हाल ही के दिनों में फ़िल्में पुरानी घिसी-पिटी कहानियों से हटकर प्रयोगवादी कहानियों की तरफ बढ़ रही हैं, गहराइयां भी उसी तरह की प्रयोगवादी फ़िल्म है जो युवाओं के जीवन में चलती उथल-पुथल, प्यार, अलगाव, बचपन के धचके और उनसे व्यक्तित्व में बने गहरे घाव इन सभी मुद्दों को अपने आप में, अलग तरह की बुनावट के साथ समेटे हुए है. पर बावजूद इसके यह फ़िल्म आपको मनोरंजन या रिश्तों की गहराइयों तक नहीं ले जाती.
फ़िल्म: गहराइयां
ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म: ऐमाज़ॉन प्राइम
सितारे: दीपिका पादुकोन, सिद्धांत चतुर्वेदी, अनन्या पांडे, धैर्य कारवा और अन्य.
डायरेक्टर: शकुन
रन टाइम: 148 मिनट
रेटिंग: 2.5/5 स्टार
करन जौहर के प्रोडक्शन हाउस के तले बनी दीपिका की फ़िल्म गहराइयां को थिएटर के बंद होने से ऐमाज़ॉन प्राइम पर प्रदर्शित किया गया है. फ़िल्म के ट्रेलर देखने के बाद से ही फ़िल्म के बारे में उत्सुकता जाग उठी थी. दीपिका के बोल्ड दृश्यों के चलते भी यह फ़िल्म चर्चा में तो थी ही. कुल मिलाकर बहुत सारी बातों ने इसके प्रति उत्सुकता जगा दी थी.
हाल ही के दिनों में फ़िल्में पुरानी घिसी-पिटी कहानियों से हटकर प्रयोगवादी कहानियों की तरफ़ बढ़ रही हैं, गहराइयां भी उसी तरह की प्रयोगवादी फ़िल्म है जो युवाओं के जीवन में चलती उथल-पुथल, प्यार, अलगाव, बचपन के धचके और उनसे व्यक्तित्व में बने गहरे घाव इन सभी मुद्दों को अपने आप में, अलग तरह की बुनावट के साथ समेटे हुए है. रिश्तों के बारे में बात करते समय मैंने हमेशा कहा है कि बचपन के भयावह अनुभव सारे जीवन पर नकारात्मक छाप छोड़ते हैं, अभिभावकों के बीच उत्पन्न समस्याओं से जूझ रहे मासूम बच्चे अपने भावी जीवन में भी उन्हीं समस्याओं को अनुमानित करने के आदी हो जाते हैं, जिसके चलते उनके रिश्ते बेतरह प्रभावित होते हैं. यह फ़िल्म इस बात को बख़ूबी उभारती है.
इसके अलावा अक्सर रिश्ते में मिले एक धचके के घाव को किसी और तरीक़े से भरने की कोशिश भी आम होती है, जिसके चलते दैहिक आकर्षण को प्रेम का नाम देकर जीने की कोशिश की जाती है और वह मोहभंग के रूप में सामने आता है.
तो इसी तरह की उलझनों को समेटे हुए है यह फ़िल्म. दो चचेरी बहनें टिया और अलीशा जिनकी आपस में बहुत बनती थी, मगर उनके पिताओं के बीच विवाद के चलते दोनों एकदम अलग-अलग कर दी जाती हैं. टिया के हिस्से ढेर सारी संपत्ति आती है और अलीशा के हिस्से संघर्ष. अलीशा की मां आत्महत्या करती है और उसके लिए अलीशा अपने पिता को जिम्मेवार समझती है. करन के साथ लिव इन में रहती अलीशा, करन के ग़ैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार से निराश होकर टिया के बॉयफ्रेंड जेन की ओर आकर्षित हो जाती है. जेन ख़ुद भी मुश्क़िल बचपन से बाहर निकला है और अच्छे जीवन के ख़्वाब को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.
जेन अलीशा से प्रेम की बात कहता है, उसे योग सेंटर खोलने के लिए प्रायोजक भी दिलवाता है और टिया से रिश्ता ख़त्म करने का वादा करता है, मगर उसी समय उसके व्यापार में उथल-पुथल आ जाती है जिसके चलते उसे टिया से पैसे मांगने पड़ते हैं और रिश्ता पूर्ववत रखना पड़ता है. इधर अलीशा को पता चलता है कि वह गर्भवती है. उसका सेंटर भी सील हो जाता है. आपसी संवाद का अभाव और ढेर सारी ग़लतफ़हमियों के बीच अनायास अलीशा के जीवन में झंझावात आ जाता है.
यदि प्रयोगवादी नज़रिए से देखे तो कहानी अच्छी थी, मगर स्क्रीन प्ले काफ़ी बेहतर बन सकता था. एक रिश्ते की कमी की भरपाई के लिए दूसरे रिश्ते में केवल दैहिक आकर्षण में बंधने को प्रेम समझने की गलती का क्या हश्र हो सकता है, यह तो ठीक से समझ आता है, मगर कुछ बातें समझ से बाहर है. करन के साथ सात वर्षों से लिव इन में रहती अलीशा जेन के साथ इतनी लापरवाह हो जाती है कि गर्भवती हो जाए? अपने मन मुताबिक़ जीने वाली स्वतंत्र लड़की अचानक जेन को लेकर इतना असुरक्षित महसूस करने लगती है? जब शुरुआती दिनों में दोनों में अच्छी छनती है तो फिर एकदम संवादहीनता और अविश्वास कैसे उपजता है? अब इसका जवाब एक पंक्ति में भी दिया जा सकता है कि सब कुछ कभी एक सा नहीं रहता. समय के साथ इंसान बदलते हैं. मगर रिश्ता केवल शरीर के भरोसे नहीं पनपता, उसमें आपसी समझ का भी तो हिस्सा होता है.
जेन के साथ अलीशा याट पर जाती है, अलीशा को मारने की कोशिश में जेन चोट खाकर समुद्र में गिर जाता है, अलीशा याट लेकर वापस आ जाती है, मगर पुलिस न तो जेन के कॉल डिटेल्स जांचती है, न ही याट वापस कौन लाया, इसकी जांच होती है. जेन का पार्टनर जितेश पुलिस को रुपए खिलाता है और सभी लोग आराम से इसे आत्महत्या मान लेते हैं. यह बड़ा लूपहोल है जो समझ में नहीं आता.
फ़िल्म में एक ही गाली इतनी अधिक मात्रा में है कि सुनते-सुनते परेशानी होने लगती है. क्या मुम्बई-दिल्ली के युवा बिना गाली के ख़ुशी-दुःख कुछ भी प्रदर्शित नहीं कर पाते? साथ ही अंतरंग दृश्य भी बहुतायत में हैं, जिनकी इतनी भी ज़रूरत नहीं थी.
दीपिका के अभिनय में थोड़ा सुधार आया है. अनन्या पांडे एकदम होपलेस है, अभिनय न ही करे तो अच्छा होगा. सिद्धांत चतुर्वेदी, शाहिद कपूर की झलक देता है, अच्छा लगा है फ़िल्म में. धैर्य करवा भी अपनी भूमिका में ठीक लगे हैं. नसीरुद्दीन शाह के लिए जितना स्पेस था, वे निभा गए हैं. गीत एक-दो है, पार्श्व में है और मधुर हैं.
शकुन बत्रा के निर्देशन में थोड़ा और कसाव ज़रूरी लगा. याट के दृश्य, ऑफ़िस के दृश्य, टिया के साथ के दृश्य बहुत ही कृत्रिम लगे हैं. अलीबाग की ख़ूबसूरती को और बेहतरी से फ़िल्माया जा सकता था.
फ़िल्म में एक-दो संवाद याद रह गए. एक में अलीशा जेन से कहती है, टिया और मेरा बॉयफ्रेंड करन अमेरिका में साथ पढ़े हैं और मैं अपने बॉयफ्रेंड को टिया के माध्यम से ज्यादा जानती हूं… यह एक ऐसा कथन है, जो रिश्ते का खोखलापन साफ़ दर्शाता है. इसी तरह एक संवाद है, इतने सालों से साथ हैं, अब क्या अलग होना. अरे इतने सालों से यह सब सह रहे हो, इसीलिए अलग हो जाना चाहिए.
रिश्ते अपने आप में पहेली हैं. प्रेम या तो होता है या नहीं. दैहिक आकर्षण को प्रेम के खांचे में डालना और फिर अनंत अपेक्षाएं करना सिवाय मूर्खता के कुछ नहीं. दुख यही है कि हमारे यहां हज़ारों रिश्ते, हज़ारों शादियां इसी तरह से टिकी हैं, जहां देह है, प्रेम ग़ायब है. साथ बने रहना ज़िद है, मजबूरी है या समाज की रवायत है, जिसे पूरा करना ही है. रिश्ते को लेकर हमारे क्या अनुभव है, हमारी क्या समझ है, इस पर रिश्ता निर्भर करता है. विखंडित रिश्तों को ढोते माता-पिता के साथ पले बच्चे ख़ुद भी रिश्तों में हमेशा अविश्वास के शिकार होते हैं. इसीलिए यह समझना होगा कि यदि निभाने की शिद्दत नहीं है तो रिश्ते मत बनाइए और यदि पैरेंटिंग की समझ नहीं है तो बच्चे पैदा मत कीजिए.
बहरहाल यदि ख़ाली हैं, नया देखना चाहते हैं और थोड़े लूपहोल बर्दाश्त कर सकते हैं, गालियों भरी भाषा और ढेर सारे अति अंतरंग दृश्य देखने की सहजता है तो फ़िल्म देखिए, अन्यथा गहराइयां दिल की गहराई को छूने में नाकाम ही रही है. न भी देखी तो कुछ घटने वाला नहीं है.
फ़ोटो: गूगल