• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब नई कहानियां

गर्मियों की एक दोपहर: दीप्ति मित्तल की लघुकथा

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
June 26, 2022
in नई कहानियां, बुक क्लब
A A
गर्मियों की एक दोपहर: दीप्ति मित्तल की लघुकथा
Share on FacebookShare on Twitter

जैसे-जैसे पुराना समय बीत रहा है, कई बातों में बदलाव आ रहा है. नई चीज़ों की अच्छाई और बुराई के बीच कई पुरानी रवायतें, पुराने समय के मानवता के प्रति नेह बंधन नहीं बदले हैं. और यह बात बेहद सुखद है, ये बताती हुई यह लघुकथा आपको ज़रूर पसंद आएगी.

 

सत्तर साल के रिक्शाचालक जुम्मन मियां ने भरी दोपहरी में लाला घनश्यामदास को क़स्बे के बस अड्डे से बैठाया और पांच किलोमीटर रिक्शा चलाकर, उनकी कोठी तक छोड़ा. वैसे तो क़स्बे में डीज़ल वाले ओटोरिक्शा भी चलने लगे थे, मगर उनके वाजिब किराए को भी लाला ‘भारी लूट’ का नाम दिया करते थे जिस वजह से उनके ख़िलाफ़ असहयोग आंदोलन किए बैठे थे. उन्हें तो हिलता-डोलता, हिचकोले खाता तिपहिया रिक्शा ही ज़्यादा भाता था और ऐसी ही सवारियों के बल पर बुढ़ापे में भी जुम्मन मियां का घर चल जाया करता था.

इन्हें भीपढ़ें

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024

लाला रिक्शा का किराया देकर अपनी कोठी में दाखिल हो चुके थे, मगर जुम्मन मियां चेहरे से टपकता पसीना पोछते, भीगी कमीज़ पहने वहीं खड़े थे. भीषण गर्मी और प्यास के चलते उनकी दोबारा रिक्शा खींचने की हिम्मत नहीं हो रही थी. नज़रें गली में इधर-उधर मुआयना कर रही थी ‘काश! कोई नल, हैंडपम्प, प्याऊ, मिल जाए…’ मगर कुछ नहीं था.

प्यासे बेहाल जुम्मन मियां ने दो घड़ी उन बीते दिनों को याद किया जब क़स्बे में जगह जगह पर धर्मार्थ प्याऊ खुले हुए थे. राहगीरों के लिए लाल गीले कपड़े से बांधकर बड़े बड़े मटके रखे जाते थे और किसी प्यासे को पानी पिलाते हुए पानी पिलाने वाले के चेहरे पर ऐसे भाव जगते थे जैसे वो प्यासे पर नहीं बल्कि प्यासा उस पर अहसान कर रहा हो, उसे पुण्य कमाने का सुनहरा मौक़ा दे रहा हो. मगर अब वो रस्में, वो रवायतें.. बाज़ार की रौनकों में ग़ायब हो चुकी थीं. पानी बोतलों में बंद होकर दुकानों पर मोल बिकने लगा था और जुम्मन मियां आज शाम की रोटियों के लिए जोड़ी जा रही थोड़ी-बहुत रकम पानी पर बर्बाद नहीं कर सकते थे.

प्यास के मारे जुम्मन मियां पर बेहोशी तारी होती जा रही थी. उनकी अकुलाई नज़रें लाला की कोठी के भीतर झांक मुआअना करने लगी. कोठी के भीतर बने बगीचे में पेड़-पौधे लहरा रहे थे. जुम्मन मियां को उम्मीद जगी शायद बगीचे में कोई नल लगा हो, वहां पीने को पानी मिल जाए. लाला फाटक बंद कर अंदर जा चुके थे. बाहर कोई नहीं था. वे सोच में पड़ गए किससे पूछें, क्या घंटी बजाएं? मगर हिम्मत नहीं हुई. आजकल क़स्बे का माहौल कुछ ऐसा बन पड़ा था कि ऐसा कुछ भी सोचते-करते घबराहट होती थी. डर लगता था, क्या पता किस बात का बतंगड़ बन जाए?

कोठी के बाहरी हिस्से में कोई आवाजाही नहीं थी. जुम्मन मियां से जब रुका ना गया तो धीरे से गेट खोला, अंदर आए और बगीचे में नज़र घुमाई. एक और नल लगा दिखाई दिया. वे दबे पांव उस ओर बढ़ चले. झुक कर नल खोलने ही वाले थे कि अंदर से लाला चिल्लाए, “अरे अरे नल पर कौन है? रुको तो…” जुम्मन मियां की रूह कांप गई. दिल सरकारी बस की गति से धड़धड़ा उठा. सोचने लगे, ‘आज तो खैर नहीं! ना जाने क्या क्या इल्ज़ाम लगेंगें? चोरी-चकारी का, सेंधमारी का… अब इस बुढ़ापे में ख़ुदा ये दिन भी दिखवाएगा? इससे अच्छा तो प्यासा ही मर जाता!’

लाला दौड़ कर बाहर आ गए और उन्हें नल खोलने से रोकने लगे, “अरे, उसे मत खोलना…”

जुम्मन मियां दम साधे खड़े हो गये, गालियों की बौछारों के इंतजार में. तभी पीछे से एक नौकर दौड़ा आया. हाथ में ठंडे शर्बत का लोटा और गिलास लेकर. लाला आगे बोलते जा रहे थे, “उसमें इस वक़्त बहुत गरम पानी आएगा मियां, पी नहीं पाओगे, लो ये ठंडा शर्बत पियो.”

जुम्मन मियां की हलकान हुई जान में जान आई. उन्होंने बेयक़ीनी के साथ कांपते हाथों से ग्लास थामा. उनका पसंदीदा लाल शर्बत था. लाला बोल रहे थे, “माफ़ करना भई! तुम इतनी गर्मी में मुझे छोड़ने आए और मैंने तुम्हें पानी को भी नहीं पूछा… कम्बख़्त बाथरूम का ऐसा प्रेशर लगा था, कि सीधा भाग गया वरना इस कोठी से गर्मियों में कोई यूं प्यासा नहीं जाता…’’ जुम्मन मियां के गले में तरावट आ चुकी थी और दिल में भी… क़स्बे में कुछ पुराने पेड़ों ने अभी भी जड़ें नहीं छोड़ी थी.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

Tags: fictionGramiyon ki ek dopaharshort storystoryगर्मियों की एक दोपहरफ़िक्शनलघुकथाशॉर्ट स्टोरीस्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा
बुक क्लब

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

September 9, 2024
लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता
कविताएं

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता

August 14, 2024
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता
कविताएं

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता

August 12, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.