नारी को शक्ति और देवी कहा जाता है. पर मुंह से देवी कह देने भर से क्या हम उन्हें सही मायने में देवी समझते हैं? ब्रज श्रीवास्तव छोटी-सी कविता ‘देव सो रहे हैं’ समाज की इसी मानसिकता पर करारा प्रहार करती है.
कन्या नंगे पांव चलेगी
नौ दिन तक
जाएगी मां के साथ
बर्तन मांजने के लिए कालोनी में
फिर जाएगी सरकारी स्कूल
सभी देवियां काम पर लगी हैं
जिनके नाम का पूजन चल रहा है
उनकी शक्ति कामकाज में काम आ रही है
अभी सभी देव सो रहे हैं
उठते ही मांगेंगे एक कप चाय
और संभालेंगे राज के काज
देवियां तब भी
काम करेंगी
घरों में
थके हुए बदन से
Illustration: Pinterest
ब्रज श्रीवास्तव
पेशे से शिक्षक और रुचि से कवि विदिशा के ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं और समीक्षाएं देश की प्रमुख साहित्यिक की पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं. तमाम गुमी हुई चीज़ें, घर के भीतर घर, ऐसे दिन का इंतज़ार और आशाघोष इनके ये चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
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