बच्चों को सही उम्र में टॉयलेट जाने के लिए प्रशिक्षित न किया जाए तो उन्हें यह आदत सीखने में बहुत समय लग सकता है और आपको यह प्रक्रिया बहुत उबाऊ लग सकती है. यही वजह है कि सही उम्र में इसकी शुरुआत हो जानी चाहिए. यहां हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं कि बच्चों पॉटी ट्रेनिंग कब और कैसे दी जानी चाहिए.
जब बच्चे कुछ महीनों के होते हैं, जब से ही वे सुसु आने व फ़ारिग होने पर संकेत देने लगते हैं, जैसे- कुछ बच्चे हाथ-पैर हिलाते हिलाते अचानक शांत हो जाते हैं, उनकी नाक फूलने लगती है या फिर वे अलग तरह की आवाज़ निकालने लगते हैं. फ़ारिग होने या सुसु करने के बाद उन्हें गीलपन अच्छा नहीं लगता तो वे रोना शुरू कर देते हैं. यदि आप अपने बच्चे को ऑब्ज़र्व करते रहेंगे तो आप इन संकेतों को पहचान लेंगे.
सुसु जाने के लिए बच्चों को कब तैयार करें
छह महीने के होते-होते बच्चे बैठना शुरू कर देते हैं. जब वे बैठना शुरू करें तो वह समय आ जाता है कि जब बच्चे को आप सुसु जाने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू कर सकते हैं. पर उन्हें ट्रेन करते समय आपको उन्हें पूरा सपोर्ट देना होगा, उन्हें पूरे समय पकड़े रहना होगा. जब वे अच्छी तरह बैठने लगें यानी लगभग आठ माह के हो जाएं तो उनके लिए एक पॉटी (फ़ारिग होने के लिए बच्चों के लिए बनाया गया पॉट) ख़रीदें और हर दो घंटे के अंतराल में उन्हें इस पर बिठा कर सुसु करने के लिए कहें. आपको आश्चर्य होगा कि बच्चे तीन-चार दिन में ही आपके निर्देशों को समझने लगेंगे. हां, आपको यह प्रक्रिया निश्चित समय पर दोहराते रहनी होगी. अन्यथा, उन्हें इसकी आदत नहीं लग पाएगी. और एक बार जब उन्हें पॉटी पर बैठ कर सुसु करने की आदत लग जाएगी तो वे संकेतों से आपको बतलाने भी लगेंगे कि उन्हें सुसु आ रही है.
जब आप बच्चे के लिए पॉटी ख़रीदें तो इस बात का पूरा ध्यान रखें कि पॉटी को रखने की जगह तयशुदा हो. उसे ऐसी जगह पर रखें, जहां बच्चा अपने आप उस पर बैठ सके. और सबसे ख़ास बात ये कि आप बच्चे को रोज़ाना उसी जगह ले जा कर, पॉटी पर बिठाकर सुसु करवाएं. ऐसा करने से आपके लिए उन्हें फ़ारिग होने की ट्रेनिंग देना भी बहुत आसान हो जाएगा.
फ़ारिग होने की ट्रेनिंग देने की सही उम्र
जब आप बच्चों को सुसु के लिए ट्रेनिंग देंगे तो कई बार ऐसा होगा कि वे पॉटी पर ही फ़ारिग भी हो लेंगे. जब बच्चा ऐसा करे तो उसे बताएं कि उसने सही काम किया है. वह भले ही इस उम्र में पूरी तरह बोल नहीं सकता, लेकिन आपकी कही बातों को समझ सकता है. जहां तक बात बच्चों को फ़ारिग होने के लिए ट्रेनिंग देने की सही उम्र की है तो बता दें कि जब बच्चे डेढ़-दो साल के होते हैं, तब वे यह समझने लगते हैं कि उन्हें टॉयलेट कब जाना है. वे इशारों में आपको इसके बारे में बताएंगे. यह सही समय होगा कि उनके संकेतों पर ध्यान देते हुए आप उन्हें टॉयलेट जाने की ट्रेनिंग दें. हर घर में टॉयलेट जाने के लिए एक विशेष शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे- पॉटी जाना, टॉयलेट जाना. आप यदि बच्चे से यह पूछेंगे तो वह हां या ना में सिर हिलाना शुरू कर देगा. जैसे ही वह हामी में सिर हिलाए आपको उसे पॉटी पर बिठा देना होगा, क्योंकि इस उम्र के बच्चे मल त्यागने के प्राकृतिक आवेग को केवल कुछ ही सेकेंड्स तक नियंत्रित कर सकते हैं.
अब उन्हें स्वावलंबी बनाएं
अब जबकि बच्चे की पॉटी एक निश्चित जगह पर रखी हुई है, वो रोज़ाना वहीं पर सुसु करता है , फ़ारिग होता है और आपने भी यह पहचान लिया कि बच्चे के संकेत क्या हैं तो अगले स्टेप पर जाने की तैयारी करनी होगी. क्योंकि बच्चे को यह सिखाना भी ज़रूरी है कि यदि आप आसपास न हों तो बच्चा अपने आप सुसु जा सके या फ़ारिग हो सके. इसके लिए आपको बच्चे के कपड़े पर ध्यान देगा होगा. ऐसे पैंट्स/ पैंटीज़ पहनाने होंगे, जिनमें इलैस्टिक हो और जिसे बच्चा आसानी से उतार सके. अब जब वह आपको सुसु या फ़ारिग होने का संकेत दे, आप उसे पॉटी तक जाने और पैंट्स उतार कर पॉटी पर बैठने के लिए कहें. एक-दो सप्ताह के प्रयास से बच्चे आपके निर्देश का पालन करने लगेंगे. लेकिन यह ट्रेनिंग यहां ख़त्म नहीं होती, क्योंकि अभी आपको उन्हें घर के नॉर्मल कमोड में बैठने के लिए तैयार करना है.
घर के टॉयलेट में बैठाने की तैयारी
यूं तो आपका बच्चा पॉटी ट्रेन हो चुका है, लेकिन चूंकि वह छोटा है उसे घर उस कमोड, जिसे आप इस्तेमाल करते हैं, को इस्तेमाल करने में कठिनाई होगी, क्योंकि वह उसकी पॉटी से काफ़ी बड़ा है. ऐसे में कई बच्चे बड़ा कमोड देखते ही डर जाते हैं. उन्हें इस डर से निकलने में थोड़ा वक़्त लगता है. इस बड़े कमोड को किड्स फ्रेंडली बनाने के लिए आप इस पर बच्चों के लिए बिछाई जाने वाली सीट ले सकते हैं. ये सीट लगाने पर कमोड बच्चों के बैठने लायक कस्टमाइज़ हो जाता है. बावजूद इसके जब आप बच्चे को घर के कमोड में फ़ारिग होने की आदत डालेंगे आपको पूरे समय उनके पास खड़े रहना होगा, ताकि वे डरें नहीं. महीनेभर के भीतर वे इस आदत को भी अपना लेंगे.
नियमित रहने के कई फ़ायदे हैं
यूं तो कहा जाता है कि फ़ारिग होने की प्रक्रिया एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और इसका समय नियत होने के बावजूद बदल सकता है, जो सच भी है, लेकिन बच्चों की टॉयलेट ट्रेनिंग के समय एक बड़ी समस्या तब आती है, जब बच्चे कहते हैं उन्हें पॉटी आ ही नहीं रही. इसका कारण यह है कि पहले बच्चे कभी-भी फ़ारिग हो लिया करते थे, पर अब जबकि आप उन्हें तय समय पर टॉयलेट जाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, उन्हें पॉटी नहीं आ रही. इस समस्या से पार पाने का तरीक़ा यह है कि चाहे बच्चा फ़ारिग हो या न हो आप नियत समय पर उसे टॉयलेट सीट पर बैठाते रहें. हो सकता है यह सिलसिला लंबा चले कि आप उसे नियत समय पर बैठा रहे हैं और फिर भी वह फ़ारिग नहीं हो पा रहा है, पर आप अपने समय पर टिके रहें. सप्ताहभर में उन्हें नियत समय पर फ़ारिग होने की आदत पड़ ही जाएगी. एक बार ये आदत पड़ गई तो वे इसे अपना लेंगे, क्योंकि नियत समय पर फ़ारिग होने से वे हल्का और ऊर्जावान महसूस करेंगे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट