मौजूदा दौर के जानेमाने उर्दू शायर और गीतकार शकील आज़मी की हिंदी में प्रकाशित पहली किताब ‘परों को खोल’ में कई लाजवाब शायरियां, ग़ज़लें, नज़्में, अशआर और फ़िल्मी नग़मे संकलित हैं. आम आदमी की ज़िंदगी पर लिखी उनकी ये पंक्तियां सीधे दिल में उतर जाती हैं.
गोश्त
मछली
सब्ज़ियां
बनिए का राशन
दूध-घी
मुझको खाती हैं ये चीज़ें
मैंने कब खाया इन्हें
मेरा घर रहता है मुझमें
घर में मैं रहता नहीं
बीवी बच्चों के फटे कपड़ों में मैं हूं
और नए जोड़ों की ख़ुशियों में
छुपा जो कर्ब (पीड़ा) है
वो भी हूं मैं
फ़ीस में स्कूल की
कापी-किताबों में भी मैं
मैं ही हूं चूल्हे की गैस
मैं ही हूं स्टोव का तेल
मेरे जूते जोंक की मानिंद
मेरे पांव से लिपटे हुए हैं
चूसते हैं मेरा ख़ून
मेरा स्कूटर
मिरे कांधों पे बैठा है
मैं उसके टायरों में घूमता हूं
और घिसता हूं
मैं हूं
दूसरे दर्जे की पिछली क़तार का आदमी
कवि: शकील आज़मी
कविता संग्रह: परों को खोल
संकलन और संपादन: सचिन चौधरी
प्रकाशक: मंजुल प्रकाशन
Illustration: RK Narayan Common man from Pinterest