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नेहरू के जाने के बाद हमने उनके पूरे किरदार को सलीब पर टांग दिया और गिद्ध की तरह उसे नोच रहे हैं!

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 14, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नज़रिया, सुर्ख़ियों में
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नेहरू के जाने के बाद हमने उनके पूरे किरदार को सलीब पर टांग दिया और गिद्ध की तरह उसे नोच रहे हैं!
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पंडित जवाहर लाल नेहरू की जीवन कथा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष और स्वतंत्र भारत के पुनर्निर्माण की एक विराट गाथा है. सदियों की टूटन और विदेशी गुलामी के बाद भारत को जिन विचारों ने अपने पांवों पर खड़ा किया और उसकी आज़ादी को सुनिश्चित किया, उसकी आधुनिकता और विकास को ठोस राह दी, वे जवाहर लाल नेहरू के ही विचार थे और इन विचारों पर मानव-मुक्ति की वैश्विक परंपरा और भारतीय चिंतन का गहरा प्रभाव था. यह कहना है पंडित नेहरू के बारे में नेहरू: मिथक और सत्य किताब लिखने वाले पत्रकार पीयूष बबले का. पंडित जी के जन्मदिवस पर वे उनके बारे में अपने नज़रिए से आपको रूबरू करा रहे हैं.

जब जब नेहरू का ज़िक्र आता है तो मुझे यूनान के एक पुराने देवता प्रोमेथियस की कथा याद आती है. प्रोमेथियस स्वर्ग से धरती को देखता था. नीचे देखता तो इंसान बड़ी बदहाली में दिखाई देता. कभी उसके बच्चों को जंगली जानवर खा जाते, तो कभी वे जाड़े से मर जाते. देवताओं की तरह दो पांवों पर चलने वाला यह प्राणी सारे चौपायों से गया-गुज़रा नज़र आता.

तब प्रोमेथियस को एक युक्ति सूझी. उसने देखा कि स्वर्ग में आग है. इस आग ने देवताओं को बहुत से सुख, शक्ति और सुरक्षा दी है. अगर यह आग किसी तरह धरती पर, इंसान के पास पहुंचा दी जाए तो इंसान अपनी बहुत-सी पीड़ाओं से मुक्त हो जाएगा.

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आग पर स्वर्ग और देवताओं का कॉपीराइट था. प्रोमेथियस क्या करता. उसने स्वर्ग से आग चुरा ली. चुपके से आग धरती पर इंसानों को दे आया. आग मिलते ही इंसान की रातें रौशन हो गईं, उसका भोजन पकने लगा, जंगली जानवर उससे डरने लगे. धरती पर सुख की ऊष्मा पसरने लगी. सुख आया तो देवताओं की चाकरी बंद होने लगी. मनुष्य अब उन्हें कम अर्घ्य चढ़ाने लगा.

देवताओं ने जांच की तो पता चला कि कांड हो चुका है. देवताओं की बपौती आग, धरती पर पहुंच चुकी है. आदमी आत्मनिर्भर हो रहा है. यह पता लगते भी देर न लगी कि आग प्रोमेथियस ने धरती तक पहुंचाई है. प्रोमेथियस को बंदी बनाकर देवताओं के राजा के सामने पेश किया गया. हर कोई उसे कड़ी सजा देता चाहता था. ज़्यादातर तो मृत्युदंड ही चाहते थे. लेकिन मृत्युदंड संभव नहीं था, देवता अमर होते हैं, वे भला कैसे मरें?

तब यूनान के इंद्र ने एक ज़्यादा ख़तरनाक सज़ा सोची. प्रोमेथियस को स्वर्ग से निकालकर ज़मीन पर लाया गया. वहां इंसान की बस्ती के पास कम ऊंची पहाड़ी पर उसे सलीब पर टांग दिया गया. ठीक वैसे ही, जिस तरह ईसा मसीह की सलीब पर टंगी तस्वीर हम देखते हैं. उसके शरीर में ठुकी कीलों से रक्त की धारा बह निकली. प्रोमेथियस असहनीय वेदना में टंगा हुआ था. फिर उसके कंधे पर एक गिद्ध बैठाया गया. यह गिद्ध दिनभर जीवित प्रोमेथियस का मांस नोचकर खाता. रात में जब गिद्ध सोता तो प्रमथ्यु का मांस फिर से भर जाता क्योंकि वह अमर देवता था. सुबह से गिद्ध फिर वही क्रम शुरू कर देता.

प्रमथ्यु की चीख़ें इंसानों की बस्ती तक पहुंचती रहतीं. सुबह की पहली किरण के साथ बस्ती वाले उस पहाड़ के नीचे पहुंच जाते. वे दिनभर प्रोमेथियस की चीख़ों को तमाशे की तरह देखते और शाम को फिर अपने घर आ जाते.

जिन मनुष्यों के लिए सलीब पर टंगा प्रोमेथियस अपना मांस नुचवा रहा था और असहनीय पीड़ा झेल रहा था, वे उसकी लाई आग से आगे बढ़ रहे थे और उसकी बेबसी का उत्सव मना रहे थे.

कथा यहीं समाप्त होती है. लेकिन कथा में बताई बात कभी ख़त्म नहीं होती. वह हर महापुरुष पर लागू होती है, जिसे गोली से नहीं मारा जा सका. लिंकन और गांधी सौभाग्यशाली थे कि उन्हें गोली से मार दिया गया. नेहरू अभागे थे, जो देश की मरते दम तक सेवा करते रहे. जब तक वे सेवा कर रहे थे, जब तक वे स्वर्ग की आग भारत तक ला रहे थे, वे बहुत लाड़ले थे. उनके जाने के बाद हमने उनके पूरे किरदार को सलीब पर टांग दिया और गिद्ध की तरह उसे नोच रहे हैं.

पहाड़ी के नीचे खड़े होकर उनकी पीड़ा का तमाशा देखने का सिलसिला अब इतना लंबा हो गया है कि तमाशाइयों की नई पीढ़ी यह भूल ही गई है कि इस शख़्स को किस बात की सज़ा दी जा रही है. आज नेहरू की जयंती पर उन्हें फिर याद दिलाता हूं कि नेहरू का जुर्म यही था कि जब अंग्रेजी राज में वह सारे सुख भोग सकता था, तब वह बाग़ी हो गया. जब नौजवान ही था तब उसने जलिंया वाला बाग हत्याकांड की रिपोर्ट विस्तार से तैयार की. वह उन चंद लोगों में था, जो लोकमान्य तिलक की अंतिम यात्रा में गांधी के साथ चल रहा था. वह उन लोगों में था, जिसके प्रभाव में आकर उसके पिता ने अपना घर-मकान सब कांग्रेस को दे दिया था. वह उन लोगों में था, जो पहली बार अपने पिता के साथ जेल गया था. वह उन लोगों में था, जो सरदार भगत सिंह से मिलने जेल गया था और भगत सिंह की रिहाई के लिए अंग्रेज़ों से लड़ रहा था. कांग्रेस के अंदर वह सुभाष चंद्र बोस का सच्चा दोस्त था. अपनी पत्नी कमला की मौत के बाद उनकी चिता की एक चुटकी राख वह जीवनभर अपने साथ रखता रहा. महात्मा गांधी के अंतिम उपवास में चुपचाप ख़ुद भी उपवास करने वाला वह विरला प्रधानमंत्री था. जब वह संसद में ट्रिस्ट विद डेस्टिनी का भाषण दे रहा था, तब उसके दिमाग़ में लाहौर के वे हिंदू मुहल्ले चल रहे थे, जहां का पानी काट दिया गया था.

वह इतना बुरा था कि जब दुनिया बमों के ढेर पर बैठी थी, तब भी शांति की बात करता था. उसकी शांति का ऐसा जलवा था कि कोरिया के गृहयुद्ध को अंतत: उसी ने एक समझौते पर पहुंचाया था. वह पूरी दुनिया में सम्मानित था और रहेगा. लेकिन उसके घर में उचक्कों का गिरोह, उसकी वेदना से तब भी मनोरंजन करता था आज भी कर रहा है और आगे भी करता रहेगा.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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