प्यार में तन्हाई का बड़ा महत्व है. तन्हाई ही वो पल होते हैं, जब प्यार अपनी पूरी ताक़त के साथ वापस लौटता है, यादें बनकर. जॉन एलिया की शायरी ‘तू भी चुप है मैं भी चुप हूं यह कैसी तन्हाई है’ प्यार के इन्हीं तन्हाई वाले पलों को समर्पित है.
तू भी चुप है मैं भी चुप हूं यह कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उन की अंगड़ाई शरमाई है
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुंचाने आई है
हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुंचाना है
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुंचाई है
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है
इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है
एक तो इतना हब्स है फिर मैं सांसें रोके बैठा हूं
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
पुस्तक: मैं जो हूं, ‘जॉन एलिया’ हूं
संकलन: शीन काफ़ निज़ाम
संपादन: डॉ कुमार विश्वास
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
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