घड़ी और समय का क्या नाता है? कवि विनय कुमार की यह कविता बेहद संजीदगी और सरलता से समझाती है.
एक
जब घड़ियां ईजाद नहीं हुई थीं
तब भी था समय
और ख़ूब था
अब घड़ियां ही घड़ियां हैं
और एक-एक पल का हिसाब भी
मगर कौन देखता है
किसके पास है समय!
दो
घड़ी ख़राब है
मगर समय इतना अच्छा
कि घड़ीसाज़ तक जाने की फ़ुर्सत नहीं
वे झटके से देखते हैं घड़ी
जो जाने कब से बंद पड़ी
और कॉफ़ी का आख़िरी सिप लेकर कहते हैं
अब मुझे चलना चाहिए
मीटिंग के लिए देर हो रही है!
तीन
घड़ी को नहीं
समय को देखो
जिसकी तर्जनी नंगे खंजर की तरह चमक रही है
और अनामिका
एक तनी हुई पिस्तौल के घोड़े पर
बुरे वक़्त को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि आपकी कलाई पर बंधी घड़ी
कितनी पाबंद
कितनी ख़ूबसूरत
और कितनी महंगी है!
चार
कैसी घड़ी है यह
इसमें सेकंड की सुई तक नहीं
जबकि दुनिया हर पल बदल रही है
दादा जी
यह नया फ़ैशन है
अगर यह फ़ैशन है
तो क्यों है
दादा जी
फ़ैशन की वजह नहीं होती
कोई भी कार्य अकारण नहीं होता मेरे बच्चे
कोई है जो हमारा ध्यान
लम्हों से हटाना चाहता है!
कवि: विनय कुमार
कविता संग्रह: मॉल में कबूतर
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
Illustration: Pinterest