किताबघर प्रकाशन से आए कवयित्री नीलेश रघुवंशी के कविता संग्रह ‘खिड़की खुलने के बाद’ से ली गई यह कविता मुहावरे के साथ-साथ पानी की कमी, पानी की बर्बादी और उसे बर्बाद करने वाले लोंगो की कहानी कह जाती है.
‘‘पैसे की तरह पानी मत बहाओ.’’
पोस्टर और मुहावरों से सजा
सड़क पर पानी गिराता जाता ये टैंकर
जा रहा है
उन भूखी सूखी बस्तियों की ओर
जिनके पास चुल्लू भर पानी भी नहीं कि
डूब मरे जिसमें यह मुहावरा.
किसने मारी ठोकर जल से भरे लोटे को
किसने बेदख़ल किया
मुहावरे को अपनी जगह से
किसने निचोड़ लिया पानी मुहावरे का
पानी की तरह पैसे मत बहाओ
पैसे की तरह पानी मत बहाओ
धन, बल और जल के अपराधियों की
छपनी चाहिए तस्वीर
गिरते जलस्तर को दर्शाती सूचनाओं में
मत बहाओ पानी
पैसे को भी मत बहाओ.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट