कविता एक सरल और बेहद कठिन विधा है. सरल इसलिए क्योंकि भावनाओं से भरा हर मनुष्य कवि होता है, और कठिन इसलिए क्योंकि कविता महज़ लफ़्फ़ाजी नहीं हो सकती, उसमें आपका भावनाओं के साथ-साथ संवेदना और एक व्यापक दृष्टि भी होनी चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चर्तुर्वेदी को कवयित्री ज्योति जैन के संग्रह ‘जेब में भर कर सपने सारे’ पढ़ते हुए हर एक कविता संवेदना से भरी लगी.
पुस्तक: जेब में भर कर सपने सारे
कवयित्री: ज्योति जैन
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन
मूल्य: 150 रुपए
पृष्ठ संख्या: 136
रेटिंग: 3.5/5 स्टार
समीक्षक: सर्जना चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
स्त्री, प्रेम और विविध इन तीन भागों में बंटे कविता संग्रह जेब में भरकर सपने की संक्षेप में समीक्षा करनी हो तो मैं कहूंगी, उम्मीद और सकारात्मकता से भरी कविताओं का गुलदस्ता. अब इन पंक्तियों को ही देखें
‘जीवन में मिले दुखों को ही,
क्यों चुनते रहते हो?,
जो छोटी-छोटी ख़ुशियों के,
फूल समान पल मिले हैं,
उन्हें ही चुनो ना….’
कवयित्री ज्योति जैन की फूल या कांटे शीर्षक वाली कविता की ये पंक्तियां जीवन में मिले कुछ दुखों को लेकर परेशान रहनेवाले मनुष्य से बतकही करती है. उसे जीवन को देखने का नज़रिया बदलने की सलाह देती है. उससे पूछती है हर दिन मिलने वाली छोटी-छोटी ख़ुशियों को आख़िर वह निरंतर क्यों नज़रअंदाज करता है? वहीं ‘कोई नाकाम नहीं होता’ शीर्षक वाली कविता संदेश देती है कि जीवन में मिली किसी असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीवन में आगे बढ़ने और बेहतर गढ़ने के अवसर फिर मिलते रहते हैं.
कवयित्री सकारात्मकता की बात को रिश्तों तक भी ले आती हैं. ‘मैं नहीं, हम हैं प्रेम’ कविता प्रेम संबंध की अहमियत को दिखाती है. मेरे पापा शीर्षक कविता की पंक्तियां ‘तुमने चलना मुझे सिखाया…हाथ आज मैं थामता हूं…’ एक पुत्र जीवन में पिता द्वारा किए गए कार्यों के महत्व के बारे में बता रही है. वहीं मां शीर्षक वाली कविता में मां और मां द्वारा पहने गए आभूषणों की तुलना की गई है.
ज्योति जैन नारी शक्ति को कम समझने वालों पर बहुत ही हल्के से ही, पर अचूक प्रहार करती हैं. चूड़ियों की शक्ति नामक कविता में किसी विरोध प्रदर्शन में चूड़ियां भेंट करने और उन्हें कमज़ोरी की निशानी मानने पर सवाल उठाए गए हैं. घर में बच्चे के आने से हमेशा व्यवस्थित रहने वाला घर भी अस्त-व्यस्त रहने लगता है, लेकिन जीवन ज़रूर ख़ूबसूरत बन जाता है. यह हर घर में बच्चे के आने से शीर्षक कविता में कवयित्री ने बताने की कोशिश की है. रोटी शीर्षक कविता में बताया है कि ‘कैसे भूखे बच्चों को, मां के चेहरे में भी, रोटी ही नज़र आ रही थी.’ तो शाम ढलने के बाद रोटी में ही मां का चेहरा नज़र आ रहा था.
सरल हिंदी में संवेदनशीलता, सामाजिकता, रिश्ते-नाते आदि विषयों पर केंद्रित लघु कविताएं आपको रोज़मर्रा की चीज़ों को देखने की नई दृष्टि देंगी. रिश्तों के उलझे धागों को सुलझाने की हिम्मत भरेंगी और चुपके से आपको पहले से बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करेंगी.