नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का कहना है उनकी फ़िल्में क़ामयाब हों ना हों, उनकी अगली फ़िल्म की फ़ीस पर इसका असर नहीं होता. पेश है नवाज़ से उनकी ज़िंदगी के कई और पहलुओं पर हुई बातचीत के मुख्य अंश.
मिलने लगा है रोमैंटिक फ़िल्म करने का मौक़ा
‘‘शुक्र है अब मुझे रोमैंटिक फ़िल्में मिलने लगी हैं. अच्छा भी है अभी नहीं करूंगा तो क्या 60 की उम्र में रोमैंटिक रोल करूंगा. लेकिन हां मेरी अगली फ़िल्म मोतीचूर चकनाचूर सिर्फ़ रोमैंटिक ही नहीं, बल्कि कॉमेडी फ़िल्म भी है.’’
बेटी की शिकायत
‘‘मेरी बेटी मुझसे बहुत जुड़ी है. उसे बहुत शिकायत रहती है कि पापा समय नहीं दे पाते. लेकिन फिर उसे मेरी वाइफ़ और मैंने बताया कि हमारी औकात पहले क्या थी. अब जो भी औकात बनी है वह इसी काम को करने की वजह से बनी है तो काम सबसे ज़रूरी है.’’
बेटी को जानना चाहिए पिता का संघर्ष
‘‘मेरी बेटी को मेरा संघर्ष पता है. बच्चों को पैरेंट्स के स्ट्रगल को जानना ज़रूरी भी है, क्योंकि इससे वह चीज़ों की अहमियत समझते हैं. उनको पता होता है कि हम क्या थे और कहां से आए और कहां पहुंचे. मेरी वाइफ़ बेटी को बताती हैं कि पापा ने 10 साल संघर्ष किया है. ऐसा इसलिए ताकि बेटी चीज़ों को ग्रांटेड ना ले. उसको तो सारी चीज़ें आसानी से मिल रही हैं. बड़े स्कूल में जाती है. जो चीज़ चाहती है चुटकी में मिल जाती है. हमारी लाइफ़ ऐसी नहीं थी. बहुत मुश्क़िलों से भरी थी तो उसका ख़्याल रखना चाहिए.’’
बेटी एन्जॉय करती है गांव की ज़िंदगी
‘‘यूं तो मेरी बेटी शुरू से ही मुंबई में रही है, लेकिन हम उससे सिर्फ़ हिंदी में बातचीत करते हैं. मैं चाहता हूं वह हमारा गांव भी देखे. इसलिए जब भी उसकी छुट्टियां होती हैं उसे अपने गांव ले जाता हूं. वह मेरी वाइफ़ के गांव भी जाती है. वह गांव की लाइफ़ को भी बहुत एन्जॉय करती है. बहुत ख़ुश रहती है.’’
धर्म को लेकर बेटी की सोच
‘‘मैं अपनी बेटी पर कोई धर्म नहीं लादना चाहता. आजकल की जनरेशन बहुत ही अलग है. या तो सबकुछ मानते हैं या कुछ भी नहीं. हम उसकी इसी तरह से परवरिश कर रहे हैं. मेरी बेटी गणपति भी मनाती है और ईद भी. देखा जाए तो मैं ख़ुद भी ऐसे ही पला-बढ़ा हूं. हमारे अब्बा गांव में रहने वाले आदमी हैं. हम दिवाली भी मनाते थे. मैं तो रामलीला भी देखने जाता था. रामलीला में हिस्सा भी लेता था. रात को दो-दो बजे आते थे. अब्बा कभी नहीं बोलते थे कि क्यों गया था. वे तो कहते थे कि रामलीला बहुत अच्छी चीज़ है. रामलीला की यादों में मुझे इतना याद है कि मैं राम की वानरसेना में होता है. हम लोग वानरसेना नहीं, बानरसेना कहते थे.’’
लुक का राज़
‘‘मैं इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं देता. मैं लुक्स और ड्रेसिंग के बजाय काम को अहमियत देता हूं. जिम तो अब भी नहीं जाता. कुछ भी खाता लेता हूं.’’
हॉलिवुड जाने की ख़्वाहिश
‘‘लोग पूछते हैं हॉलिवुड में काम करने की कितनी इच्छा है? मैं कहता हूं अपने काम पर उनसे ठप्पा लगवाना ज़रूरी है क्या? क्या उनकी पिक्चर करके आऊंगा, तभी आप मुझे अच्छा ऐक्टर बोलेंगे? जिस तरह के मुझे रोल चाहिए मुझे यहां मिल रहे हैं. आप बताओ ना हॉलिवुड फ़िल्म करने की क्या ज़रूरत है. जब सैक्रेड गेम्स ने हॉलिवुड में सभी की बैंड बाजा के रखी है. मज़ा तो तब है ना जब यहां बैठे-बैठे उनकी बैंड बजाओ. नेटफ़्लिक्स के टॉप फ़ाइव पॉप्युलर शोज़ में से एक है सैक्रेड गेम्स. सत्यजीत रे ने कलकत्ता में बैठे-बैठे पूरे वर्ल्ड को हिला दिया था. ये होती है ग्रेटनेस. मैं वहां जाकर उनके सामने स्ट्रगल करूं, मैं तो ये अब बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा. सैक्रेड गेम्स के बाद बहुत ऑफ़र्स आए. मेरे पास समय नहीं है. मैं बहुत बिज़ी हूं दो साल तक.’’
फ़ीस की बातें
‘‘देखिए मेरी फ़िल्म फ़्लॉप भी हो तो भी फ़ीस कभी कम नहीं करता. क्योंकि मैं जानता हूं, फ़िलहाल मेरी डिमांड है. किरदार मेरे लिए लिखे जाते हैं. सो फ़िल्म चले ना चले, पैसा मैं बहुत लेता हूं. मेरा रेट डाउन नहीं होने वाला है. उल्टा अगली फ़िल्म में फ़ीस बढ़ा देता हूं.’’
सैक्रेड गेम्स 2 की असफलता
‘‘जो नए किरदार इस बार कहानी से जुड़े थे. लोगों को पसंद नहीं आए. वेब सिरीज़ करते हुए हमें इस बात का अंदाज़ा भी हुआ था. सैफ़ ने शूटिंग के दौरान ही इस बात को बोल दिया था कि नए किरदार से कनेक्ट नहीं हो पाएंगे लोग.’’
आनेवाले प्रोजेक्ट्स
‘‘रोम रोम में और बोले चूड़ियां ये दो फ़िल्में जल्द ही आएंगी. अभी मैं न्यू यॉर्क जा रहा हूं, एक बांग्ला फ़िल्म नो लैंड्स मैन करने. फ़ेस्टिवल की फ़िल्म है. मुझे जो बहुत पसंद है. वैसे मुझे मसाला फ़िल्मों के साथ पैरलल फ़िल्में करना भी पसंद है और वैसी फ़िल्में करता रहूंगा.’’