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ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब कविताएं

रुको बच्चों: राजेश जोशी की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
August 19, 2023
in कविताएं, ज़रूर पढ़ें, बुक क्लब
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Rajesh-Joshi_poem
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देश के बच्चों को थोड़ा संभलकर चलने की सलाह देती राजेश जोशी की कविता ‘रुको बच्चों’ देश के कथित तारणहारों पर करारा व्यंग्य भी करती है.

रुको बच्चों रुको!
सड़क पार करने से पहले रुको

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तेज़ रफ़्तार से जाती इन गाड़ियों को गुज़र जाने दो

वो जो सर्र से जाती सफ़ेद कार में गया
उस अफ़सर को कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है
वो बारह या कभी-कभी तो इसके बाद भी पहुंचता है अपने विभाग में
दिन, महीने या कभी-कभी तो बरसों लग जाते हैं
उसकी टेबिल पर रखी ज़रूरी फ़ाइल को ख़िसकने में

रुको बच्चों!
उस न्यायाधीश की कार को निकल जाने दो
कौन पूछ सकता है उससे कि तुम जो चलते हो इतनी तेज़ कार में
कितने मुक़दमे लंबित हैं तुम्हारी अदालत में कितने साल से
कहने को कहा जाता है कि न्याय में देरी न्याय की अवहेलना है
लेकिन नारा लगाने या सेमीनारों में बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्य
कई बार तो पेशी दर पेशी चक्कर पर चक्कर काटते
ऊपर की अदालत तक पहुंच जाता है आदमी
और नहीं हो पाता इनकी अदालत का फ़ैसला

रुको बच्चों! सड़क पार करने से पहले रुको
उस पुलिस अफ़सर की बात तो बिल्कुल मत करो
वो पैदल चले या कार में
तेज़ चाल से चलना उसके प्रशिक्षण का हिस्सा है
यह और बात है कि जहां घटना घटती है
वहां पहुंचता है वो सबसे बाद में

रुको बच्चों रुको
साइरन बजाती इस गाड़ी के पीछे-पीछे
बहुत तेज़ गति से आ रही होगी किसी मंत्री की कार
नहीं, नहीं, उसे कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं
उसे तो अपनी तोंद के साथ कुर्सी से उठने में लग जाते हैं कई मिनट
उसकी गाड़ी तो एक भय में भागी जाती है इतनी तेज़
सुरक्षा को एक अंधी रफ़्तार की दरकार है
रुको बच्चों!
इन्हें गुज़र जाने दो

इन्हें जल्दी जाना है
क्योंकि इन्हें कहीं नहीं पहुंचना है

Illustration: Pinterest

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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