क्या आप जानते हैं, हाल ही में छपी एक कंडोम निर्मता और सप्लायर कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कंडोम के इस्तेमाल का प्रतिशत 5.6 आंका गया है. यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत देश एचआईवी के मरीज़ों के मामाले में दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है. वर्ष 2020 में हमारे यहां 1,01,000 अवांछित प्रेग्नेंसी के मामले दर्ज किए गए हैं. चलिए, ये तो आप जानते ही होंगे कि जनसंख्या के मामले में हम दुनिया में दूसरे पायदान पर है और फिर भी हम कंडोम्स के इस्तेमाल से हिचकिचाते हैं! भला क्यों? यहां जानिए इसके पीछे मौजूद कारण
आपको जानकर राहत मिलेगी कि कोरोना से पहले कंडोम्स ने इस दुनिया में ऑक्सिजन सिलेंडर्स से कहीं ज़्यादा जानें बचाई हैं! हाल ही में छपी एक कंडोम निर्मता और सप्लायर कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कंडोम के इस्तेमाल का प्रतिशत केवल 5.6 आंका गया है.
हालांकि इस बात पर बहस की गुंजाइश हो सकती है कि ये आंकड़े कितने सही हैं, लेकिन इस बात पर कोई विवाद शायद ही हो कि हम भारतीय, स्वाभाव से ही कंडोम्स का इस्तेमाल करने में हिचकते हैं, फिर चाहे हमारे ऐसा करने से हमारे जीवन के लिए ख़तरा ही क्यों न पैदा हो जाए.
कुछ और आंकड़ों पर डालिए नज़र
यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत देश एचआईवी के मरीज़ों के मामाले में दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है. वर्ष 2020 में हमारे यहां 1,01,000 अवांछित प्रेग्नेंसी के मामले दर्ज किए गए हैं.
जागरूकता की कमी से लेकर सेक्शुअल रिश्तों को कलंक की तरह देखे जानेवाले नज़रिए तक, इसके कई कारण हैं. सबसे बड़ी चुनौती तो इस बात की है कि हम सेक्स से संतृप्त समाज में रहे हैं, जहां एक क्लिक पर हज़ारों ऐसे फ़ोटो और वीडियो उपलब्ध हैं, जो सेक्स से भरे हुए हैं, बावजूद इसके लोगों के मन में यह बात बैठी हुई है कि सेक्स एक गंदी चीज़ है.और केवल इस एक धारणा की ही वजह से इतने युवा (तक़रीबन 70%), ख़ासतौर पर पुरुष, जिनकी उम्र 15 से 24 के बीच है वे ‘जोखिमभरे सेक्शुअल संबंध’ बनाते हैं. वे कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि उन्हें इस बात का डर होता है कि मेडिकल स्टोर से कंडोम ख़रीदते समय उन्हें वहां मौजूद लोगों द्वारा ‘जज’ किया जाएगा.
क्यों है ये हिचकिचाहट?
कंडोम ख़रीदने के लिए किसी आयु-प्रमाणपत्र या डॉक्टरी पर्चे की ज़रूरत तो नहीं होती, पर फिर भी लोग इसके इस्तेमाल से हिचकते क्यों हैं? क्योंकि बहुत से तरुण और युवा कंडोम ख़रीदने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं. और ऐसा इसलिए कि समाज और अधिकांश माता-पिता आज भी विवाह से पूर्व बनाए गए सेक्शुअल संबंधों को समाज के नियमों के विरुद्ध और ग़लत मानते हैं, इस सोच को अब बदला जाना चाहिए. कई युवा जो मेडिकल स्टोर से कंडोम ख़रीदने का ‘साहस’ जुटा लेते हैं, वो भी बेवजह के बहुत सारे सामान ख़रीदने के साथ कंडोम ख़रीदते हैं, ताकि शर्मिंदा न हों.
कंडोम के प्रभावी होने से जुड़ी भ्रामक जानकारियां भी एक कारण हैं, जिसकी वजह से लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते. हमारे देश में स्कूलों में सेक्शुऐलिटी एजुकेशन पिछले कुछ सालों से ही शुरू हुई है. इससे पहले वर्ष 2009 में सेक्स एजुकेशन को संसदीय समिति ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह ‘‘भारतीय संस्कृति के विरुद्ध’’ है.
और फिर ये कुछ अभियान, जैसे- केरल में ईसाई डॉक्टरों द्वारा कंडोम को अप्रभावी साबित करने का अभियान चलाया गया. बिना किसी नैतिक झिझक के कई ऐसे डॉक्टर्स हैं, जो वैटिकन के निर्देश पर, इस बात का दावा करते हैं कि कंडोम्स में बहुत ही छोटे छेद यानी माइक्रोस्कोपिक होल्स बनाए जाते हैं, जिससे इसे इस्तेमाल करने के बाद भी एड्स का वायरस आपके शरीर में पहुंच सकता है.
इस बारे में एक्स्पर्ट्स की राय
सच्चाई यह है कि यदि सही तरीक़े से इस्तेमाल किया जाए तो कंडोम अनचाही प्रेग्नेंसी और सेक्स के ज़रिए फैल सकनेवाली बीमारियों (सेक्शुअली ट्रास्मिटेड डिज़ीज़ेज़ या एसटीडीज़) से बचाने में 98 प्रतिशत तक कारगर रहता है.
पर जब वीवॉक्स क्लीनिक को लिखे अपने सवाल में किसी ने यह पूछा कि क्या कंडोम सेक्स या स्पर्श केआनंद में कोई कमी लाता है? और यह कैसे पता किया जाए कि किस साइज़ का कंडोम इस्तेमाल करना है? तो हमने यही सवाल वीवॉक्स एक्स्पर्ट और सेक्शुअल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ नारायण रेड्डी के सामने रख दिए.
डॉक्टर रेड्डी ने हमें बताया,‘‘यह सोच कि कंडोम्स सेक्शुअल आनंद में किसी भी तरह की कमी लाते हैं, मिथक है. कंडोम्स के इस्तेमाल का उद्देश्य है कि अनचाहे गर्भधारण और एसटीडीज़ को रोका जा सके. यदि सही तरीक़े से इस्तेमाल किया जाए तो कंडोम्स अपने इन दोनों चीज़ों में कारगर हैं.’’
उन्होंने आगे बताया,‘‘यह मानव स्वभाव है कि लोग ज़्यादा जोखिमभरे काम करते हैं. कंडोम उनकी सुरक्षा के लिए हैं. अब पीनिस के आकार को मापना न तो व्यावहारिक है और ना ही नैतिक माना जाता है. अत: इसे मापना बड़ा कठिन है इसलिए कंडोम का साइज़ अनुमान के आधार पर तैयार किया जाता है. पुरुषों के पीनिस की लंबाई और मोटाई का माप लेने के लिए यदि कोई अध्ययन किया भी जाए तो यह तभी किया जा सकता है, जब पीनिस उस तरह सीधा हो, जैसा कि यह सेक्शुअल इंटरकोर्स के दौरान होता है. पश्चिमी देशों में भी ऐसी स्टडीज़ में भाग लेनेवाले वॉलंटीयर्स की संख्या बेहद कम होती है. यही वजह है कि भारत में कंडोम निर्माण करनेवाली कंपनियों ने साइज़ के मामले में एक ही आकर के यानी वन-साइज़-फ़िट ऑल की नीति अपना रखी है.’’
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट
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