स्टॉक मार्केट एक ऐसी जगह है, जहां यदि आप सही तरीक़े से निवेश करें तो आपका निवेश कई गुना तक बढ़ सकता है, तब भी आख़िर क्या वजहें हैं कि एक आम छोटा निवेशक स्टॉक मार्केट में पैसे नहीं बना पता? आपको इसी बात की तह तक ले जा रहें नवनीत शर्मा, जो इस क्षेत्र में गहरा दख़ल रखते हैं.
हिमांशु गुलाटी एक मिडल एज्ड बैंककर्मी हैं, जो दिल्ली में रहते हैं. उन्होंने अपना करियर वर्ष 2000 में शुरू किया था और इसके तीन साल बाद से उन्होंने स्टॉक मार्केट में पैसे निवेश करना शुरू कर दिया था. वर्ष 2003 से अब तक के इन 18 वर्षों में स्टॉक मार्केट से उन्हें बहुत अच्छे रिटर्न्स मिले हैं. इस बीच उन्होंने ब्लूचिप कंपनियों, जैसे- एचडीएफ़सी बैंक, टाटा कन्सल्टेंसी सर्विसेज़ और अन्य कई सफल आईपीओज़ देखे. इस अवधि में शेयर सूचकांक भी बहुत तेज़ी से बढ़े. सेन्सेक्स और निफ़्टी जो वर्ष 2003 में 4000 और 900 पर हुआ करते थे, अब वर्ष 2021 में क्रमश: 56000 और 16500 पर आ चुके हैं. पर हिमांशु को हमेशा यह शिकायत रहती है कि स्टॉक्स में वे ज़्यादा लाभ नहीं कमा सके. हालांकि वे यह भी मानते हैं कि कुछ अच्छे स्टॉक्स में उन्हें अच्छा प्रॉफ़िट हुआ, लेकिन कुछ दूसरे स्टॉक्स के कारण ये प्रॉफ़िट पूरी तरह डूब भी गया.
जब मैंने उनसे पूछा कि वे अपने पोर्टफ़ोलिओ के लिए स्टॉक्स कैसे चुनते हैं? और उनका यह जवाब सुनकर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि अधिकतर स्टॉक्स उन्होंने अपने ऑफ़िस कलीग्स, दोस्तों या पड़ोसियों की सलाह पर लिए हैं. कुछ स्टॉक्स उन्होंन अख़बारों और पत्रिकाओं में छपी सलाह के आधार पर भी ख़रीदे थे. मैंने जब उनसे यह सवाल पूछा तो वे थोड़े अचकचा गए कि कल को यदि आपको कान में दर्द होगा तो आप ईएनटी स्पेशलिस्ट के पास जाएंगे या फिर अपने दोस्तों और पड़ोसियों की सलाह पर कोई भी दवाई ले लेंगे? हिमांशु ने जवाब दिया,‘ज़ाहिर है, किसी ईएनटी स्पेशलिस्ट के पास जाऊंगा.’ तो मैंने उनसे पूछा कि फिर वे अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई को दोस्तों और कलीग्स की सलाह पर कैसे निवेश कर सकते हैं, जिन्हें निवेश के बारे में कोई गहरी जानकारी ही नहीं है? हिमांशु के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था.
एक्स्पर्ट्स की राय को दें तवज्जो
हिमांशु की यह कहानी हमारे देश के हर आम रीटेल इन्वेस्टर की कहानी है. उत्साह में आकर, जल्दी पैसे कमाने के लिए वे मार्केट में निवेश करना तो शुरू कर देते हैं, पर ख़ुद को ई जानकारी जुटाए बिना, कोई रिसर्च किए बिना और किसी प्रोफ़ेशनल की सलाह लिए बिना और यही वजह है कि वे चढ़ते हुए बाज़ार में भी घाटा उठा बैठते हैं. मेरी राय में निवेश करना एक कुशलताभरा काम है, जिसे उसके एक्स्पर्ट के ज़रिए किया जाना चाहिए. इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड्स और यूनिट लिंक्ड इनश्योरेंस प्लान, पीएमएस सर्विसेज़ आदि सभी निवेशकों को अच्छा विकल्प मुहैया करा रहे हैं. ये फ़ंड क्वालिफ़ाइड फ़ंड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किए जाते हैं, जिन्हें निवेशकों के लिए इस तरह के फ़ंड्स को मैनेज करने का कई वर्षों का अनुभव होता है. इन फ़ंड मैनेजर्स के साथ इनकी टीम होती है, जिसमें रिसर्च करने वाले प्रोफ़ेशनल लोग होते हैं, जो रिसर्च कर के फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो में अच्छी गुणवत्ता के स्टॉक्स का चुनाव करते हैं. रिसर्च के अलावा प्रोफ़ेशनल्स की यह टीम मार्केट की अच्छी समझ रखती है, जिसकी वजह से वे अच्छा प्रदर्शन न करनेवाले स्टॉक्स और ऐसे क्षेत्रों में निवेश बिल्कुल नहीं करते हैं, जहां निवेशकों को जोखिम उठाना पड़े.
लंबे समय के लिए करें निवेश
यदि अनुभवजनित आंकड़ों की बात करें तो जो फ़ंड्स वर्ष 1995 के आसपास लॉन्च हुए थे, उन्होंने अपने निवेशकों को बहुत ऊंचे रिटर्न्स दिए हैं. शेयर बाज़ार में एक ऐसा फ़ंड भी आया है, जिसने अपने निवेशक को 190 गुना रिटर्न दिया है, लेकिन यदि मैं वर्ष 1995 के आसपास लॉन्च हुए फंड्स की बात करूं तो उन्होंने इन 26 वर्षों में औसतन अपने निवेशक को 100 गुना तक का रिटर्न दिया है. इन्श्योरेंस कंपनियों ने अपने पॉलिसी होल्डर्स को इक्विटी इन्वेस्टमेंट का अनुभव देने के लिए यूनिट लिंक्ड इक्विटी प्लान लॉन्च किया था. यहां भी फ़ंड्स को क्वालिफ़ाइड मैनेजर्स ही संभालते हैं. शुरुआत में जब यूलिप स्कीम्स को लागू किया गया था तो इनपर बहुत अधिक फ़ंड मैनेजमेंट शुल्क वसूला जाता था. इसके अलावा उत्साही सेल्स प्रोफ़ेशन्स इसे इसकी लागत का मूल्य बताए बिना और मार्केट के जोखिम के बारे में समझाए बिना ग्राहकों को बेचते थे. लेकिन बाद में IRDA के निर्देश आने के बाद इसकी लागत शुल्क में कमी की गई और निवेशकों को इसके बारे में अच्छी तरह जानकारी देने के बाद ही इसे बेचा जाता है. वे निवेशक जिन्होंने इसमें लंबी अवधि (10 वर्ष या उससे अधिक) के लिए निवेश किया, उन्होंने इससे अच्छे रिटर्न्स पाए. चूंकि यूलिप एक इन्श्योरेंस आधारित प्रोडक्ट है तो इसके अंतिम भुगतान पर कोई टैक्स नहीं लगता. वहीं म्यूचुअल फंड्स और स्टॉक्स में अंतिम भुगतान पर टैक्स लगता है.
निवेशक के पास कई विकल्प हैं
ऊपर बताए गए विकल्पों के अलावा ब्रोकरेज फ़र्म्स भी हैं, जो अपने ग्राहकों को रिसर्च पर आधारित सलाह देने का काम करती हैं. कुछ बड़ी ब्रोकरेज कंपिनयां तो पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) भी मुहैया कराती हैं. मेरी राय है कि छोटे निवेशक को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को क्वालिफ़ाइड फ़ंड मैनेजर्स के ज़रिए निवेश करनी चाहिए और यदि वे ख़ुद ही यह काम करना चाहते हैं तो किसी प्रोफ़ेशनल की सलाह लेकर ही ऐसा करें. किसी जानकार की सलाह के बिना, केवल किसी की कही-सुनी के आधार पर निवेश करने से बचना चाहिए. जो लोग निवेश के इस बुनियादी मंत्र का पालन करते हैं या करेंगे, वे ज़रूर ही अच्छा रिटर्न पाएंगे.
मैंने जाते-जाते हिमांशु से पूछा,‘भाई अगली बार तुम्हें दांत में दर्द होगा तो डेंटिस्ट के पास जाओगे या अपने पड़ोसी गुप्ता जी की सलाह पर कोई भी दवा ले लोगे?’ हिमांशु अब मेरी बात में छुपे हुए अर्थ को समझ चुका था.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट