एक आम आदमी की ज़िंदगी कैसी होती है. मरहूम कवि कुंवर बेचैन की यह छोटी-सी कविता बख़ूबी बयां कर रही है.
ज़िंदगी का अर्थ
मरना हो गया है
और जीने के लिए हैं
दिन बहुत सारे
इस
समय की मेज़ पर
रक्खी हुई
ज़िंदगी है ‘पिन-कुशन’ जैसी
दोस्ती का अर्थ
चुभना हो गया है
और चुभने के लिए हैं
पिन बहुत सारे
निम्न-मध्यमवर्ग के
परिवार की
अल्पमासिक आय-सी
है ज़िंदगी
वेतनों का अर्थ
चुकना हो गया है
और चुकने के लिए हैं
ऋण बहुत सारे
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