यदि आप जानना चाहते हैं कि सिकुड़ती अर्थव्यवस्था यानी इकॉनमी के दौरान शेयर बाज़ार आख़िर कैसे बल्लियों उछल रहा है? और साथ ही साथ इस उधेड़बुन में भी हैं कि अभी मार्केट में और पैसे डालूं या प्रॉफ़िट भुना लूं या फिर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट को वैसा ही बना रहने दूं, जैसा कि वो है तो नवनीत का यह आलेख आपके लिए ही है.
सुनील खेतपाल की इंदौर में एक ट्रैवल एजेंसी है, अपनी एजेंसी के अलावा सुनील को स्टॉक मार्केट में निवेश करने में भी दिलचस्पी है. वे पिछले 15 वर्षों से मार्केट में निवेश कर रहे हैं और उन्हें इसके अच्छे रिटर्न्स भी मिले हैं. लेकिन वे हाल के दिनों में महामारी और इसके बुरे प्रभावों और सिकुड़ती इकॉनमी के बीच भी शेयर बाज़ार की उछाल को देखकर पसोपेश में हैं. लेकिन खेतपाल अकेले ही ऐसे निवेशक नहीं हैं. उनके जैसे लाखों इन्वेस्टर्स जो शेयर बाज़ार में सीधे या फिर म्यूचुअल फंड्स के मार्फ़त निवेश करते हैं, वे सभी नीचे गिरती इकॉनमी के बीच ऊपर चढ़ते शेयर बाज़ार के ग्राफ़ को देखकर दुविधा में हैं. ये निवेशक नहीं जानते कि इस अनिश्चित से समय में उन्हें शेयर बाज़ार में कैसी रणनीति अपनानी चाहिए: लाभ लेकर निकल जाना चाहिए या जो निवेश किया हुआ है, उसे वैसे ही रहने देना चाहिए या फिर और ज़्यादा निवेश करना चाहिए?
मेरी राय के अनुसार ग्लोबल कैपिटल मार्केट में उछाल के लिए कई घटक ज़िम्मेदार हैं. आइए, ये समझने की कोशिश करते हैं कि दुनियाभर के अधिकतर बाज़ारों में क्या हो रहा है.
मौद्रिक नीतियों में ढील
पहला कारण तो यह है कि दुनियाभर की सरकारें और केंद्रीय बैंक महामारी की वजह से अपनी अर्थव्यवस्था को लगे धक्के से उबारने के लिए अपनी मौद्रिक नीतियों में थोड़ी ‘ढील’ दे रहे हैं. पश्चिमी देशों के बाज़ारों में ब्याज की दर लगभग शून्य है. ऐसे में यदि कोई निवेशक अपने पैसे बैंक में रखता है तो उसे अपनी जमा राशि पर कोई रिटर्न नहीं मिलेगा. नतीजा ये हुआ कि लोग अपने पैसों को या तो स्टॉक्स या फिर म्यूचुअल या पेंशन फ़ंड में निवेश कर रहे हैं. इस बात से फ़ंड मैनेजर्स ख़ासे ख़ुश हैं कि उनके पास निवेश के लिए ज़्यादा पैसे आ रहे हैं और वे इस पैसे को केवल घरेलू ही नहीं, बल्कि इसका कुछ हिस्सा उभरते हुए विदेशी बाज़ारों में भी लगा रहे हैं, जैसे- चीन, भारत, विएतनाम आदि. भारत में भी बैंकों की ब्याज दरें निचले स्तर पर हैं अत: निवेशक अपने पैसों का मार्केट या मार्केट से जुड़े अन्य प्रोडक्ट्स में निवेश कर रहे हैं. जब ये ढीली मौद्रिक नीतियां वापस ले ली जाएंगी और अमेरिका और यूरोप में ब्याज की दरें बढ़ेंगी तो यह संभावना है कि यह पैसा वापस निकाला जाएगा और तब मार्केट में करेक्शन होगा.
कार्पोरेट टैक्स में राहत
दूसरी वजह है भारत का स्थानीय घटना. वर्ष 2019 के बजट में केंद्र सरकार ने प्रभावी कॉर्पोरेट टैक्स को 30% से घटाकर 22% कर दिया था. इसकी वजह से शीर्ष कंपनियों के लाभ पर सकरात्मक असर पड़ा है, क्योंकि इससे उनकी टैक्स की देनदारी घटी है और शुद्ध लाभ लगातार बढ़ा है, जिससे प्रति शेयर आय (अर्निंग पर शेयर/EPS) बढ़ गई है. इसका नतीजा ये हुआ कि टैक्स की छूट को ऐड्जस्ट करने की वजह से उनके शेयर की क़ीमत बढ़ गई.
कुछ सेक्टर्स का अच्छा प्रदर्शन
तीसरा घटक है वैश्विक महामारी, जिसने बहुत से क्षेत्रों को तो तबाह कर दिया, लेकिन कुछ इंडस्ट्रीज़ के लिए इसका असर सकारात्मक रहा. उदाहरण के लिए फ़ार्मासूटिकल सेक्टर को ही लीजिए, जिस महामारी के दौरान सबसे अधिक फ़ायदा हुआ. ऐसी फ़ार्मा कंपनीज़ को कोविड से जुड़ी रिसर्च और दवाइयां बनाने में जुटी थीं, उन्होंने अच्छा लाभ कमाया. इसके अलावा विश्वभर की सरकारें हेल्थकेयर सेक्टर पर अपने बजट का बड़ा हिस्सा ख़र्च करेंगी, जिससे अच्छे बिज़नेस मॉडल वाली हेल्थकेयर कंपनियों को इसका फ़ायदा होगा. केमिकल इंडस्ट्री, जो फ़ार्मा इंडस्ट्री को दवाइयां और वैक्सीन्स बनाने का कच्चा माल देती है, वो भी इससे लाभान्वित होगी. महामारी ने आईटी सेक्टर पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है. बहुत सी पारंपरिक कंपनियां अपने आईटी के बुनियादी ढांचे को सुधारने पर निवेश कर रही हैं ताकि ‘वर्क फ्रॉम होम’ जैसा काम का वातावरण बनाया जा सके. साथ ही महामारी ने उन्हें यह भी सिखाया है कि आईटी को सपोर्ट करने जैसे कामों की जगह रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी आईटी कंपनियां, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी सेवाएं दे रही हैं, जैसे- क्लाउड, हार्डवेयर, नेटवर्किंग के उपकरण, कंसल्टिंग आदि, उन्होंने महामारी के दौरान पिछले डेढ़ सालों में भी अच्छा बिज़नेस किया है. टीसीएस, इन्फ़ोसिस, एचसीएल टेक जैसी कंपनियों का प्रॉफ़िट भी बढ़ा है.
तो आख़िर निवेशक क्या करें?
ऊपर बताए गए घटक ही पिछले 16 महीनों में शेयर मार्केट में आई उछाल के लिए ज़िम्मेदार हैं. यदि आप एक रीटेल इन्वेस्टर हैं तो आपको थोड़ा संभलकर चलने की ज़रूरत है, क्योंकि शॉर्ट टर्म में उलटफेर हो सकता है अत: इन स्तरों पर नया निवेश करने से बचें. जो लोग लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स हैं, जिन्होंने कुछ साल पहले निवेश किया था, वे अपने निवेश को बाज़ार में बना रहने दे सकते हैं. साथ ही, निवेश के कुछ हिस्से के लाभ को भुनाकर इससे उस काम को अंजाम देना भी एक अच्छा आइडिया है, जिसे आप हमेशा से करना चाहते थे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट