तो आइए, जानें वो कौन-से तरीक़े हैं, जिनसे आप बच्चों के बीच स्नेह को बढ़ा सकते हैं.
बच्चों की आपस में तुलना न करें
कहावत है न कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. ठीक उसी तरह आपके दो बच्चों की आदतें, उनके व्यवहार और सोच में भी बहुत फ़र्क़ होता है. पर अक्सर यह मानवीय स्वभाव है कि हम तुलना करने बैठ जाते हैं. तो यदि आप अपने बच्चों के बीच स्नेह का बीज रोपना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको बतौर पैरेंट्स अपनी इस आदत पर लगाम लगाना होगा. अपने दोनों बच्चों के स्वभाव को अलग-अलग स्वीकारें, उनकी ग़लतियों को अलग-अलग सुधारें. उनकी एक-दूसरे से तुलना कभी न करें.
उन्हें साथ-साथ ज़िम्मेदारियां दें
बच्चों के बीच स्नेह बढ़ाने का दूसरा और प्रभावी तरीक़ा यह है कि आप उन्हें एक साथ ज़िम्मेदारियां सौंपे. इस बात से परे कि वह लड़का है या लड़की अपने बच्चों को हर तरह के छोटे-छोटे काम साथ-साथ सिखाएं. मसलन बड़ा बच्चा यदि डिनर के लिए प्लेट्स लगा रहा है तो छोटा बच्चा ग्लास रख सकता है या फिर बच्चे मिलकर अपना कमरा साफ़ करें. हां, एक बात और कि ये ज़िम्मेदारियां केवल काम की ही न हो, आप उन्हें साथ-साथ खेलने का काम भी दे सकते हैं, जैसे- इनडोर गेम्स में कैरम, ब्लॉक्स गेम, लूडो या फिर आउटडोर गेम्स में बैडमिंटन, डिस्क, बॉल आदि.
जॉन गॉटमैन का यह अनुपात ध्यान में रखें
जॉन गॉटमैन अमेरिकी साइकोलॉजिस्ट, रिसर्चर और थेरैपिस्ट हैं, जिन्होंने रिलेशनशिप काउंसलिंग पर कई किताबें भी लिखी हैं. हालांकि उनके जिस मैजिक रिलेशनशिप रेशो की हम बात कर रहे हैं, वो उन्होंने दिया तो कपल्स के बीच होनेवाले झगड़े के लिए है, पर यह आपके बच्चों के बीच स्नेह बढ़ाने में भी कारगर रहेगा. उनका कहना है कि रिश्तों में हर एक नकारात्मक बात पांच सकारात्मक बातों से संतुलित होती है. यानी बच्चों के बीच भी एक नकारात्मक बात हुई हो तो आपको उनके बीच कम से कम पांच सकारात्मक बातें लानी होंगी, ताकि उनके बीच स्नेह बरक़रार रहे. अब इस बात से डरिए नहीं, क्योंकि नकारात्मक बात चाहे जो रही हो, ये सकारात्मक बातें छोटी-छोटी होती हैं, जैसे- एक मुस्कान, गले लगाना, सॉरी कह देना, तारीफ़ कर देना या फिर किसी काम में मदद कर देना. ये बातें तो आप बच्चों से मनवा ही सकते हैं.
उन्हें एक-दूसरे का सहयोग करना सिखाएं
अपने बच्चों को इस तरह बड़ा करें कि उन्हें लगे कि वे आपके घर के भीतर और बाहर भी एक टीम हैं. उन्हें एक-दूसरे का सहयोग करना सिखाएं. यदि स्कूल जाने के लिए एक बच्चा जल्दी तैयार हो जाता है और दूसरे को समय लगता है तो जो जल्दी तैयार हो गया है, उसे कहें कि तुम अपने भाई या बहन की मदद करो, ताकि वह जल्दी तैयार हो सके. इसी तरह आप उन्हें एक-दूसरे की कमियों में उनकी मदद करना सिखा सकते हैं. इस तरह उनके बीच बॉन्डिंग मज़बूत होगी और स्नेह बढ़ेगा.
उनके मी टाइम का ध्यान रखें
जितना ज़रूर बच्चों का एकसाथ रहना है, उतना ही ज़रूरी यह भी है कि हर बच्चे को उसका मी टाइम मिले. जिसमें वह अपने भाई/बहन से अलग अपने दोस्तों से मिले, उनके साथ खेले या अपनी मनपसंद गतिविधि को अंजाम दे. मी टाइम हर एक बच्चे का हक़ है, जिससे उसको ऊर्जा मिलती है और वह ख़ुश रहता है. अत: जब बच्चा बाहर खेलने जाए तो उस पर भाई या बहन को साथ ले जाने और उसके साथ खेलने/उसे साथ खिलाने का दबाव बिल्कुल न डालें.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट