ख़्वाजा अहमद अब्बास की यह कहानी रूपकों का शानदार इस्तेमाल करते हुए एक लड़की के माध्यम से आज़ादी के 25 साल बाद देश के हालात को बयान करती है.
लड़की जवान हो गई थी.
लोग कहते थे लड़की ख़ूबसूरत है, चंचल है, तरह-दार है, दुनिया उसकी दीवानी है, हर कोई उसकी ख़ातिर जान देने को तैयार है.
साथ में लड़की गुणी भी थी. पढ़ी-लिखी थी. दुनियाभर की ज़बानें जानती थी. मिल्टन और शैली, टैगोर और क़ाज़ी नज़र-उस-सलाम, सुब्रह्मण्यम भारती और निराला, जोश और फ़ैज़ की नज़्में उसे ज़बानी याद थीं. लिंकन और गैरी बालडी, ज़दला और मार्क्स, एंजिल्ज़ और लेनिन, गांधी और जवाहर लाल नेहरू की किताबें पढ़े हुए थी. उसकी ज़बान में जादू था. उसकी एक आवाज़ पर लाखों करोड़ों मरने मारने को तैयार हो जाते थे.
जब उसकी पच्चीसवीं साल गिरह क़रीब आई तो सबने कहा कि अब तो लड़की को घर बसाना चाहिए. बचपन का ला-उबाली-पन कब तक चलेगा. दुनिया के लोग उंगलियां उठा रहे हैं. जितने मुंह उतनी बातें, पच्चीस बरस की लड़की को यूं ही वाही-तबाही नहीं घूमना चाहिए. आज इसके साथ कल उसके साथ. अब तो उसे एक को पसंद करके उसे शरीक-ए-ज़िंदगी बनाना चाहिए.
हर सू ऐलान हो गया कि लड़की अपना शरीक-ए-ज़िंदगी चुनेगी. जितने उसके चाहने वाले हैं सब स्वयंवर के लिए इकट्ठे हो जाएं. जिस ख़ुश-क़िस्मत को वो इस क़ाबिल समझेगी, उसके गले में जय माला डालेगी.
यूं तो कौन लड़की का दिलदादा नहीं था, मगर उन सब में सात ऐसे थे जो उस पर दिल-ओ-जान से फ़िदा थे और उसको अपनाना चाहते थे, अपनी बनाना चाहते थे. हर एक का दावा था कि लड़की उसको पहले से ही पसंद कर चुकी है. सिर्फ़ दुनिया के सामने इक़रार करने की ज़रूरत है.
पहले तो एक साहब सामने आए,‘‘मुझे धरम देव कहते हैं.” उन्होंने अपना तआरुफ़ कराया. लंबे चौड़े. ऊंचा माथा. सर पर लंबे-लंबे बाल. गेरुए रंग का सिल्क का लंबा कुरता और धोती पहने हुए. पीछे-पीछे चेलों और चेलियों का एक गिरोह कीर्तन करता, खड़तालें बजाता हुआ. ”धरम देव की जय” के नारे लगाता हुआ.
”बालिका” उन्होंने लड़की को मुख़ातब करके कहा,‘‘अगर तुम माया, मोह के जाल से निकलना चाहती हो तो मुझे अपना लो, धरम देव बल्कि धरम की शरण में आ जाओ. और लोग जो कुछ तुम्हें दे सकते हैं. प्रेम, धन-दौलत, ऐश-ओ-इशरत. वो सब मैं भी तुम्हें दे सकता हूं. मगर साथ में तुम्हें मुक्ति भी प्राप्त होगी. जो तुम्हें और कोई नहीं दे सकता. क्या जवाब है तुम्हारा, बालिका?”
लड़की ने जवाब दिया,‘‘महाराज मन तो चाहता है जीवन आपके चरणों में ही बिता दूं, मगर औरों से भी मिल लूं, उनकी भी सुन लूं फिर जवाब दूंगी.
धरम देव ने हाथ उठाकर लड़की को आशीर्वाद दिया और कहा,‘‘कोई चिंता न करो, बालिका. तुम बे-शक औरों से मिलो, उनको भी परखो, मगर तुम्हारे भाग्य में मेरा जीवन साथी बनना ही लिखा है.”
लड़की ने नज़रें झुकाकर कहा,‘‘जो भाग्य में लिखा है वो तो होगा ही महाराज.”
इसके बाद महाराजा मान सिंह शान सिंह की सवारी आई. ज़र्क़-बर्क़ शाहाना लिबास. सफ़ेद घोड़े पर सवार, कमर में तलवार बंधी हुई राजपूती शान की बड़ी-बड़ी मूंछें. उनके जुलूस में कितने ही ग़ुलाम, बांदियां, लौंडियां, गाने वालियां, नाचने वालियां, तबला बजाने वाले, सारंगी बजाने वाले.
घोड़ा रोक कर उन्होंने लड़की से कहा,‘‘ए सुंदरी. आओ और मेरे राजमहल की शोभा बढ़ाओ. मैं तुम्हें महारानी बनाकर रखूंगा.”
लड़की ने जवाब में कहा,‘‘महाराज की जय हो. लगता है आपने आने में देर कर दी मैंने तो सुना कि आपकी प्रीवी पर्स बंद कर दी गईं, आपके ख़ास हुक़ूक़ ख़त्म कर दिए गए हैं. फिर आपकी पहले ही बहुत सी बीवियां हैं. क्या आप एक और बीवी का ख़र्चा बर्दाश्त कर सकेंगे?’’
महाराजा ने मूंछों को ताव देकर कहा,“सुंदरी तुम चिंता न करो. प्रीवी पर्स के बंद हो जाने के बाद भी मेरे पास इतना कुछ है कि सैंकड़ों बरस तक न सिर्फ़ मैं और तुम और मेरी सब रानियां बल्कि सब रानियों से मेरी औलादें उतने ही शान और उतने ही आराम से रह सकती हैं जिस आराम और जिस शान से मैं रहता हूं. मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूं कि हमारा दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ. पहले मेरे पास करोड़ों एकड़ बंजर ज़मीन थी. रियाया की देख-भाल करने का दर्द-ए-सर था. अब मेरे पास हज़ारों एकड़ का फ़ार्म है जहां ट्रैक्टर चलते हैं. शराब बनाने की फ़ैक्ट्री में मेरे हिस्से हैं. मोटरों के कारख़ाने में मेरी साझेदारी है. मेरी आमदनी पहले से कहीं ज़्यादा है. तुम्हें आज भी हीरे जवाहरात से लाद सकता हूं.”
“महाराज से यही उम्मीद है.” लड़की ने कहा,“मगर जहां इतना इंतेज़ार किया है थोड़ा और इंतेज़ार कीजिए. मैं यक़ीन दिलाती हूं कि फ़ैसला होने से पहले जय माला के फूल बासी न होने पाएंगे.
उसके बाद एक बड़ी शानदार, लंबी-चौड़ी इमपाला मोटर आकर रुकी. उस पर सेठ किरोड़ी मल पकौड़ी मल बिराजमान थे. मोटर फूलों की झालरों से सजी हुई थी क्योंकि सेठ साहब तो लड़की के साथ सात फेरे करवाने का फ़ैसला करके ही घर से निकले थे.
मोटर का दरवाज़ा खुला और सेठ साहब सेहरा लगाए अपनी तोंद संभालते हुए नीचे उतरे.
“लड़की”, उन्होंने देखते ही कहा,“तो तू म्हारे साथ आजा. पण्डित, पुरोहित सब का प्रबंध करवा रखा है मैंने एक बार मेरी हो गई तो तेरी ऐसी हिफ़ाज़त करूंगा जैसी अपनी तिजोरियों की करता हूं. बल्कि तिजोरी ही में बंद करके रख दूंगा, कोई सदा तेरी तरफ़ आंख उठाकर भी नहीं देख सकेगा. हां!”
“ऐसी भी क्या जल्दी है सेठ साहब.” लड़की ने बड़े अंदाज़ से मुस्कुरा कर कहा,“आपके तो मुझ पर ही बड़े एहसान हैं.”
“हैं तो” सेठ जी बोले,“मैं न होता तो तुझे कौन जानता. जन्म से लेकर आज तक तेरा ख़र्चा किसने उठाया है? मैंने. तेरे सोलह सिंगार किस के पैसे से हुए? मेरे. तेरे कपड़े-लत्ते. ये सारा तेरा ताम-झाम किस के पैसे से आया? साड़ियां चाहिए? पूरी रेशमी साड़ियों की दुकान ही घर भिजवा दूंगा. तीन कोठियां होंगी तेरे वास्ते. एक दिल्ली में, एक बंबई में, एक मसूरी में. और तीन मोटरें…”
लड़की ने कहा,“ये सब तो महाराजा मान सिंह शान सिंह भी देने को कह रहे हैं!”
“अरे वो राजा क्या ख़ाक मेरा मुक़ाबला करेगा. मेरे ही कारख़ानों में तो छोटा-मोटा हिस्सा है उसका. अब उसकी शान देखने ही देखने की रह गई है. अस्ल तो म्हारे पास है. अस्ल माल और असली ताक़त बैंक, कारख़ाने, अंग्रेज़ी हिन्दी के बड़े-बड़े अख़बार और छापेखाने, अफ़सर, मिनिस्टर, सब मेरी जेब में हैं. हुक्म दूं तो सारी दुनिया में तेरी सुंदरता के चर्चे होंगे और अगर उल्टा हुक्म दे दूं तो कोई तेरा नाम भी न जानेगा. ये है म्हारी शक्ति. ये कह दे अपने सब चाहने वालों से. जी चाहे तो ताक़त आज़मा के देख लें!”
“सेठ जी” लड़की ने इठला के कहा,“भला किस की हिम्मत है कि आपका मुक़ाबला कर सके? बस ज़रा सी देर की बात है. फिर आपको क्या फ़िक्र है. आपके सर तो सेहरा पहले ही बंधा हुआ है.”
किरोड़ी मल पकौड़ी मल अपनी मोटर में जा बैठे. दरवाज़ा बंद कर लिया. मोटर रवाना हो गई और फूलों की झालरों के पर्दे में छिप कर उन्होंने अपना बैग खोला और हज़ार-हज़ार रुपय के नोटों के पुलंदों को गिनना शुरू कर दिया.
अब पग्गड़ बांधे एक हटा-कट्टा नौजवान आया जो एक ट्रैक्टर पर सवार था. लड़की के सामने आते ही दस दस के नोटों का बंडल निकाला और लड़की के सर पर से वार कर इधर-उधर फेंकने लगा. अड़ोस-पड़ोस के छोकरे, लोफ़र, लफ़ंगे सब दौड़-दौड़ कर नोट बटोरने लगे.
“ये क्या कर रहे हो?” लड़की ने ब-ज़ाहिर किसी क़दर बिगड़ कर (मगर दिल ही दिल में ख़ुश हो कर) कहा, “लगता है तुम्हें रुपए की क़द्र नहीं है?”
नौजवान जिसका नाम ‘धरती पती कोलाक’ था. एक बे-बाक और नौ-दौलतिये अंदाज़ में बोला,“मेरी जान क़द्र क्यों नहीं है? रुपए की क़द्र करता हूं तब ही तो तुम पर से निछावर कर रहा हूं. तुम्हारी क़द्र-ओ-क़ीमत कोई मेरे दिल से पूछे. हाय!” और ये कह कर उसने निहायत बेशर्मी से एक आंख बंद करके मुंह में उंगली डाल कर लोफ़रों की तरह सीटी बजाई.
लड़की ने भी बेबाकी से जवाब दिया,“तुम क्या. यहां जो है वो मेरा दीवाना है धरम देव हों या राजा मान सिंह शान सिंह हों या सेठ किरोड़ी मल हों. एक से एक बढ़कर क़ीमत लगा रहे हैं मेरी तुम भी बोली लगाओ.”
“वो तो मैं लगाऊंगा ही, मेरी जान.” धरती पति कोलाक ने कहा. “ये सब तो अगले वक़्तों के लोग हैं, बुड्ढे खूसट. मैं हूं एक तुम्हारी उम्र का. जब तुम पैदा हुई उधर मैं पैदा हुआ. तुम्हारे साथ ही खेल कूद कर मैं जवान हुआ. पुराने जागीर-दारों की जागीरें तुमने मुझे दीं. ज़मीन-दारों की ज़मींदारी ख़त्म करके तुम ने मुझे ज़मीनें अलॉट कीं. मैं तो जो कुछ भी हूं तुम्हारा ही बनाया हुआ हूं. तुम न होतीं तो मुझे कौन पूछता और मैं न होता तो तुम्हारा इस दुनिया में कौन होता. बोलो. तुम मेरी हो और मैं तेरा, मेरी जान एक दफ़ा बस हां कह दो फिर देखो. किस धूम-धाम से ब्याह रचाता हूं. हमारी शादी की दावत में तो कम से कम एक लाख आदमी खाना खाएंगे.’’
“एक लाख?” लड़की ने त‘अज्जुब से कहा,“इतने आदमियों के लिए इतना चावल, इतना घी, इतनी शकर कहां से आएगी.’’
“वो सब मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है. तुम्हारी सलामती चाहिए. मेरे फ़ार्म में किसी चीज़ की कमी नहीं है. अपनी बहन की शादी में मैंने तीन हज़ार मेहमान बुलाए थे. वो भी मामूली मेहमान नहीं, एक से एक बड़ा अफ़सर और मिनिस्टर था जिस दिन तुम्हें ब्याह के ले जाऊंगा उस दिन तो मैं दूध, दही, घी और शराब के दरिया बहा दूंगा, दरिया!”
“वो तो मुझे मालूम है”, लड़की ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा. “मगर थोड़ी देर इंतेज़ार करना पड़ेगा.”
“जैसा तुम्हारा हुक्म.” धरती पति कोलाक ने ट्रैक्टर को स्टार्ट करते हुए कहा,“मेरा तुम्हारा तो जन्म जनमान का रिश्ता है!”
अब एक और उम्मीदवार आए और बड़ी शान से आए. आगे-आगे लाल पट्टियां बांधे हुए चपरासियों की हर अव्वल फ़ौज, पीछे एक लंबा चौड़ा तख़्त जिसे एक सौ हेड क्लर्क अपने सरों पर उठाए ला रहे थे. तख़्त पर क़ालीन, क़ालीन पर एक बहुत बड़ी मेज़ जिस पर पांच टेलीफ़ोन रखे हुए थे और नोटों की गुडि्यों पर सोने चांदी के पेपरवेट रखे हुए थे कि वो हवा में उड़ न जाएं. कुर्सी पर मिस्टर ‘दफ़्तर शाही अफ़सर’ गलाबंद कोट और पतलून पहने अकड़े हुए बैठे थे.
क्लर्कों ने तख़्त लड़की के ऐन सामने लाकर रख दिया क्योंकि मिस्टर दफ़्तर शाही अफ़सर की गर्दन अकड़ी हुई थी. वो लड़की को सिर्फ़ उस वक़्त देख सकते थे जब वो ऐन उनकी नज़रों के सामने हो.
मिस्टर दफ़्तर शाही अफ़सर के एक सब अस्सिटेंट डिप्टी सेक्रेट्री ने लड़की से आ कर कहा,‘‘आपको साहब से बात करनी है?”
लड़की ने बड़ी शान-ए-बेनियाज़ी से कहा,“अगर वो बात करना चाहें तो बात कर सकती हूं.”
“ठीक है”, सब अस्सिटेंट डिप्टी सेक्रेट्री ने हाथ फैलाते हुए कहा,“लाइए पांच हज़ार रुपए दिलवाइए. साहब का वक़्त बड़ा क़ीमती है. पांच मिनट की मुलाक़ात कराए देता हूं.”
लड़की ने ग़ुस्से से कहा,“साहब जाए तुम्हारा चूल्हे में मेरी जूती उससे बात करना चाहती है!”
“सेक्शन क्लर्क!” सब अस्सिटेंट डिप्टी सेक्रेट्री ने आवाज़ दी और कहा,“जाओ साहब से कह दो कि लड़की इस क़ाबिल नहीं है कि उसे कोई परमिट या लाइसेंस दिया जाए. इंटरव्यू भी दिया तो वक़्त ज़ाया होगा.”
“इडियट” दफ़्तर शाही अफ़सर चिल्लाया,“बात करने की तमीज़ नहीं. सब को एक ही लाठी से हांकते हैं, निकल जाओ यहां से. हम इस लेडी से अकेले में बात करते हैं.”
जब वो दोनों अकेले रह गए तो दफ़्तर शाही अफ़सर ने अपनी टेढ़ी गर्दन का पेंच ढीला करते हुए कहा, “डार्लिंग!”
लड़की ने बड़े तंज़ भरे लहजे में जवाब दिया,‘‘क्यों ख़ैरियत तो है, आज तो बड़े प्यार का इज़हार कर रहे हो. अंग्रेज़ों के ज़माने में तो तुम मुझे गोली मार देना चाहते थे!”
“पुरानी बातों को भूल जाओ, डार्लिंग. आज की बात करो मैं पच्चीस बरस से तुम्हारी सेवा कर रहा हूं.”
“मेरी सेवा?” लड़की ने पूछा. “या अपनी सेवा?”
“वो एक ही बात है डार्लिंग. मैं और तुम अलग अलग थोड़ा ही हैं. तुम मेरे लिए बहुत लक्की साबित हुई हो. पहले मेरी ऊपर की आमदनी पांच छः सौ रुपए थे अब पांच हज़ार रुपए महीना है. कभी-कभी तो भगवान परमिट का छप्पर फाड़ता है तो उसमें से लाखों रुपए मिल जाते हैं. ये सब तुम्हारी ही बरकत है, तुम्हारी ही देन है!”
“फिर अब क्या चाहते हो?” लड़की ने पूछा,“तुम तो मेरे बग़ैर भी मज़े कर रहे हो!”
“नहीं डार्लिंग. तुम्हारे बग़ैर नहीं, तुम्हारी वजह से मज़े कर रहा हूं. तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओगी तो हम दोनों ऐश करेंगे.”
“अच्छा!” लड़की ने बे-दिली से कहा. “तो कुछ देर और इंतेज़ार करो.”
“तुम्हारी ख़ातिर ये भी कर लूंगा, डार्लिंग.” दफ़्तर शाही अफ़सर साहब ने अपने क्लर्कों को वापस बुलाते हुए कहा. “वर्ना मैं तो और सबको इंतेज़ार कराता हूं. मैं किसी का इंतेज़ार नहीं करता!”
अब एक नए ढंग की बरात आई.
आगे-आगे बैंड. आधा बैंड अंग्रेज़ी बाजे बजा रहा था. आधा हिंदुस्तानी, एक तरफ़ वाइलिन. दूसरी तरफ़ सारंगियां. एक तरफ़ तबले दूसरी तरफ़ बोंगो और कैटल ड्रम.
दूल्हा नंगे-पांव मगर पतलून पहने हुए. पतलून के ऊपर जोगिया रंग का सिल्क का कुरता. सिर पर हैट. एक पांव कार में दूसरा छकड़े में.
बारात लड़की के सामने आकर रुक गई. दूल्हे ने अपना तआर्रुफ़ कराया. “मुझे नेता ख़ां भारत सेवक इंडिया वाला कहते हैं. हम आपके पुराने चाहने वालों में हैं. सोचा आज सात फेरे भी हो जाएं. निकाह भी पढ़वा लें और रजिस्ट्रार के दस्तख़त भी हो जाएं.”
“यानी एक छोड़ तीन-तीन ढंग की शादियां.” लड़की ने हैरत से कहा.
“जी हां. इंडिया यानी भारत यानी हिन्दोस्तान की मिक्स्ड इकॉनोमी में ऐसा ही होना चाहिए.”
“ये आपको कैसे ख़्याल हुआ कि मैं आपसे शादी कर लूंगी लड़की ने पूछा.
“शादी तो एक तरह से हमारी आपकी हो चुकी है.” नेता ख़ां भारत सेवक इंडिया वाला ने कहा. ‘‘क्या हमारी क़ुर्बानियों को आपने भुला दिया है? हमारे ख़ून से ही आपकी मांग में सिंदूर भरा गया था, आपके हाथ पांव में सुहाग की मेहंदी लगी थी!”
“इसका बदला भी मैंने चुका दिया था.” लड़की ने कहा,“बरसों मैंने आपकी इनायात के बदले में आपकी सेवा की है. क्या आप हमेशा की गु़लामी कराना चाहते हैं?”
“आप भी कैसी बातें करती हैं?” नेता ख़ां भारत सेवक इंडिया वाला ने कहा. “गु़लामी नहीं ये तो भारतीय स्त्री का धर्म है कि अपने पति की सेवा करे. फिर हमारा आपका सम्बंध तो पुराना है. हमने ही आपको ये रंग-रूप, ये निखार, ये अंदाज़ दिया. बदले में क्या आप का फ़र्ज़ नहीं है कि आप हमारी और सिर्फ़ हमारी हो कर रहें?”
लड़की ने ब-ज़ाहिर लाजवाब हो कर कहा,“तब तो आपको भी कुछ देर इंतेज़ार करना पड़ेगा. मुझे फ़ैसला करने में थोड़ा वक़्त लगेगा.
उसके बाद यकायक एक बहुत बड़ा धमाका हुआ. कई बम एक साथ फटे, धुआं हटा तो देखा कि नौजवान मोटर साइकल पर सवार चला आ रहा है.
“लड़की!” उसने मोटर साइकल रोकते हुए डांट कर पूछा,“क्या तुम ही वो लड़की हो?”
“जी हां”. लड़की ने डरते हुए कहा.
“वेरी गुड, मेरा नाम है क्रांतिकारी पूरकर. चंग पांग नाव नाव पाओ पाओ…”
“जी?” लड़की ने त‘अज्जुब का इज़हार किया.
“इसका मतलब है लाल सलाम. क्या तुम चंग पांग नहीं समझतीं?”
“जी नहीं.” लड़की ने इक़रार-ए-जुर्म किया.
“कोई बात नहीं. लाल किताब तुम्हें सब पढ़ा देगी, सब समझा देगी. तो तुम मुझसे शादी के लिए तैयार हो?” क्रांतिकारी पूरकर ने सवाल किया.
“मगर” लड़की ने कहा,“मैं तो समझती थी आप शादी के ख़िलाफ़ हैं.”
“बिलकुल ग़लत. वो अमरीकी बोरज़ुआ और रूसी Revisionist हैं जो शादी के ख़िलाफ़ हैं.” और फिर जेब से लाल किताब निकाल कर उसका एक वर्क़ पलटते हुए बोला,“किताब कहती है शादी करो. बहुत से बच्चे पैदा करो ताकि इन्क़िलाब के सिपाहियों की तादाद बढ़े. तुम फ़ैमली-प्लैनिंग जैसे बोरज़ुआ ढकोसलों में तो विश्वास नहीं रखतीं?”
लड़की ने झिजकते हुए कहा. “मगर मुल्क की आबादी तो ख़तरनाक हद तक बढ़ती जा रही है.”
“ये सब बोरज़ुआ लोगों और सामराजी एजेंटों का प्रोपेगंडा है ताकि क्रांतिकारियों और इन्क़िलाब के सिपाहियों की तअ‘दाद न बढ़े.”
“शादी के बाद क्या होगा?” लड़की ने पूछा.
क्रांतिकारी पूरकर ने कहा,“सुर्ख़ सवेरा आएगा. मशरिक़ की कोख से लाल सूरज निकलेगा. मग़रिब में अंधेरा छा जाएगा. तुम्हारी गोदी में सैंकड़ों, हज़ारों, लाखों बच्चे खेलेंगे.
“मगर उन सबको हम खिलाएंगे कैसे?” लड़की ने डरते-डरते पूछा.
“नेता सब का पालन हार है.”
“तब तो थोड़ी देर इंतेज़ार करो. मेरे लाल साथी?” लड़की ने ठंडी सांस भरते हुए मुस्कुरा कर कहा. और क्रांतिकारी पूरकर बोला. “मैं इंतेज़ार नहीं कर सकता. मगर तुम्हारी ख़ातिर ये भी सही.” उसने कहा और एक हैंड ग्रेनेड के धमाके के साथ उसके धुएं में गुम हो गया.
लड़की अभी फ़ैसला न कर पाई थी कि इन उम्मीद-वारों में से किसे अपनाए कि एक तरफ़ से भागता हुआ एक नौजवान आया. मैले खद्दर का कुर्ता पाजामा पैवंद लगा चप्पल जो दौड़ने में बिलकुल टूट गया था. दो तीन दिन की दाढ़ी बढ़ी हुई. उसके पीछे-पीछे एक पूरी फ़ौज दौड़ती हुई. उनमें धरम देव, राजा मान सिंह शान सिंह, सेठ किरोड़ी मल पकोड़ी मिल, धरती पति कोलाक, मिस्टर दफ़्तर शाही अफ़सर, क्रांतिकारी पूरकर और नेता ख़ां भारत सेवक इंडिया वाला और उनके हाली मवाली सब थे और सब चिल्ला रहे थे.
“मारो… मारो.”
“पकड़ो साथियो, बचने न पाए.”
“ये चोर है.”
“ये डाकू है.”
“ये ग़ुंडा है.”
“ये मवाली है.”
“ये चार सौ बीस है.”
“ये मुसलमान है.”
“ये क्रिस्चन है.”
“ये इन्क़िलाबी है.”
“ये क्रांतिकारी है.”
“ये क्रांतिकारी विरोधी है. इन्क़िलाब दुश्मन है.”
दौड़ता-दौड़ता, हांफ्ता-कांपता नौजवान लड़की के सामने आकर खड़ा हो गया.
“लड़की अब तुम ही मुझको बचा सकती हो.”
लड़की ने पूछा,“तुम कौन हो?”
नौजवान ने कहा,“मैं न चोर हूं, न डाकू, न मवाली, न ग़ुंडा, न क्रांतिकारी, ना क्रांति विरोधी. में एक सीधा सादा इन्सान हूं जो आज़ादी और इन्सानियत की तलाश में मारा-मारा फिर रहा है और जिसका पीछा ये सब कर रहे हैं. भागते-भागते मैं थक चुका हूं. मरूंगा तो नहीं क्योंकि सख़्त-जान हूं लेकिन मुझे लगता है, इन्सानियत में, आज़ादी में विश्वास हमेशा के लिए खो दूंगा.’’
“मेरी तरफ़ देखो.” लड़की ने कहा. “मुझे पहचानते हो?”
थके-हारे नौजवान ने लड़की की आंखों में आंखें डाल कर देखा. आहिस्ता-आहिस्ता उसकी बुझी हुई आंखों में एक नई चमक, उम्मीद की एक नई लहर उभर आई. उसने आहिस्ता से सर हिलाकर कहा,‘‘अब पहचान गया.”
इतने में जितने लोग नौजवान का पीछा कर रहे थे वो सब लड़की के सामने आकर खड़े हो गए और नौजवान की तरफ़ इशारा करते हुए चिल्लाने लगे.
“ये चोर है.”
“ये डाकू है.”
“ये ग़ुंडा है.”
“ये मवाली है.”
“ये चार सौ बीस है.”
“ये हिंदू है.”
“ये मुसलमान है.”
“ये क्रिस्चन है.”
“ये इन्क़िलाबी है.”
“ये क्रांतिकारी है.”
“ये क्रांति विरोधी है. ये इन्क़िलाब दुश्मन है!”
और अब लड़की ने उन सबकी तरफ़ ऐसी निगाहों से देखा जिनमें शोले भड़क रहे थे.
नौजवान का हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए वो बोली,“ये मेरा है और मैं इसकी हूं? शुक्र है पच्चीस बरस इंतेज़ार करने के बाद मैं इसे मिल गई हूं, और ये मुझे.”
और फिर उन सबकी हैरत भरी आंखों के सामने लड़की और वो नौजवान दोनों फ़िज़ा में तहलील हो गए और फिर वहां न धरम देव था, न राजा मान सिंह शान सिंह, न सेठ किरोड़ी मल पकौड़ी मल, न धरती कोलाक, न मिस्टर दफ़्तर शाही अफ़सर, न क्रांतिकारी पूरकर, न नेता ख़ां भारत सेवक इंडिया वाला. सब न जाने कहां गुम हो गए थे. सिर्फ़ बरसात की हल्की-हल्की फुवार पड़ रही थी और मशरिक़ में एक धुंदला सा सवेरा घने काले बादलों का दिल चीरता हुआ चला आ रहा था.
ये पंद्रह अगस्त की सुबह थी, ये आज़ादी का धुंदलका था.
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