कलम और कट्टे के बीच जंग हो तो क्या होता है? कलम जीतती है या कट्टा? मुन्ना भाई और शिव के रिश्तों की ये कहानी कलम और कट्टे की कहानी है, पत्रकारिता और राजनीति की कहानी है, देश के परिवेश की कहानी है और एक ऐसी कहानी भी है, जिसमें जीते भले ही कोई भी आम लोग अपना हीरो तलाश कर ताली बजाते ही रह जाते हैं. प्रियदर्शन की यह कहानी आपको यथार्थ से रूबरू कराएगी.
मुन्ना भाई अब भी कभी-कभी मायूसी से भर जाते हैं जब उन्हें 30 साल पुराना वह लम्हा याद आता है.
उन्होंने शिव के मुंह में कट्टा घुसा दिया था और फ़ायर कर दिया था.
मायूसी यह नहीं कि उन्होंने ऐसी हरकत क्यों की थी.
मायूसी यह थी कि वह देसी कट्टा मिसफ़ायर कर गया था.
थरथराता शिव अगले कुछ मिनट बिल्कुल हक्का-बक्का सा देखता रहा, जैसे उसकी सांस रुक गई हो. लगा कि कट्टे से नहीं, वह हार्ट फेल हो जाने से मर जाएगा. उसके चारों तरफ़ खड़े लड़के भी बिल्कुल सन्नाटे में डूबे थे.
लेकिन जैसे यह सन्नाटा टूटा- सबने मुन्ना भैया को घेर लिया था. फिर कौन कहां मार रहा था, यह समझने का होश मुन्ना भैया में नहीं रह गया था.
आंख उनकी अस्पताल में खुली थी, एक कराह के साथ.
पहले एक नर्स की तीखी-सी निगाह से सामना हुआ. उन्होंने आंख बंद कर ली.
दोबारा खोली तो पाया कि मां की गीली आंखें सामने हैं.
तभी मां ने कसम ली थी कि मुन्ना कॉलेज में सिर्फ़ पढ़ाई करेगा, दादागीरी नहीं.
तीस बरस बाद भी मुन्ना भाई उस लम्हे को याद कर ठंडी सांस लेते हैं. काश कि मां ने क़सम नहीं ली होती. काश, वे बाद में उन लड़कों से बदला ले पाते, जिन्होंने उनकी पिटाई की थी. काश कि वे छात्र राजनीति की राह पर आगे बढ़े होते. आज राज्य सरकार में मंत्री तो बन ही गए होते.
हालांकि यह कट्टाबाज़ी भी कितनी बेमानी थी. बस एक सुबकती हुई लड़की को देखकर. मुन्ना भैया सबकुछ देख सकते थे, रोती हुई लड़की नहीं देख सकते थे. वह दौड़ कर आशा शर्मा के पास जा पहुंचे, ‘अरे, आप, रो, काहे रही हैं?’ अटकते-पटकते बस इतना ही बोल पाए.
एमए में पढ़ने के बाद भी लड़की लोग से बतियाने में मुंह हकलाने लगता था. लेकिन लड़की ने जो वजह बताई, उसे जान कर वे और बौखला गए. पता चला कि वह एसएफ़आई को एनएसयूआई से अच्छा बता रही थी. इसी पर एनएसयूआई के लड़कों ने उसके साथ बदतमीज़ी की. यानी कुछ अनाप-शनाप कहा और कुछ मज़ाक बनाया.
‘कौन था साला? नाम बताइए.’ मुन्ना भैया बिफर पड़े. आशा शर्मा ने सुबकियों के बीच ही बताया कि वह शिव है.
इसके बाद मुन्ना भैया शंकर हो गए. उनकी तीसरी आंख नहीं निकली, लेकिन जेब से कट्टा निकल आया. मैदान के ही दूसरे कोने पर हंसी-ठट्ठा कर रहे शिव और उसके दोस्तों के बीच जा पहुंचे. शिव कुछ कहता, उसके पहले कट्टा उसके मुंह में था… और फिर फ़ायर- नहीं मिसफ़ायर.
ख़ैर, मां ने कट्टा ही नहीं छुड़ाया, कलम पकड़ा दी. कहा,‘तू बड़ा आदमी बन.’
फिर बड़ा आदमी बनने के लिए मुन्ना भाई ने बड़े-बड़े पापड़ बेले. सबसे बड़ा पापड़ आईएएस का एग्ज़ाम था. इसके लिए दिल्ली भी चले आए. लेकिन रात-रात जाग कर आंख फूट गई, पापड़ हाथ न आया. फिर राज्यों की सिविल सर्विस परीक्षा दी. वहां भी फेल हो गए. फिर बैंकों का इम्तिहान दिया. वहां भी क़िस्मत पापड़ खिलाती रही. फिर क्लैरिकल ग्रेड तक उतर आए, यहां भी किसी लायक़ नहीं निकले. तब मुन्ना भैया ने सोचा- छोड़ो यह सब- पीएचडी करेंगे- कहीं प्रोफ़ेसर लग जाएंगे. लेकिन पीएचडी में पांच साल लग जाते. बहुत मुसीबत थी.
ऐसे में मां की दी हुई कलम ने ही रास्ता निकाला. वह मंडल कमीशन का साल था. मंडल कमीशन के ख़िलाफ़ निकलते जुलूसों में वे भी उत्साह से शामिल हुए. किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में पास न कर पाने की कसक उनके भीतर थी और उनको लगता था कि उनके बड़ा आदमी बनने की राह में यही छोटे लोग रोड़ा बन रहे हैं, जिनको आरक्षण चाहिए. फिर वे जुलूसों की ख़बर अख़बार के दफ़्तर में भी पहुंचाने लगे. आइटीओ के पास बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग का माहातम्य पहली बार उन्हें समझ में आया और एक अख़बार में आते-जाते पत्रकार संजय भैया उनके गुरु बन गए. उन्होंने ही सुझाया- क्या इस नौकरी-वौकरी में रखा है, पत्रकार बन जा. यूनिवर्सिटी की ख़बर देते रहियो. बहुत इज़्ज़त है- पैसा कम है, लेकिन चाहने पर पैसा भी बहुत है.
तो मुन्ना भाई ऐसे में पत्रकार बन गए. पहले उनको लगा कि कुछ पढ़ना-लिखना ज़्यादा पड़ेगा, लेकिन ये समझ में आया कि फ़ेल आईएएस भी पत्रकार से ज़्यादा पढ़ा-लिखा होता है. इसके पहले वे अपने एक प्रोफ़ेसर के साथ लग लिए थे- इस उम्मीद में कि उनसे कुछ ज्ञान मिलेगा. लेकिन प्रोफ़ेसर मिश्रा ज्ञान कम देते थे, अपने लेख ज़्यादा- और चाहते थे कि मुन्ना भैया इसको छपवा दें. मुन्ना भैया के वश का ये काम था नहीं फिर भी वे संजय भैया को बोलते, संजय भैया उनको डांटते-डपटते एकाध बार बॉस की चापलूसी कर कुछ छपवा देते.
धीरे-धीरे मुन्ना भैया पक्के पत्रकार बन गए. क़िस्मत से टीवी का जमाना आया तो कलम छूट गई और कैमरे के आगे खड़े हो गए. यह आसान भी था, मुश्क़िल भी. यहां मुन्ना भैया का कलम वाला कम कट्टे वाला अनुभव ज़्यादा काम आया. अक्सर रिपोर्टरों से ठेलाठेली करके किसी दृश्य को सबसे पहले पकड़ने में वे आगे रहते. एकाध रिपोर्टरों को हड़का भी देते. नेताओं को बेशर्मी से घेर लेते. बेधड़क सवाल पूछते. एक बार कृषि मंत्री से पूछ लिया,‘प्याज़ के दाम कब घटेंगे?’ कृषि मंत्री ने कहा कि यह सवाल वित्त मंत्री से पूछो. मुझे सपना आता है क्या?
बस मुन्ना भैया ने सपने को सच कर दिया. ख़बर चलवा दी कि कृषि मंत्री महंगाई घटने के सवाल पर कहते हैं, उनको सपना आता है क्या? इसके बाद तमाम टीवी चैनलों पर कृषि मंत्री का सपना ही था. मुन्ना भैया के माइक पर जो बात कही गई थी, मुन्ना भैया उसको चुपके-चुपके पैसे लेकर दूसरे चैनलों को भी दे चुके थे. अंत में कृषि मंत्री को सफ़ाई देनी पड़ी.
मुन्ना भैया को नहीं देनी पड़ी. तब मुन्ना भैया को लगा कि अच्छा किया कि कट्टे की जगह कलम पकड़ी. इसी कलम से देश के कृषि मंत्री से माफ़ी मंगवा ली.
इसके बाद तो मुन्ना भैया पत्रकारिता के चाणक्य बन गए. जान गए कि किसी भी नेता-मंत्री से कुछ विवादास्पद कहला दो और तीन दिन छाए रहो. अब उनके पुराने संपर्क भी उनके काम आने लगे थे. एक दिन शिव भी आया, वही जिसके मुंह में लगा कट्टा मिसफ़ायर कर उसका भविष्य बना गया और मुन्ना भैया का बिगाड़ गया. उसने मुन्ना भैया से माफ़ी मांगी. शुक्रिया भी अदा किया कि अगर उस दिन कट्टा अड़ा कर गोली न मारे होते तो रिस्क लेने की आदत नहीं पड़ती.
‘उस दिन समझ में आया मुन्ना, जब तुम्हारा कट्टा मिसफ़ायर हो गया न कि जान तो ऊपरवाले के हाथ में है. उसके पहले कोई मार नहीं सकता,‘ अब शिवशंकर सिंह हो चुका शिव बता रहा था.
मुन्ना भैया उसे कुछ ज़ख़्मी निगाहों से घूर रहे थे. अचानक याद आ गया कि कट्टा मिसफ़ायर होने का मामला भर नहीं था, उसके बाद शिव और उसके साथियों ने उनकी भरपूर पिटाई की थी जिसका बदला नहीं लिया जा सका.
लेकिन बदला लेने के हालात नहीं थे. शिवशंकर सिंह अब मंत्री थे. शिव को भी एहसास था कि मुन्ना भैया के भीतर पुरानी चुभन बची हुई है. तो उन्होंने बताया कि मुन्ना भैया भले पॉलिटिक्स के सीन से ग़ायब हो गए हों, लेकिन उनके दोस्तों ने शिव की बहुत पिटाई की थी.
‘बहुत मारा था रे,‘ शिव बता रहा था.
मगर मुन्ना भैया के पास भी इरादे थे. मुंह में घुसा कट्टा मिसफ़ायर हो जाए, मुंह में घुसा माइक नहीं होना चाहिए. तो उन्होंने शिवशंकर को अपनी दोस्ती का हवाला देते हुए एक बयान दिलवा ही लिया- ‘गाय काटने वालों को काट डालेंगे. पाकिस्तान भेज देंगे.‘
अगले दो दिन शिवशंकर सिंह के इस बयान पर बवाल होता रहा. विपक्ष उनसे इस्तीफ़ा मांगता रहा. उनकी पार्टी ने भी कहा कि वह माननीय शिवशंकर सिंह के इस बयान से सहमत नहीं है. उसने अपने-आप को इससे अलग कर लिया.
मुन्ना भैया प्रमुदित थे. उन्हें लग रहा था कि अब तो शिव को जाना पड़ेगा. ऐसा बयान देने के बाद पार्टी कम से कम उनसे मंत्री पद तो ले ही लेगी. उनको लग रहा था कि शिव उनसे नाराज़ होगा. उन्होंने तय किया कि अगले कुछ दिन वे शिव से नहीं मिलेंगे.
लेकिन एक सुबह जब उनका फ़ोन घनघनाया तो लाइन के दूसरी तरफ़ शिवशंकर सिंह मिले, ‘का मुन्ना. कहां गायब हो?’ मुन्ना भैया एक क्षण के लिए सकपकाए, लेकिन तुरंत संभल कर उन्होंने कहा, ‘अरे नहीं यार, लगा कि तुम परेशान होगे मेरी वजह से. तुम्हारा बेकार-सा बयान तीन दिन चलता रह गया.‘
मगर शिवशंकर सिंह परेशान नहीं, होहोहो हंसते दिखे.
‘अरे मुन्ना, तुमने तो कमाल कर दिया. क्षेत्र में मेरा जयजयकार हो रहा है. पार्टी कहां मुझे हटाना चाहती थी और कहां लोग मेरा सम्मान कर रहे हैं. तुम तो आओ गुरु, तुमको और धाकड़ बयान देते हैं. जनता फिर पूरी तरह मेरे साथ होगी.‘
मुन्ना भैया मायूस हो गए. इस बार माइक भी मिसफ़ायर कर गया? उन्हें लोगों पर ग़ुस्सा आया. भारतीय राजनीति से वितृष्णा हुई. मां ने ठीक कहा था,‘इन सबसे दूर रहना.’
मुन्ना भैया को समझ में आया, ये कमीने लोग सिर्फ़ नफ़रत की राजनीति कर रहे हैं. हालांकि वे कुछ मायूस भी थे. यह काम भी वे शिव से बेहतर कर सकते थे. शिव की हिम्मत उनके सामने खड़े होने की नहीं होती थी.
कोई बात नहीं. इस बार वे शिव को छोड़ेंगे नहीं. शिव से उन्होंने मेल-जोल बढ़ाना शुरू कर दिया. हालांकि यहां एक उलझन उनको साफ़ नज़र आने लगी. शिव जब लोगों के बीच होता था तो उनसे दूरी बरतता था, जैसे मुन्ना भैया की कोई हैसियत ही न हो. पहली बार जब उनसे मिलने गया तो शिव ने सबके बीच उसके कंधे पर हाथ रखा,‘आ गए मुन्ना. बैठो-बैठो, तुम भीतर बैठो. परेशान मत होओ, तुम्हारा भी काम करता हूं.‘
मुन्ना भैया परेशान नहीं हैरान थे. उन्होंने कब शिव को अपना काम करने को कहा था. पुराने दिन होते तो वह उसे पटक कर मारते. लेकिन अब उनकी उमर 55 छूने जा रही थी, ऐसा नहीं कर सकते थे. इसके अलावा वह मंत्री था और वे मामूली पत्रकार, यह बात उनकी समझ में ख़ूब आती थी.
तो वे कुछ थके क़दमों के साथ शिवशंकर सिंह की बैठकी के भीतरी कमरे में चले गए. सोचते रहे कि शिव का कट्टा उनकी कलम पर अब भी भारी पड़ रहा है. कुछ देर बाद शिव भीतर आ गया. आते ही उसने माफ़ी मांगी,‘मुन्ना भाई, पब्लिक फ़ेस कुछ अलग होता है. उन सबको बता दिए हैं कि तुम एक ख़ास इंटरव्यू के लिए आए हो. नहीं तो लोग कुछ का कुछ सोचने लगते हैं.‘
मुन्ना भैया चुप रहे. कोई आकर दो चाय रख गया था, सो उठा कर पीते रहे. शिव पुराने दिनों की बात कर रहा था,‘मुन्ना, तुम अलग हो गए राजनीति से, बहुत अच्छा किए. बहुत कीचड़ है. गंदगी है. जिस-तिस की चापलूसी करनी पड़ती है. तुम अच्छी लाइन में हो. तुम शुरू से अलग थे.‘
मुन्ना भैया अब भी चुप रहे. शिवशकंर अनजाने में उनकी दुखती रग छू बैठा था. पत्रकारिता ने भी उन्हें क्या दिया. बेशक़, एक पहचान दी, लेकिन यहां की इंटर्नल पॉलिटिक्स कम है? कभी उनसे जूनियर रहने वाला राजीव चापलूसी करके ही टॉप पर पहुंच गया और अब तरह-तरह के पुरस्कार जीत कर मसीहा बना हुआ है. वे बस मुन्ना रह गए. अब उनका असली नाम- मनमोहन ठाकुर- भी लोग जैसे भूल जाते हैं. सब उनको मुन्ना भैया ही बोलते हैं.
लेकिन तभी कमरे के बाहर शोर मचने लगा था. कोई आकर शिवशंकर के कान में कुछ फुसफुसा गया और उनके चेहरे का रंग बदल गया था. फिर अचानक शिव उठा, ‘मुन्ना, निकलो तुम, कुछ इमरजेंसी आ गई है. हम लोग करते हैं बात.‘ उसने मुन्ना के निकलने का इंतज़ार तक नहीं किया और तीर की तरह कमरे से निकला.
लेकिन मुन्ना भैया नेता नहीं थे तो क्या हुआ, पत्रकार तो थे ही. उनको मालूम था कि यह निकलने की घड़ी नहीं है. नेता की इमरजेंसी पत्रकार की ब्रेकिंग न्यूज़ होती है. वे चहलक़दमी करते बाहर आए. बाहर सन्नाटे जैसा हाल था. सब लोग कहां निकल गए? मुन्ना भैया ने इधर-उधर देखते हुए अचानक गार्ड रूम के पास खड़े एक आदमी से पूछा,‘कहां गए सब लोग जी?’
‘का बताएं मुन्ना भैया, कांड हो गया है,‘ मुन्ना भैया चौंके, यह परिचित लहजा किसका है? सवाल का जवाब सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ी.
‘पहचाने नई भैया, हम सूरज हैं न!’
‘सूरज!‘ अगले ही क्षण मुन्ना भैया ने पहचान लिया- यह तो उनका चेला था, उनका बहुत भरोसेमंद आदमी- शिव के साथ कबसे है?
‘का कहें भैया, शिव भैया ठेका-ऊका दिला देते हैं कुछ-कुछ. इसी से कट रहा है जीवन,’ सफ़ाई देने में सूरज ज़रा भी देर नहीं कर रहा था. हालांकि मुन्ना भैया को लग रहा था कि सूरज उन पर तोहमत मढ़ रहा है कि उनसे तो कुछ हुआ नहीं.
फिर नेता की जगह पत्रकार बनने के अपने फ़ैसले पर कुछ मायूस से हुए मुन्ना भैया. लेकिन यहां एक बार फिर सूरज ने उन्हें उबार लिया,‘भइया, लेकिन असल पावर तो आपके पास है. पत्रकार चाहे तो चुटकियों में नेता को बना दे और बिगाड़ दे.‘
अचानक मुन्ना भैया को ख़याल आया- यह बनाने-बिगाड़ने की घड़ी है. उन्होंने सूरज से पूछा,‘अभी हुआ क्या है जी, शिव अचानक भाग कर कहां चला गया?’
सूरज के चेहरे पर एक चौकन्ना, ख़ुफ़िया मुस्कुराहट उभरी. इधर-उधर देखकर फुसफुसाया,‘बहुत बड़ा मामला है भैया. आपसे नहीं छुपाएंगे लेकिन.‘
मुन्ना भैया उसे देखते रहे. सूरज ने आवाज़ और मद्धिम कर ली,‘सीडी बन गया है. सेक्स सीडी‘
मुन्ना भैया बिल्कुल सनसना उठे. यही, कुछ इसी तरह का मसाला उनको शिव के ख़िलाफ़ चाहिए. अचानक उनकी आवाज़ उत्तेजना से भर गई,‘कहां है सीडी?’
सूरज बस मुस्कुराता रहा. मुन्ना भैया एक लम्हे को उसका कॉलर पकड़ने को हुए, लेकिन फिर ख़याल आया कि वे कलम वाले हैं कट्टे वाले नहीं और सूरज भी उनका नहीं, शिव का आदमी है. लेकिन यही मौक़ा है जिसे किताबों में मत चूको चौहान कहा जाता है. तो कॉलर पकड़ने को उठा हाथ कंधे पर दोस्ताना ढंग से टिक गया. ‘सूरज, बचपन का यार है तू. जानता है, मैं हमेशा ग़लत के ख़िलाफ़ लड़ता रहा. शिव भी ग़लत करेगा तो नहीं करने दूंगा. क्या है उस सीडी में? कहां से मिलेगी?’
सूरज हंसता रहा. ज़िंदगी ने उसे इतना सिखा दिया था कि जीवन में ऐसी घड़ियां कम होती हैं जब चीज़ें बिल्कुल उसके हाथ में हों. इन घड़ियों को ज़ाया नहीं होने देना चाहिए.
उसने कहा,‘मुन्ना भैया, भरोसे की बात है. शिव भैया बोले हैं कि उनको बस हमही पर भरोसा है. ई भरोसा कैसे तोड़ें? आप के ही चेले हैं, आपका ही सिखाया उसूल है.‘
मुन्ना भैया बेचैन हो गए. समय कम है. कभी भी शिव लौटेगा और कहानी पलट देगा. सूरज से उगलवाना होगा कुछ न कुछ.
‘सूरज, देख, शिव का तो अता-पता नहीं है, आज मंत्री है तो कल सड़क पर होगा. मैं हूं पत्रकार. जब रहूंगा, किसी चैनल, किसी अख़बार में रहूंगा. हाथ में माइक और क़लम होंगे ही. तो समझ ले. ये बहुत बड़ा मौक़ा है. और देख, शिव जाएगा तो मैं तेरा ही नाम टीवी पर बोल दूंगा कि तू ही पार्टी संभालने लायक है शिव की जगह.‘
सूरज के सामने यह एक नई संभावना थी, जिस पर उसने विचार ही नहीं किया था. हालांकि उसे मालूम था कि मुन्ना भैया चारा जितना बड़ा फेंक रहे हैं, उसमें उतना दम नहीं है. लेकिन एक बार अपनी रिपोर्ट में टीवी पर मुन्ना भैया उसका नाम भर ले लें तो दिल्ली से लेकर शहर तक में उसका वज़न तो बढ़ ही जाएगा. लेकिन इतने भर से वह मुन्ना भैया को सीडी कैसे सौंप दे?
‘मुन्ना भैया, देखिए, ये लाखों की सीडी है. इसको ऐसे बरबाद नहीं कर सकते.‘
अब मुन्ना भैया का सब्र जवाब देने लगा था,‘साले रहोगे हमेशा अपनी बस्ती के. हर जगह दुकानदारी और पैसा देखते हुए. तुमसे न दोस्ती संभलेगी और न राजनीति. जाओ मत दो. हम निकाल लेंगे कहीं न कहीं से.‘
अब सूरज ने राज़ खोला. कि सीडी उसके पास भी नहीं है. लेकिन उसे पता है कि सीडी में क्या है. ये सब लोग जब नैनीताल गए थे तो रास्ते में किसी रेस्ट हाउस में रुके थे. वहीं यह सब बन गया. किसी विपक्षी ने नहीं, अपने ने ही बनवाया है. कुछ देर पहले ही शिव भैया के मोबाइल पर उसका क्लिप आया है. उनको पता चल गया है कि ये किसका काम है. उसी का मुंह बंद कराने गए हैं.
फिर सूरज ने बताया कि सीडी तो पूरे आधे घंटे की है, लेकिन तीन मिनट की क्लिप उसके मोबाइल पर भी है. इतने भर से मुन्ना भैया फड़क उठे,‘अरे, मेरा काम इसी से चल जाएगा! बाक़ी छोड़ो.‘ लेकिन सूरज यह तीन मिनट की क्लिप भी देने में हिचक रहा था. उसे मालूम था कि यह ख़तरनाक मामला है. लेकिन मुन्ना भैया के प्रस्ताव ने लालच का एक बीज तो उसके भीतर रोप ही दिया था. राजनीति में आगे बढ़ना है तो किसी को लंघी मारनी ही पड़ेगी. और मुन्ना भैया जैसे पत्रकार से बनाए भी रखना पड़ेगा. तो अंततः उसने दोस्ती और इंसानियत का हवाला देते हुए सीडी की क्लिप मुन्ना भैया के मोबाइल पर फ़ॉरवर्ड कर दी. मुन्ना भैया ने क्लिप देखी तो हैरान रह गए. इसमें भी ख़ूब दोस्ती और इंसानियत भरी पड़ी है साली. इतना प्यार हो रहा है एक-दूसरे से. और शिव तो बिल्कुल जानवर दिख रहा है.
मुन्ना भैया बिल्कुल दुलकी चाल से दफ़्तर आए. एक बार फिर कलम के सामने यह साबित करने की घड़ी थी कि वह कट्टे को मात दे सकती है. यह क्लिप तो उनका दफ़्तर चलाएगा ही. ऐसे सनसनीखेज मसालों के लिए ही टीवी चैनल बने हैं.
बॉस ने भी मुन्ना भैया की पीठ थपथपाई. कहा कि असल में आजकल के कॉलेजों से पढ़े लड़के, जो पत्रकारिता में आ रहे हैं, वे नहीं समझते कि न्यूज़ कहां है. यह तो मुन्ना भैया जैसे लोग ही जान सकते हैं, जिन्होंने राजनीति में लंबा समय काटा है कि ख़बर कहां मिलती है और कैसे चलती है.
तो उस शाम ठीक सात बजे- पहले से इसका प्रोमो किया जा चुका था- ठीक सात बजे ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियां लपेटे मुन्ना भैया अपने टीवी चैनल पर प्रगट हुए. अगले आधे घंटे में वह क्लिप आठ बार चली- और मुन्ना भैया बताते रहे कि राजनीति का स्तर कहां पहुंच गया है. कि यह कैसा पाखंड है कि गोरक्षा की बात करने वाली पार्टी का मंत्री एक लड़की के साथ अनैतिक स्थिति में पकड़ा गया है.
मुन्ना भैया ने बिल्कुल रंग जमा दिया. विपक्ष मंत्री शिवशंकर सिंह का इस्तीफ़ा मांग रहा था और पक्ष सबूत. उसका कहना था कि यह क्लिप असली है या नकली- यह तो पता चले, किसने किस मक़सद से बनवाया है, यह तो समझ में आए. और सबसे बड़ी बात- यह दो बालिग लोगों के बीच का संबंध है- इसमें अनैतिक कुछ नहीं है, अनैतिक इसकी रिकॉर्डिंग है और इसके आधार पर ब्लैकमेलिंग की कोशिश है, बल्कि शिव की पार्टी के प्रवक्ता ने लगे हाथ यह भी याद दिला दिया कि विपक्ष के कई नेता हैं जिन पर बलात्कार का आरोप है. पहले वे इस्तीफ़ा दें फिर शिवशंकर सिंह से इस्तीफ़ा मांगें.
लेकिन उस शाम सभी चैनलों की दुकानें इसी क्लिप से सजी रही थीं. शिवशंकर सिंह ने प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया था. उनकी पार्टी की ओर से एक छोटा-सा प्रवक्ता मोर्चा संभाल रहा था. दुर्भाग्य से अभी सत्र नहीं चल रहा था, वरना वहां भी इस मुद्दे पर बवाल होता.
ख़ैर, मुन्ना भैया ख़ुश थे. उनको मालूम था कि इस बार उनका जलवा चलेगा. दफ़्तर में तो सब उनकी तारीफ़ कर ही रहे थे, बाहर भी तरह-तरह की सुगबुगाहट चल रही थी. यह ख़बर भी आ रही थी कि पूरी क्लिप में कई लोग हैं मगर मुन्ना भैया ने जान-बूझ कर बस शिवशंकर सिंह को दिखाया. बचपन की दुश्मनी निकाल ली है.
मुन्ना भैया कुछ मायूस ज़रूर थे कि पूरी क्लिप हाथ लग जाती तो कई दिन का तमाशा मिल जाता. यह भी उन्हें खयाल आया कि कहीं सूरज ने आधी ही बात न बताई हो. लेकिन फिर भी वे मगन थे. उन्हें भरोसा था कि इस बार भी देर-सबेर शिव का फ़ोन आएगा, इस नाराज़गी से भरा कि उनकी वजह से उसका करियर चौपट हो गया.
वाक़ई, एक हफ़्ते बाद शिव का फ़ोन आ गया, ‘कहां बच-बच के घूम रहे हो मुन्ना. तुम तो मेरा रिऐक्शन लेने का भी कोशिश नहीं किए. जबकि पत्रकारिता में तो यह नियम चलता है न कि जिसके ख़िलाफ़ ख़बर दो, उसकी भी बात रखो.‘
मुन्ना ने सफ़ाई देने की कोशिश की कि उस दिन शिव का फ़ोन ही नहीं लग रहा था. ‘बहुत कोशिश की, लेकिन फ़ोन बंद आता रहा तुम्हारा इसलिए तुम्हारी पार्टी के प्रवक्ता को बुलाना पड़ा शिव. और तुम जानते हो, बड़ी ख़बर हो तो रोकना मुश्क़िल होता है. हालांकि मैं हिचक रहा था, लेकिन मेरे बॉस को मालूम हो गया था कि मेरे पास क्लिप है.‘ मुन्ना भैया ने हल्का-सा झूठ जोड़ने की कोशिश की.
इस बार शिव हंसा, ‘मुन्ना, हमको मालूम है कि तुमको क्लिप कहां से मिला. हम ही उसको बोले थे कि तुमको दे दे. तुम क्या समझते हो, सूरज हमसे अलग होने की हालत में है?’
मुन्ना भैया के लिए यह काटो तो ख़ून नहीं वाला मामला था. लेकिन शिव पर वे भरोसा नहीं कर सकते थे. सूरज का असमंजस उनको तब भी दिखाई पड़ रहा था. तो शिव बस जानना चाह रहा था कि सूरज ने ही उन्हें क्लिप दी है या नहीं.
‘अरे भूल जाओ शिव, मेरे और भी सोर्स हैं. सूरज का तो मुझे पता भी नहीं,‘ मुन्ना भैया ने इस बार साफ़ झूठ बोला. लेकिन शिवशंकर सिंह इसे पहले ही भूल चुके थे- ‘आज शाम आओ, बहुत दिन बाद निश्चिंत होकर बैठे हैं. कुछ गप्प करते हैं.‘
मुन्ना भैया की भी छुट्टी थी. उन्होंने तय किया कि वे शिव से मिलेंगे. तो शाम को फिर उसके बंगले पर वे हाज़िर थे. फिर वही हलचल थी, जिसके पार वह कमरा था, जहां पिछली बार शिव और मुन्ना बैठे थे.
‘मुन्ना, फिर तुमको धन्यवाद देना है,‘ शिव के इस अंदाज़ पर मुन्ना भैया की कुछ समझ में नहीं आया. वे कुछ हैरान से शिव की ओर देखते रहे.
‘देखो, अब इसको अपनी क़िस्मत कहो या मेरी. तुम्हारा कट्टा बार-बार मिसफ़ायर कर जाता है. इस बार तुमने जो क्लिप दिखाई, उससे भी मेरा भला ही हुआ.’
‘कैसे?’ मुन्ना भैया हैरान थे.
इसके बाद शिवशंकर सिंह ने पूरी कहानी सुनाई,‘देखो, धीरज रखते तो हमही तुमको पूरा सीडी दिखा देते. उसमें हम अकेले नहीं थे. और सीडी भी एक ही नहीं है, कई है. तो मेरा मामला उछला तो हमने कहा कि हम दूसरों का मामला भी उछालेंगे. भाई, सब एक पार्टी में हैं तो सबके लिए इंसाफ़ होना चाहिए. इसके पहले अध्यक्ष जी सलाह दे रहे थे कि हम इस्तीफ़ा दे दें. उनकी मुख्यमंत्री से बात भी हो गई थी. लेकिन हमने समझा दिया कि हम अकेले नहीं जाएंगे, पूरी सरकार जाएगी. इस्तीफ़ा सबको देना पड़ेगा. इसके बाद फिर सब हमको समझाने लगे. हमने भी मौक़े का फ़ायदा उठाया. तन गए. तो जानते हो मुन्ना, पार्टी ने मेरे साथ डील की है. अगली बार और मलाई महकमा.’
लेकिन मुन्ना भैया के दिमाग़ में एक सवाल और था जिसे पूछे बिना वे नहीं रह पाए,‘यार शिव, मुझे चिंता है कि जब तुम अपने इलाक़े में जाओगे तो जनता क्या कहेगी. तुम्हारे विरोधी लोग तो तुम्हारी सीडी मुफ़्त में बंटवा रहे होंगे.’
इस बार शिवशंकर सिंह ने गगनभेदी ठहाका लगाया,‘अरे मुन्ना, तुम पुराने ढंग से सोचते हो. अब राजनीति पूरी तरह बदल गई है. अच्छा- बुरा नहीं चलता, अपना-पराया चलता है. जो अपना है और ताक़तवर है, वह ठीक है. और जनता, उसके पास बड़े सवाल हैं…अब धर्म और देश को बचाने का मामला है. इसके लिए मैंने काफ़ी कुछ किया है. पता है, अपने इलाक़े के शहीदों के लिए पेंशन का भी इंतज़ाम किया है?’
मुन्ना भैया चुप थे और शिवशंकर बोले जा रहे थे,‘अरे हमको शिवाजी बचाएंगे, राणा प्रताप बचाएंगे, झांसी की रानी बचाएगी, भगत सिंह बचाएंगे. देश के बड़े-बड़े सवाल के सामने ये छोटा-मोटा सीडी क्या है मुन्ना!’
हंसते-हंसते शिवशंकर सिंह ने मुन्ना के कंधे पर हाथ रखा.
‘असल में इस बार हम नहीं, तुम्हारी भौजाई तुमसे बहुत नाराज़ हैं. कहती हैं कि मुन्ना आएगा तो ज़रूर मिलाइएगा.‘
मुन्ना भैया के लिए यह भी अचरज की बात थी. शिव ने कभी अपनी पत्नी की उससे चर्चा ही नहीं की. क्या वह उसे जानती है?’
लेकिन शिवशंकर सिंह ने उसे यह सवाल पूछने का अवसर नहीं दिया. वे किसी को आवाज़ दे रहे थे,‘आ जाइए भाई. आपके पुराने परिचित आए हुए हैं.‘
एक मंहगी साड़ी में लिपटी हुई, जो सकुचाती काया मुन्ना भैया के सामने प्रगट हुई, उसे पहचानने में एक लम्हा लगा, लेकिन फिर मुन्ना भैया अवाक् रह गए. बाल कुछ सफ़ेद हो गए हैं, गालों पर भी हल्की झुर्रियां हैं, लेकिन यह तो वही है- आशा शर्मा, जिसके लिए उन्होंने शिव के मुंह में कट्टा घुसाया था.
आशा शर्मा मुन्ना भैया को नमस्कार कर रही थी. लेकिन यह तो बिल्कुल अलग आशा शर्मा थी. यह उनके साथ कॉलेज में पढ़ने वाली सुबकती हुई लड़की नहीं थी, यह नथूने फुलाए सामने आई एक गृहस्थन थी. वह नाराज़ थी, लेकिन दोनों से,‘इनको तो हम बाद में देख लेंगे. गंदा-गंदा हरकत करते हैं. सोचिए बच्चा लोग बड़ा हो गया है, लेकिन सीडी कांड में पकड़ाए हैं. बहुत बार बोले, छोड़ दीजिए पॉलिटिक्स, पेट्रोल पंप से चल जाएगा काम.‘
मुन्ना भैया को पहली बार मालूम हो रहा था कि शिवशंकर सिंह ने पेट्रोल पंप भी खोल रखा है. लेकिन आशा शर्मा कुछ और कहती दिख रही थी,‘आप बहुत अच्छा हैं, मुन्ना भाई. छोड़ दिए ई सब. बहुत बड़ा पत्रकार हैं. अच्छा लगता है. लेकिन अब इनका इज़्ज़त आपके हाथ में है. और इनके साथ मेरा इज़्ज़त भी जुड़ा हुआ है. आपसे हाथ जोड़ते हैं,आगे ई सब मत चलाइएगा.‘
मुन्ना भैया कुछ बोल नहीं पा रहे थे. उन्होंने बस सिर हिलाया. अगले दस मिनट में कैसे चाय पी, कैसे आशा शर्मा के बार-बार आग्रह पर रसगुल्ला निगला, कैसे आशा शर्मा ने हंस-हंस कर बताया कि वह शिव के क़रीब आईं, कैसे उसके घर से निकले, कुछ याद नहीं रहा. बस, बीए में पढ़ी एक कहानी याद आ रही थी- उसने कहा था. उनका मन कर रहा था, किसी से कहें- लहना पानी पिला. लेकिन वहां कोई नहीं था. कलम फिर मायूस थी कि कट्टा नहीं चला.
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