मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘यशोधरा’ की कविता ‘सखि वे मुझसे कह कर जाते’ की अगली कड़ी है कविता ‘एकांत में यशोधरा’. ज्ञान प्राप्ति के लिए पति को घर छोड़कर गए काफ़ी समय हो चुका है. यशोधरा और सिद्धार्थ का पुत्र राहुल बड़ा हो चुका है. वह अपनी माता से पिता के बारे में सवाल पूछने लगा है. राहुल के प्रश्नों के उत्तर देने में ख़ुद को असमर्थ पाती यशोधरा अपने पति को याद कर रही हैं.
आओ हो वनवासी!
अब गृह भार नहीं सह सकती
देव तुम्हारी दासी!!
राहुल पल कर जैसे तैसे,
करने लगा प्रश्न कुछ ऐसे,
मैं अबोध उत्तर दूं कैसे?
वह मेरा विश्वासी,
आओ हो वनवासी!
उसे बताऊं क्या तुम आओ,
मुक्ति-युक्ति मुझसे सुन जाओ
जन्म-मूल मातृत्व मिटाओ,
मिटे मरण-चौरासी!
आओ हो वनवासी!
सहे आज यह मान तितिक्षा,
क्षमा करो मेरी यह शिक्षा;
हमीं गृहस्थ जनों की भिक्षा,
पालेगी सन्यासी!
आओ हो वनवासी!
मुझको सोती छोड़ गए हो,
पीठ फेर मुंह मोड़ गए हो,
तुम्हीं जोड़कर तोड़ गए हो,
साधु विराग-विलासी!
आओ हो वनवासी!
जल में शतदल तुल्य सरसते
तुम घर रहते, हम न तरसते,
देखो, दो-दो मेघ बरसते
मैं प्यासी की प्यासी!
आओ हो वनवासी!
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