यदि स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता हैं तो हमें पता है कि कोरोना काल से पहले आप उनके स्क्रीन टाइम को मैनज कर लिया करते थे. लेकिन कोविड महामारी के बाद तो स्कूल ही ऑनलाइन आ गए. ऐसे में तो बच्चों की पढ़ाई भी स्क्रीन के ज़रिए, टेस्ट भी ऑनलाइन और मनोरंजन के लिए भी स्क्रीन वाले गैजेट्स, क्योंकि बच्चे बाहर खेलने नहीं जा सकते. तो इस डिजिटल युग में बजाय उन्हें स्क्रीन के इस्तेमाल से रोकने-टोकने के बेहतर होगा कि आप उन्हें स्क्रीन के इस्तेमाल का ऐसा तरीक़ा सिखाएं, जिससे उनकी आंखों पर स्ट्रेन न पड़े. यहां हम इसी के बारे में बताने जा रहे हैं…
क्या आप इस बारे में जानते हैं कि आख़िर डिजिटल आइ स्ट्रेन है क्या बला? टैबलेट्स, लैपटॉप्स और स्मार्टफ़ोन्स के ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से देखने की क्षमता पर असर आना ही डिजिटल आइ स्ट्रेन है. कोविड महामारी के दौरान, जब पढ़ाई भी स्क्रीन के ज़रिए हो रही है, लगातार स्क्रीन की ओर देखते रहने से कई बच्चों की आंखों में जलन, आंखों से पानी आना, आंखों में खुजली होना और यहां तक कि धुंधला दिखाई देने तक की समस्याएं देखी गई हैं. इसके अलावा भी डिजिटल आइ स्ट्रेन के कई और लक्षण हैं: ध्यान केंद्रित करने में समस्या होना, गर्दन या कंधों में दर्द, सिरदर्द, थकान आदि. इससे पहले की आपके बच्चे में डिजिटल आइ स्ट्रेन की समस्या दिखाई दे, आपको चाहिए कि आप उसे स्क्रीन के सही इस्तेमाल का तरीक़ा सिखा दें. आइए जाने, क्या है स्क्रीन के सही इस्तेमाल का तरीक़ा.
20-20-20 का फ़ॉर्मूला: यह बहुत आसान है. 20 मिनट के स्क्रीन के इस्तेमाल के बाद 20 सेकेंड का एक ब्रेक लेना है, जिसमें 20 फ़ीट की दूरी पर रखी किसी चीज़ को लगातार देखना है. यह फ़ॉर्मूला अपने बच्चे को समझा दें और इसका इस्तेमाल करना सिखा दें. हमें पता है जब बच्चे क्लास अटेंड कर रहे हों तब शायद इसका पालन संभव न हो, लेकिन दो पीरियड्स के बीच के ब्रेक में वे ऐसा करते हैं. और जब मनोरंजन के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल कर रहे हों, तब तो ऐसा करना उनके लिए ज़रूरी ही बना दीजिए. ऐसा करने से उनकी आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा.
आंखें झपकाने को कहें: अपने बच्चों को समझाएं कि स्क्रीन की ओर देखते हुए उन्हें अपनी पलकों को बीच-बीच में झपकाते रहना है. कई बार बच्चे लगातार एकटक स्क्रीन को देखते रहते हैं, इससे आंखों पर ज़ोर पड़ता है. यदि वे सामान्य से अधिक बार पलकें झपकाएं तो और भी बेहतर होगा, क्योंकि पलकें झपकाने से आंखों को राहत मिलती है और आंखों में नमी बनी रहती है.
स्क्रीन से आंखों की दूरी के बारे में समझाएं: बच्चों को बताएं कि स्क्रीन का इस्तेमाल करते समय, उन्हें अपनी आंखों से थोड़ा दूर रखना है और इस तरह रखना है कि स्क्रीन उनकी आंखों के लेवल से थोड़ा नीचे रहे.
डिवाइस की ब्राइटनेस ऐड्जस्ट करना सिखाएं: बच्चों को बताएं कि स्क्रीन को बहुत ज़्यादा ब्राइट रखने से उनकी आंखों पर बुरा असर पड़ेगा अत: उन्हें ब्राइटनेस कम रखनी चाहिए. आप उन्हें ही ब्राइटनेस को ऐड्जस्ट करना सिखा दें, ताकि वे अपने आप ऐसा कर सकें.
बेड टाइम मोड तय कर दें: स्मार्ट फ़ोन्स की सेटिंग में ‘डिजिटल वेल बीईंग ऐंड पैरेंटल कंट्रोल’ में बेड टाइम मोड होता है, जिसे आप बच्चे के सोने के समय से दो घंटे पहले की लिए सेट कर दें. यदि बच्चा 10 बजे सोता है तो इसे 8 बजे के लिए सेट करें. इसके बाद बच्चों को फ़ोन देने से मना कर दें. इस मोड में फ़ोन एक ब्लैक ऐंड वाइट डिवाइस में बदल जाता है. यदि उसे देखें तो भी आंखों पर कम स्ट्रेन पड़ता है. लेकिन आपको फ़ोन को रखने का समय बच्चों के साथ मिलकर तय करना ही होगा अन्यथा उन्हें अच्छी तरह नींद भी नहीं आ पाएगी. क्योंकि शोधों से पता चला है कि स्क्रीन देखने प्रभाव स्क्रीन को छोड़ देने के बाद भी लंबे समय तक बना रहता है.
फ़ोन के बेडरूम में चार्ज न करें: फ़ोन बच्चों का हो या आपका फ़ोन को कभी-भी बेडरूम में चार्जिंग पर न लगाएं. उसे चार्जिंग के लिए लिविंग रूम में या ऐसी जगह लगाएं, जहां आप सोते न हों. इससे बच्चे और आप दोनों ही फ़ोन को उठाकर देखने के लालच से बचे रहेंगे.
इन उपायों को अपनाने के बाद भी यदि बच्चों को आइ स्ट्रेन से जुड़ी कोई समस्या हो रही है तो आंखों के डॉक्टर से मिलकर सलाह लेने में ज़रा भी देर न लगाएं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट