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पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज़्यादा ऑर्गैज़्म क्यों आता है?

संगीत सेबैस्टियन by संगीत सेबैस्टियन
April 30, 2022
in एक्सपर्ट सलाह, रिलेशनशिप
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‘सेक्स’ जो सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले विषयों में से एक है, विडम्बना ही है कि उसके बारे में सही जानकारी कम मौजूद है. यही वजह है कि अधिकतर लोग अधकचरी जानकारी के आधार पर सेक्शुअल गतिविधियों को आनंद नहीं ले पाते और कुंठा का शिकार हो जाते हैं. हम इसी गैप को पाटने का प्रयास कर रहे हैं. बीते दिनों महिलाओं का ‘ऑर्गैज़्म’ हिंदी पट्टी के लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा. यह एक सच्चाई है कि सेक्शुअल संबंधों के दौरान पुरुषों को तक़रीबन हर बार ऑर्गैज़्म आता है, लेकिन महिलाओं को नहीं. यदि ऐसा है तो इसके पीछे कुछ कारण भी होंगे. यहां हमें उन्हीं कारणों से परिचित करवा रहे हैं वीवॉक्स के संस्थापक संगीत सेबैस्टियन.

यह बहुत पुरानी बात नहीं है, जब माना जाता था कि शॉर्टहैंड की जानकारी एक ऐसा बुनियादी कौशल है, जो पत्रकारों और पर्सनल असिस्टेंट्स को आना ही चाहिए. यह तकनीक अंग्रेज़ी के शिक्षक सर आइसैक पिटमेन ने ईजाद की थी, जिससे सूचनाओं को बहुत जल्दी दर्ज किया यानी लिखा जा सकता है. आज भी कुछ नौकरियां ऐसी हैं, जहां शॉर्टहैंड का ज्ञान आवश्यक होता है.

जिन लोगों ने शॉर्टहैंड में दक्षता हासिल कर ली हो, उनके लिए नोट्स लेना बेहद आसान होता है, जैसे वो हवा की तेज़ी से लिख रहे हों. लेकिन शॉर्टहैंड सीखना बिल्कुल आसा नहीं होता. इसके लिए समय, अभ्यास और सबसे ज़्यादा धीरज की ज़रूरत होती है, ताकि इन आड़ी-तिरछी, घूमी हुई, हल्की और गहरी लाइन्स व बिंदुओं की भाषा में कुशल हो सकें. लेकिन यह प्रयास व्यर्थ नहीं जाता. एक बार इस तकनीक पर महारत हासिल हो जए तो आप प्रति मिनट 200 शब्द भी लिख सकते हैं. और जो शॉर्टहैंड नहीं जानते हैं, उन्हें तो यह कोई रहस्यमय भाषा ही लगेगी.

अब बात करते हैं महिलाओं के ऑर्गैज़्म की. इसका रहस्य और इसकी दक्षता भी शॉर्टहैंड की तरह ही है. इसमें समय लगता है, अभ्यास करना होता है और धीरज धरना होता है. लेकिन इसे जान लेने के बाद किसी महिला को उस परमानंद तक पहुंचाना, जिसे स्वर्गीय आचार्य रजनीश यानी ओशो ने ‘‘समाधि की पहली झलक‘‘ की तरह वर्णित किया था (समाधि, जो ध्यान यानी मेडिटेशन की पराकाष्ठा है), संभव हो जाता है. बावजूद इसके कई लोगों के लिए ऑर्गैज़्म का लक्ष्य दूर ही बना रहता है. यहां तक कि मेडिकल साइंस भी अब तक इसके बारे में पूरी तरह खुलासा नहीं कर सका है.

पहले के समय में हुए अध्ययनों में इस बात का उल्लेख है कि विषमलैंगी पुरुषों को विषमलैंगी महिलाओं की तुलना में सुगमता से ऑर्गैज़्म का अनुभव होता है. इसकी वजह से इस सोच को बल मिला कि केवल कुछ ही महिलाएं ऑर्गैज़्म का अनुभव कर पाती हैं. महिलाओं की सेक्शुऐलिटी से जुड़ी कई और दूसरी बातों की ही तरह यह बात भी मिथक ही है.
सच्चाई यह है कि हमने भले ही मंगल ग्रह और दूसरे प्लैनेटरी बॉडीज़ तक पहुंच बना ली हो, लेकिन जब मामला अपनी बॉडी (शरीर) का हो तो हमारी समझ अब भी सीमित ही है.

प्रेम के हॉर्मोन के नाम से जाने जाने वाले ऑक्सिटोसिन की कमोन्माद यानी ऑर्गैज़्म तक पहुंचने में भी भूमिका होती है, विज्ञान को इसके बारे में कुछ दशक पहले ही पता चला. लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि गायनाकोलॉजी की टेक्स्ट बुक्स में भी इसके बारे में कोई बात नहीं की गई है.

वो तो भला हो कुछ निडर शोधकर्ताओं का, जो उस क्षेत्र में शोध का बीड़ा उठाए हुए हैं, जिसमें उनके पूर्ववर्तियों ने जाने की हिम्मत नहीं जुटाई. उनकी बदौलत ही हमें आज महिलाओं के ऑर्गैज़्म और उनकी सेक्स संबंधी समस्याओं की जानकारी, इतिहास के किसी भी समय की तुलना में ज़्यादा गहराई से हासिल हो रही है.

इस रिसर्च के बारे में बात करने के लिए मैंने डॉक्टर टीएस सत्यनारायण राव से बात की, जो जानेमाने साइकियाट्रिस्ट, सेक्शुअल हेल्थ स्पेशलिस्ट, साइकोसेक्शुअल हेल्थ जरनल के एडिटर और वीवॉक्स के को-फ़ाउंडर भी हैं.

डॉक्टर राव कहते हैं,‘‘महिलाओं की सभी सेक्शुअल समस्याएं दमनकारी प्रकृति की होती हैं, फिर चाहे वो सेक्स से विरत होना हो, ऑर्गैज़्म से संबंधित डिस्ऑर्डर हो या फिर उनका उत्तेजितन न हो पाना हो. महिलाओं की इन यौन समस्याओं को दूर करने का एकमात्र तरीक़ा ये है कि महिलाओं को मैस्टर्बेशन यानी हस्तमैथुन के लिए प्रशिक्षित किया जाए.

‘‘बहुत सी महिलाएं अपने निर्वस्त्र शरीर में केवल खामियां ही देख पाती हैं. ऑर्गैज़्म पाने के लिए किसी महिला को अपने शरीर के बारे में जानकारी होना बहुत ज़रूरी है. सेक्स थेरैपी के दौरान हम इस बात की ओर भी ध्यान देते हैं.

‘‘सही तरह से स्टिमुलेशन यानी उत्तेजना मिले तो 100 फ़ीसदी महिलाएं कामोन्माद या चरमोत्कर्ष या ऑर्गैज़्म का सुख पा सकती हैं. इस काम में वाइब्रेटर्स बहुत मददगार हैं. केवल 30 फ़ीसदी महिलाएं ही केवल इंटरकोर्स यानी रतिक्रिया के ज़रिए ऑर्गैज़्म पा सकती हैं. केवल एक से पांच फ़ीसदी महिलाएं ही ऐसी हैं, जो केवल फंतासी यानी कल्पनाशीलता के ज़रिए भी ऑर्गैज़्म पा सकती हैं.’’

फ़ोटो: फ्रीपिक डॉट कॉम

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संगीत सेबैस्टियन

संगीत सेबैस्टियन

संगीत सेबैस्टियन, भारत के पहले डिजिटल थेरैपी प्लैटफ़ॉर्म वीवॉक्स के संस्थापक हैं, जिसे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के डाक्टर्स के साथ मिलकर ऐसे लोगों की मदद के लिए बनाया है, जो सेक्स संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं. यह एक निजी, किसी भी तरह की ग्लानि से मुक्त और वाजिब प्लैटफ़ॉर्म है, जहां आप अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान पा सकते हैं.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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