हाल ही में डेटिंग ऐप ट्रूलीमैडली (TrulyMadly) द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आया है कि मिलेनियल्स और जनरेशन ज़ेड के शादी योग्य बच्चों की मांएं बदल रही हैं और वे लव मैरिजेज़ को स्वीकारने के अलावा अपना भावी जीवनसाथी ढूंढ़ने के लिए अपने बच्चों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे डेटिंग ऐप्स को लेकर भी ‘कूल’ हैं. आइए जानते हैं और क्या-क्या सामने आया इस सर्वे में
भारत में डेटिंग को लेकर युवक, युवतियां, उनके पैरेंट्स और अन्य लोगों की क्या राय है, इस बात को आंकने के लिए देशभर के कुल 5000 युवक-युवतियों से इस सर्वे के तहत कई सवाल पूछे गए और उनके जवाबों से यह बात साफ़ हो गई की भारतीय मांएं समय के साथ तालमेल बिठाते हुए बहुत तेज़ी से बदल रही हैं और वे सकारात्मक बदलावों को स्वीकार कर रही हैं. लगभग 50 प्रतिशत मांएं इस बात को लेकर सहज हैं कि उनके बच्चे अपना भावी जीवनसाथी तलाश करने के लिए किसी ऐप की मदद लेते हैं. इस सर्वे के कुछ और नतीजे हैं जो हमारे देश में लोगों की सोच और ख़ासतौर पर मांओं की सोच के बदलाव के सूचक हैं.
मांओं को है शादी की ज़्यादा चिंता, लेकिन वे लव मैरिज की पक्षधर हैं
टियर वन और टियर टू शहरों की 70% युवतियों और 80% युवकों के जवाब के मुताबिक़, उनकी मांएं उनकी लव मैरिज को स्वीकार करने का मन रखती हैं. वहीं 45% युवक-युवतियों का कहना था कि उनके पिता की तुलना में उनकी मां शादी को लेकर ज़्यादा चिंता करती हैं और ज़्यादा दबाव बनाती हैं.
बेटा या बेटी किस पर बनाया जाता है शादी के लिए ज़्यादा दबाव?
सर्वे में इस सवाल के दिलचस्प नतीजे सामने आए हैं. सर्वे के 60% लोगों को लगता है कि मांएं आज भी अपनी बेटियों की पढ़ाई-लिखाई और करियर की तुलना में उनकी शादी को प्राथमिकता देती हैं. जबकि 55% लोगों करो लगता है कि शादी के लिए पुरुषों पर अधिक दबाव होता है. मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर और कोलकाता जैसे महानगरों से जवाब देनेवाले 53% प्रतिभागियों का कहना है कि मांएं, बेटियों पर अधिक दबाव बनाती हैं.
विवाह को लेकर लड़की की पसंद पर कहां करते हैं लोग भरोसा?
इस सवाल पर जनरेशन ज़ेड और मिलेनियल्स का जवाब बताता है कि महानगरों से इतर छोटे शहरों, जैसे- जयपुर, इंदौर और लखनऊ की मांएं शादी के मामले में अपनी बेटी की पसंद पर पूरा भरोसा करती हैं. जवाब देनेवाले 50% युवक-युवतियों ने माना कि जीवनसाथी की तलाश को लेकर उनकी मांओं को डेटिंग ऐप्स के उपयोग से कोई गुरेज़ नहीं है और 20% प्रतिभागियों का कहना था कि उनकी मांएं डेटिंग ऐप्स के बारे में नहीं जानती हैं, जबकि 7% का जवाब था कि उनकी मांएं डेटिंग ऐप्स को पसंद नहीं करती हैं.
क्या कहना है ट्रूलीमैडली का
ट्रूलीमैडली के सह-संस्थापक स्नेहिल खानोर तो साफ़ कहते हैं,‘‘हम भारत में डेटिंग ऐप्स से जुड़ी धारणाओं, आशंकाओं और संभावनाओं को समझने निकले थे, लेकिन इस युवा पीढ़ी और उनके माता-पिता की बदली हुई मानसिकता ने तो हमें चौंका ही दिया. मुझे लगता है कि इस बदलाव का श्रेय हमारे समाज में महिलाओं के अधिकारों को समर्थन देने, लैंगिक भेदभाव को कम करने, लोगों को लैंगिक भेदभाव के प्रति संवेदनशील बनाने के लगातार प्रयासों को जाता है. फ़िल्मों और सोशल मीडिया ने भी इन महिलाओं की सोच को बदला है और इनके भीतर जीवनसाथी खोजने में अपने बच्चों का समर्थन करने के जज़्बे को बढ़ाया है.’’ ऐप निर्माताओं को लगता है कि भले ही आज के युवाओं को दूर से देखकर लगता है कि ये पीढ़ी विवाह की संस्था से दूर जाना चाहती है, पर उन्हें भरोसा है कि आनेवाले वर्षों में हमारे देश में विवाह की संस्था और मज़बूत होगी और वे देश की भरोसेमंद डेटिंग ऐप बनकर इस यात्रा का हिस्सा बनना चाहेंगे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट