हिंदू धर्म की गहराई को हिंदुओं से भी अधिक समझने वाले कवि और लेखक राही मासूम रज़ा गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए मशहूर उत्तर भारत में तेज़ी से फैलते नफ़रत से आहत थे. उनकी यह रचना इसी की पुकार है.
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं
और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूं
मेरा भी एक संदेश है
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुंह पर फेंको
और उस योगी से कह दो-महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लो
यह जलील तुर्कों के बदन में गढ़ा गया
लहू बनकर दौड़ रही है
Illustration: Pinterest