छोटी कविताओं में गंभीर बातें कह जाने का हुनर रखने वाले हमारे समय के जाने-माने कवि नरेश सक्सेना की यह कविता विपरीत परिस्थितियों में भी आशा और साहस का दामन थामे रहने की बात कहती है.
जितनी पत्तियां हैं
उतने दुख हैं वृक्ष के
जितनी शाखें हैं फल हैं उतनी आशंकाएं
जितनी गहरी छाया है
यातना है उतनी गहरी
जितनी गहरी जड़ें हैं
जितनी गहराई तक उखड़ना है
जितनी ऊंचाई है
उतने ऊंचे होने हैं आघात
बीज फिर भी क्यों होना चाहते हैं वृक्ष
मनुष्यों की तरह शायद नहीं होते वृक्ष
बीजों को वे अपनी बुरी स्मृतियां नहीं देते
उन्हें वे सिर्फ़ फलों की फूलों की रंगों की ख़ुशबुओं की
मौसमों और चीड़ियों की स्मृतियां ही देते हैं
दुखद स्मृतियों से उन्हें रखते हैं मुक्त
घृणा और हिंसा से भरे इस समय में
पौधों को सींचते हुए
करता हूं कामना उस साहस की
जिसके साथ मिट्टी में कर सकूं प्रवेश
एक बीज की तरह
पुस्तक: समुद्र पर हो रही है बारिश, राजकमल प्रकाशन
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट