आपको पसंद हो न हो, एक मां को एक साथ कई काम करने पड़ते हैं. ऐसे में एक मां को सुपरमां कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. यदि आप भी सुपरमॉम्स की कैटेगरी में शामिल होना चाहती हैं तो इन पांच नियमों का पालन करके बात बन सकती है.
सुपरमॉम बनने के ये नियम वैसे तो बहुत ही सिम्पल है, पर इन्हें आज़माते समय आपकी प्रतिबद्धता बहुत ही ज़रूरी है.
पहला नियम: अपने काम को स्मार्टली शेड्यूल करें
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि सुपरमांएं एक ही समय में एक से ज़्यादा काम को अंजाम देती हैं, वे फिर भी नहीं थकतीं. इसके लिए आपको यह करना होगा कि अपने काम को स्मार्टली शेड्यूल करना सीखना होगा. ऐसी बात नहीं है कि मांएं थकती नहीं हैं, पर वे आराम करने के लिए समय निकालना भी जानती हैं. अक्सर समझदार मांएं अपने रोज़ाना के कामों को उस समय में निपटा लेती हैं, जब बच्चे सो रहे होते हैं या स्कूल गए होते हैं. ऐसा करने से उनका काम बिना किसी रुकावट के तेज़ी से हो जाता है. और उन्हें आराम करने का समय भी मिल जाता है.
दूसरा नियम: वे जानती हैं कि कब ‘ना’ कहना है
अब मांएं एक समय में एक से ज़्यादा काम कर लेती हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि वे दिनभर काम ही करती रहेंगी. वे यह भली भांति जानती हैं कि ‘ना’ बोलना कब ज़रूरी होता है. वे अपनी क्षमता को पहचानती हैं. जब उन्हें लगता है कि काम उनकी क्षमता के बाहर का है तो वे ‘ना’ कहना और दूसरों की मदद लेना जानती हैं.
तीसरा नियम: वे काम को घंटों में बांटती हैं
सुपरमांएं काम को घंटों के अनुसार बांटती हैं. ऐसा करने से यह होता है कि वे एक ही काम करते हुए पूरा दिन नहीं बिता देतीं. उनके साफ़-सफ़ाई के घंटे, ग्रॉसरी शॉपिंग के घंटे और यहां तक कि आराम के घंटे भी फ़िक्स होते हैं. जब आप काम को घंटों के अनुसार तय करने का सोचते हैं तो आप कामों को निर्धारित समय में पूरा करने के लिए प्रेरित होते हैं.
चौथा नियम: वे ख़ुद के साथ भी समय बिताती हैं
ख़ुद के साथ समय बिताना, जिसे मी-टाइम कहा जाता है, सुपरमॉम्स की ख़ासियत होती है. वे अपनी क्लोज़ सहेलियों के साथ समय बिताने, अपने पसंदीदा लेखक की नई किताब पढ़ने और कुछ समय अकेले में बिताने के लिए समय निकालना जानती हैं. उन्हें इस बात का भली प्रकार से एहसास होता है कि कभी-कभी बच्चों और पार्टनर से दूर रहना भी ज़रूरी होता है.
पांचवां नियम: वे साफ़-सफ़ाई के प्रति जुनूनी नहीं होतीं
सुपरमॉम्स जानती हैं कि साफ़-सफ़ाई रोज़ाना का एक काम है, जिसे करना बहुत ज़रूरी है. वे करती भी हैं. पर घर को बच्चे के पहले की तरह चका-चक रखने की ग़लतफ़हमी उनके दिमाग़ में नहीं रहती. वे जानती हैं कि बच्चे जब तक अपने रोज़ाना के कामों में आत्मनिर्भर नहीं हो जाते, तब तक साफ़-सफ़ाई की सनक पालने का कोई मतलब नहीं होनेवाला. यह जुनून उन्हें शारीरिक रूप से थका देगा और मानसिक रूप से चिड़चिड़ा बना देगा.
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