हाल के समय मे व्यावहारिक स्थितियों को बयान करती बेहद चुभनेवाली कविताओं की रचना कर रहे हैं युवा दलित कवि बच्चा लाल ‘उन्मेष’. उनकी यह कविता ‘अफ़सोस’ आपको हमारे समाज में मौजूद दोमुंहेपन सहित कई और विडंबनाओं के साक्षात् दर्शन करा देगी, जिन पर बतौर समाज हम सभी को अफ़सोस होना चाहिए.
चिमनी के तपे लोग
धूप में थके लोग
बारिश की बात करते हैं
मिट्टी के बने लोग.
ज़ेहन से कटे लोग
दिल से हटे लोग
एक छत की बात करते हैं
पैसे से बटे लोग.
करेले से बढ़े लोग
नीम पर चढ़े लोग
फूलों सी बात करते हैं
काटों से कड़े लोग.
बेकारी में मरे लोग
फुटपाथ पर पड़े लोग
कमल की बात करते हैं
कीचड़ में खड़े लोग.
विद्वत पर अड़े लोग
रूढ़ियों के सडे़ लोग
समंदर की बात करते हैं
कुएं में पड़े लोग.
गर्दन में गड़े लोग
पैरों में पड़े लोग
दूध की बात करते हैं
छाछ से भी जले लोग.
मंदिर में खड़े लोग
अंधभक्ति में पड़े लोग
भाग्य की बात करते हैं
साइंस के पढ़े लोग.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट