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Home बुक क्लब नई कहानियां

एक चक्कर ऐसा भी: मीनाक्षी विजयवर्गीय की कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 16, 2022
in नई कहानियां, बुक क्लब
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Meenakshi-Vijayvargiya-kahani
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ज़िंदगी के छोटे-छोटे क़िस्से ज़िंदगी और ज़िंदा रहने की अहमियत बता देते हैं. मीनाक्षी विजयवर्गीय की इस रोचक कहानी में जानें, क्या होता है, जब एक गृहणी को चक्कर आ जाता है.

चक्कर, पढ़कर थोड़ा अजीब लगा शायद? मन में ख़्याल भी आया होगा किसका चक्कर? कोई सीन, या अफ़ेयर. हां, बिल्कुल अफ़ेयर कहें, करंट अफ़ेयर जिस पर सब को बात करनी चाहिए. तो आइए हम जान लें कि क्या सीन किसके साथ और कैसा चक्कर?
सुबह से ही रोज़ की तरह भागदौड़ चल रही थी, अचानक आंखों के सामने अंधेरा छा गया और फिर कुछ याद नहीं. आंख खोलने की कोशिश की, दर्द महसूस हो रहा था सर में. आंखें खुली तो ख़ुद को ठंडक भरे कमरे में पाया, एक हाथ पर ड्रिप लगी हुई थी, बीप-बीप की आवाज़ करती कोई मशीन. पक्का किया यह हॉस्पिटल है. आईसीयू! कहीं राम नाम सत्य तो नहीं होने वाला मेरा? थोड़ा हिलने की कोशिश की तो पास खड़ी नर्स बोली, गुड आपको होश आ गया मैं डॉक्टर साहब को बुलाती हूं और आपके परिवार वालों को भी बताती हूं. डॉक्टर आए मुझको देखा पूछा,‘‘कैसा लग रहा है?’’
मैंने कहा,‘‘हुआ क्या मुझे?’’
उन्होंने बताया,‘‘कुछ ख़ास नहीं. हम आपके पति के साथ बात करेंगे. अभी आप एक बार आपके परिवार से मिल लीजिए पूरा दिन हो गया वह सब बहुत परेशान हैं.’’
डॉक्टर के जाते ही अचानक सब एक साथ आ गए ख़ुशी झलकाते चेहरे पर, आंखें सबकी बहुत रोई हुई लग रही थीं. ऐसा तो नहीं ज़िंदगी का अंत नज़दीक आ गया. कैसी हो, ज़रा ध्यान नहीं रखती ख़ुद का. हालचाल पूछते परिवार के सदस्य, पर मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था. कोई सर पर हाथ फेर रहा था तो कोई हाथ चूम रहा था. उन सब को देख कर मेरे आंसू निकल आए. मुझे परेशान होता देखा तो नर्स ने सभी को बाहर जाने के लिए कहा. फिर मैंने उससे पूछा,‘‘क्या हुआ मुझे?’’
उसने कहा,‘‘आप बेहोशी की हालत में लाई गई थीं, बस मुझे तो यही पता है. सुबह की शिफ़्ट में कोई और नर्स थी. उसे पता होगा, मैं तो 5 बजे ही आई हूं. और आपकी फ़ाइल भी डॉक्टर साहब के पास है.’’
तभी सुधीर आ गए. मैंने पूछा,‘‘क्या हुआ मुझे?’’
उन्होंने बीच में ही रोका मुझे,‘‘तुम चिंता ना करो बस आराम करो, कुछ नहीं हुआ है.’’
‘‘फिर हॉस्पिटल, सारा परिवार, सब क्यों? कोई बड़ी बीमारी है क्या? रिपोर्ट कहां है?’’
‘‘ग़लती हमारी ही है…’’ सुधीर कहने ही लगे थे कि डॉक्टर साहब आ गए.
‘‘हां तो सब ठीक!’’ समझ ही नहीं आया प्रश्न था या जवाब. वह पूछ रहे थे मुझसे या जवाब दे रहे थे. डॉक्टर साहब ने पूछा,‘‘बताओ जीवन बीमा पॉलिसी, मेडिक्लेम है?’’
हम दोनों एक साथ ही बोल पड़े,‘‘हां.’’
यह सुनकर डॉक्टर साहब ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे और बोले,‘‘बताएं तो क्या हुआ है? आप पढ़े-लिखे लोग अपनी जिंदगी का बीमा कराना तो नहीं भूलते पर जिंदगी कैसे जीना है भूल जाते हैं. और उधर दूसरे अनपढ़ लोगों को देखो, खाने-पीने पर ध्यान देते हैं. पॉलिसी की परवाह नहीं करते.’’
हम दोनों एक-दूसरे को देखने लगे. डॉक्टर साहब बोले,‘‘कितना पैसा आप हर साल प्रीमियम में भर देते हैं, पर ख़ुद के खाने-पीने आराम पर ज़रा भी ध्यान नहीं देते. बीमा एजेंट के कहते ही ज़माने भर के टेस्ट करा लेते हैं, पर रिपोर्ट के अनुसार दिनचर्या व्यवस्थित करना ज़रूरी है. इस बात पर कभी भी ध्यान नहीं देते. ख़ून की कमी आने पर भी बहुत हल्के लेते हैं, सोचते हैं यह गड़बड़ चलती रहती है. ख़ासकर महिलाएं घरेलू और कामकाजी दोनों ही. वे तमाम सुविधाएं परिवार को दे देंगी. बच्चों को, पति को, बुज़ुर्गों को जूस से लेकर भीगी बादाम, बनाना शेक, प्रोटीन पाउडर पता नहीं क्या-क्या… पर ख़ुद का क्या? ज़रा ध्यान नहीं. नतीजा क्या, कमज़ोरी, ख़ुद के प्रति ये लापरवाही धीर-धीरे बड़ी बीमारियां का रूप धारण कर लेती है. बहुत थक गई हूं, जल्दी थक जाती हूं. यह कहती रहती है. पर आराम कब कैसे करना है, क्या खाना-पीना है कभी नहीं सोचती. बच्चों के आते ही, पति के आते ही कहती है कि तुम थक गए होंगे. पर पूरे दिन ख़ुद को कामों से कितनी थकावट हुई है, हुई है या नहीं हुई है, यह भी पता नहीं लगने देती. डॉक्टर साहब बोले,‘‘आज सब आपकी चिंता कर रहे हैं, ध्यान रख रहे हैं, काश आप और ये सब पहले ही थोड़ा-बहुत ध्यान रख लेते.’’
मेरा मन बेचैनी की सीमाएं लांघ गया, मैंने ज़ोर से चिल्ला कर पूछा,‘‘क्या हुआ है मुझे?’’
‘‘कुछ नहीं, बीपी लो हो गया था और उसकी वजह से ही चक्कर आकर आप गिर गई थीं. बेहोश हो गईं. बहुत ज़्यादा थकान हो सकता है इसका कारण या आराम ना करना, खाने-पीने पर ध्यान ना देना, कुछ भी हो सकता है. बाक़ी सब टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल हैं.’’
‘‘और कोई बात तो नहीं?’’ सुधीर बोले.
डॉक्टर साहब ने कहा,‘‘बिल्कुल नहीं. पर आपको इनका ध्यान रखना चाहिए.’’
‘‘मैं तो दिनभर बाहर रहता हूं ऑफ़िस में, यह तो घर पर ही रहती है. पूरा घर, सब चीज़ें हाथ में ही रहती हैं. किसी बात की रोकटोक नहीं,’’ सुधीर ने कहा.
‘‘पैसा कमाना ही सब कुछ नहीं होता. जीवनसाथी का ख़्याल रखना भी ज़िम्मेदारी होती है. परिवार की ज़िम्मेदारी पूरी करते-करते महिलाएं ख़ुद भूल जाती हैं कि वह क्या चाहती हैं और कह भी नहीं पातीं. अच्छा लगा आपको यह चक्कर आया. आपको ख़ुद को और आपके परिवार को आपके जीवन की अहमियत समझ आई. मैंने सुबह नोटिस किया पूरा परिवार ही हर काम के लिए आप पर डिपेंड है. हर कोई अपने काम की व्यवस्था जुटाने में लगा हुआ था. तभी मैंने आपको जानबूझकर पूरे दिनभर हॉस्पिटल में रखा था ताकि आपको और आपके परिवार को आपके जीवन का मोल समझ आए. आप अपनी ज़िम्मेदारी को बहुत अच्छे से निभा रही होंगी. ख़ुद के प्रति लापरवाही! आपका होना और ना होना, बहुत डर लगा ना आज? मेरी बातों से, तो संभल जाएं, अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहिए, आप ठीक रहेंगे तो पूरा परिवार ठीक रहेगा. आप बचत करते हैं, भविष्य में होने वाली बीमारियों के लिए पैसा प्रीमियम के रूप में देते हैं, पर ऐसा हो ही ना इसके लिए उपाय व रोकथाम पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते. ऐसा चक्कर मैं तो बहुत अच्छा मानता हूं. ज़रूर से एक बार तो आना ही चाहिए, ताकि समय रहते सभी जाग जाएं और परिवार के लिए उनकी ख़ुशियां हमेशा बनी रहें. और जो स्वास्थ्य के प्रति हम छोटी-सी लापरवाही करते हैं, वह गंभीर बीमारी का रूप ना ले.’’

Illustration: Pinterest

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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