बापू यानी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनके दौर से ही लोग मामू बनाते आए हैं. आज भी बापू का नाम लेकर जनता को मामू बनाया जाता रहा है. हूबनाथ पांडे की यह कविता बाबू के अनुयायियों को आईना दिखाती है.
बुनियादी रूप से
हिंसक थे
वे सभी
जिन्हें पढ़ा रहे थे आप
पाठ अहिंसा का
जनमजात झुट्ठे थे
वे सभी
जिन्हें चला रहे थे आप
सत्य की राह पर
और वे हंस रहे थे
आपकी बेवकूफ़ी पर
मन ही मन
आपके
अपरिग्रह के पिछवाड़े
वे जुटा रहे थे संपत्ति
सात पीढ़ियों के लिए
आपकी
अजीबोग़रीब सनक से
कइयों को लगा था
आदमी अजीब है
पर काम का हो सकता है
इसीलिए वे लगे हुए थे
पीछे-पीछे
जैसे जैसे
आज़ादी क़रीब आती गई
लोग आपसे दूर होते गए
आज़ादी की चौखट पर
आपके अहिंसा की
निर्मम बलि दी गई
इतनी हिंसा तो
दोनों महायुद्धों में भी
नहीं देखी थी आपने
यह था उनका
असली चेहरा
जो आपको पूजते थे
देवता की जगह
इन्सानों में नहीं
मंदिरों और तस्वीरों में
होती है
कितनी जल्दी
आपके चाहनेवालों ने
तस्वीर में बदल दिया
आपको
अभी तो ठीक से
सुबह भी नहीं हुई थी
आपके सपनों का भारत
सपने में ही
दम तोड़ चुका था
आपके जीते जी
अब तो आप
मर चुके हो बापू
जिन्हें शक़ होता है
वे आपके पुतलों को
भूनते हैं गोलियों से
और पुरस्कृत होते हैं
आपकी निर्लज्ज संतानें
सरे आम दे रही हैं
गालियां आपको
आपको पिता मानने से
कर रही हैं इन्कार
उन्हें शर्म आ रही है
आपको बाप कहते हुए
फ़िलहाल
वे नए बाप की तलाश में
व्यस्त हैं
तब तक
आप चाहो तो
मुस्कुरा सकते हो
तस्वीरों में
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