यूं तो बिजली की चमक के काफ़ी बाद आवाज़ सुनाई देने का वैज्ञानिक कारण होता है. पर एक कवि इसके दूसरे कारणों पर भी रौशनी डालता है. पढ़ें, नरेश सक्सेना की बड़े अर्थों वाली कविता ‘पीछे छूटी हुई चीज़ें’.
बिजलियों को अपनी चमक दिखाने की
इतनी जल्दी मचती थी
कि अपनी आवाज़ें पीछे छोड़ आती थीं
आवाज़ें आती थीं पीछा करतीं
अपनी ग़ायब हो चुकी
बिजलियों को तलाशतीं
टूटते तारों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं
वे इतनी दूर होते हैं
कि उनकी आवाज़ें कहीं
राह में भटक कर रह जाती हैं
हम तक पहुंच ही नहीं पातीं
कभी-कभी रातों के सन्नाटे में
चौंक कर उठ जाता हूं
सोचता हुआ
कि कहीं यह सन्नाटा किसी ऐसी चीज़ के
टूटने का तो नहीं
जिसे हम हड़बड़ी में बहुत पीछे छोड़ आए हों!
कवि: नरेश सक्सेना (संपर्क: 09450390241)
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