जगत मिथ्या और ब्रह्म सत्य है या ब्रह्म मिथ्या और जगत सत्य. ये विवाद सदैव से चलता आया है और चलता रहेगा. किंतु इसका उत्तर जानने के लिए अगर हम पुराणो की ओर जाएं और उनका सिर्फ़ पठन ही नहीं मनन भी करें तो पाएंगे कि हमारे व्रत, उपवासों में कोई तो वैज्ञानिक आधार छिपा है, जिन्हें यदि हम समझ लें तो इन्हें बनाने के उद्देश्य से परिचित हो सकेंगे. हो सकता है हमारे द्वंद्वग्रस्त मन को पूजा की सही विधि भी मिल जाए और अपने स्तर पर कुछ सार्थक करने का संतोष भी. यहां नवरात्र के छठवें दिन की आराध्य देवी कात्यायनी की पूजा की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रही हैं भावना प्रकाश.
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की सम्मिलित शक्तियों से प्रकट हुई देवी कात्यायनी द्वारा महिषासुर नामक राक्षस के वध की कथा तो हम सबने पढ़ी ही है. अगर प्रतीकार्थ में देखें तो ये सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक कथा है.
भले ही मानव प्रकृति का सबसे उन्नत जीव कहलाता है, लेकिन उसकी ज़िंदगी कभी आसान नहीं रही. न आज है. अपने जीवन को अपनी मनोवांछित ऊंचाइयों तक ले जाने का सपना हम सब देखते हैं. हम सब जानते हैं कि काम हमें भीतरी-बाहरी संघर्षों से जूझते हुए करना है. अपने सपनों को पूर्ण करने के लिए ही नहीं, ख़ुद को अवसाद से बचाने के लिए भी अपने भीतर की सृजनात्मकता को जीवित रखना है अर्थात ब्रह्मा की शक्ति से उद्भासित रहना है. हम जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और आत्मा निवास करते हैं. स्वस्थ और फुर्तीला तन ही सपने पूरे करने का उपकरण बन सकता है. इसके लिए अपने सही और निरंतर पोषण की भी आवश्यकता है अर्थात भगवान विष्णु की शक्तियों को आत्मसात करना भी ज़रूरी है. अपने शरीर और मन की उपेक्षा से जन्मे संकटों के बारे में और अपना ध्यान रखने के उपायों के बारे में आपने इतना पढ़ा होगा कि इसकी चर्चा समीचीन नहीं लगती.
महिषासुर मर्दिनी देवी कत्यायिनी के प्रतीकार्थ और प्रासंगिकता की बात करें तो क्रुद्ध होकर सरपट दौड़कर सिर्फ़ विनाश चाहने वाला भैंसा है महिषासुर. महिषासुर हमारे विवेकहीन क्रोध, विनाशकारी लालसाओं, अतार्किक कुंठाओं का प्रतीक है. हम सबके भीतर कोई न कोई ऐसी प्रतिभा अवश्य होती है, जो हमें सृजनात्मकता का आनंद दे सकती है. ये हैं ब्रह्मा की शक्तियां. कुछ अच्छी आदतें, कुछ गुण अवश्य होते हैं, जिनका विकास तथा संरक्षण हमें यश दिला सकता है. उपयोगी आदतों का संरक्षण और अनुपयोगी आदतों का विनाश करते रहना ही भीतर स्थित विष्णु और शिव की शक्तियों की उजास को बनाए रखना है. इन तीनों शक्तियों के परम विकास में रत रहते हुए अपनी विवेकहीन कामनाओं और अंध क्रोध और आक्रोश का मर्दन करते रहना ही मां कात्यायनी की सच्ची पूजा है.
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