पैरेंटिंग आसान ही कब थी? ये तो हमेशा ही मुश्क़िल रही है, आप अपने बच्चे को अपने समय के मानदंडों के हिसाब से बड़ा करना चाहते हैं और बच्चे अपने समय के हिसाब से बड़ा होना चाहते हैं. एक खींचतान सी बनी ही रहती है माता-पिता और बच्चों के बीच. लेकिन अमेरिका में हुई एक स्टडी में 66% पैरेंट्स ने माना है कि तकनीक के आने से, स्क्रीन, सोशल मीडिया, स्मार्ट फ़ोन के आने से पैरेंटिंग की चुनौतियां पिछले कुछ वर्षों की तुलना में अब बहुत बढ़ गई हैं. आइए, बात करते हैं इस अध्ययन के नतीजों पर.
यदि कहीं भी आप दो या तीन जोड़ी पैरेंट्स को आपस में बच्चों के बारे में बातचीत करता सुनेंगे तो इस बात की पूरी संभावना है कि वे अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर चिंतित मिलेंगे और इस पर किसी न किसी तरह की चर्चा ज़रूर करते मिलेंगे. वे एक-दूसरे से पूछते मिलेंगे कि आख़िर उन्हें अपने बच्चे को कितने समय के लिए स्क्रीन देखने की इजाज़त देनी चाहिए?
यूं तो इस बारे में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गैनाइज़ेशन ने पहले ही गाइडलाइन्स जारी कर रखी हैं, लेकिन यह पैन्डेमिक से पहले की बात है. और हम जिस अमेरिकन स्टडी की बात कर रहे हैं वो भी महामारी आने से पहले की है… कहने का मतलब ये कि इसके बाद तो बच्चों की स्कूलिंग भी ऑनलाइन ही हुई है यानी जो भी समय वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गैनाइज़ेशन ने बताया, बच्चों ने उससे कहीं ज़्यादा समय ही स्क्रीन पर बिताया होगा.
सर्वे सैंपल साइज़
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर सर्वे ने मार्च 2020 में 3640 ऐसे अमेरिकी पैरेंट्स को इस सर्वे में शामिल किया था, जिनका कम से कम एक बच्चा 18 वर्ष से कम उम्र का हो. इनमें से 66% पैरेंट्स का मानना था कि आज से 20 वर्ष पहले की तुलना में आज पैरेंटिंग काफ़ी चुनौतीभरी हो गई है. इन सभी ने विकसित होती टक्नोलॉजी को इसकी वजह ठहराया.
स्क्रीन टाइम को लेकर बढ़ी है चिंता
स्टडी में भाग लेने वाले 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के 71% पैरेंट्स को इस बात की चिंता है कि कहीं उनका बच्चा स्क्रीन पर ज़रूरत से ज़्यादा समय तो नहीं बिता रहा है? इस बात को लेकर 31% पैरेंट्स की चिंता गंभीर है और कुछ पैरेंट्स तो यह मान भी रहे हैं कि उनके बच्चे स्मार्टफ़ोन पर ज़रूरत से ज़्यादा समय बिताते हैं.
पैरेंट्स किससे मांग रहे हैं मदद?
हालांकि इनमें से 39% पैरेंट्स को लगता है कि वे आश्वस्त हैं कि उनके बच्चे ठीक-ठाक टाइम ही स्क्रीन पर बिताते हैं. वहीं 11 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के पैरेंट्स में से 61% ने माना कि स्क्रीन टाइम के बारे में उन्हें उनके डॉक्टर ने सलाह दी है, वहीं 5 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चों के 45% पैरेंट्स ने कहा कि उन्होंने स्क्रीन टाइम कम करने के लिए बच्चों के टीचर्स की मदद ली है. इनमें से 71% पैरेंट्स का मानना है कि स्मार्ट फ़ोन का लंबे समय तक इस्तेमाल करने वाले बच्चों को इससे फ़ायदे की जगह नुक़सान ही पहुंचेगा.
पैरेंट्स भी स्क्रीन पर बिताते हैं ज़्यादा समय
इन अभिभावकों में से 56% ने माना कि वे भी स्मार्टफ़ोन पर ज़रूरत से ज़्यादा समय बिताते हैं. जबकि कुछ पैरेंट्स ने यह भी माना कि अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए वे कभी-कभी फ़ोन से दूर भी रहते हैं. और जब उनसे यह पूछा गया कि क्या पैरेंटिंग पहले से कठिन हो गई है तो इसके जवाब में 68% पैरेंट्स इस बात से सहमत थे. इसके कारणों पर बात की गई तो 26% ने डिजिटल टेक्नोलॉजी को, 21% ने सोशल मीडिया को और 14% ने बहुत ही कम उम्र में बच्चों को इस तकनीक से रूबरू कराने को ज़िम्मेदार ठहराया.
तो आख़िर बच्चों का स्क्रीन टाइम कैसे कम किया जा सकता है?
• अपने बच्चों को उनका ख़ुद का स्मार्ट फ़ोन या टैबलेट उनके टीनएज में आने के बाद ही दिलाएं.
• कम्प्यूटर और टीवी को ऐसी जगहों पर रखें, जहां सभी बैठते हों, जैसे- लिविंग रूम में.
• घर में सभी के लिए तकनीक मुक्त समय यानी टेक-फ्री टाइम निर्धारित करें. फिर चाहे वो सप्ताह में एक ही दिन क्यों न हो.
• पैरेंट्स ख़ुद पर भी इस बात के लिए लगाम लगाएं कि वे ख़ुद भी स्क्रीन पर कम समय बिताएंगे.
• बच्चों को व्यस्त रखने के दूसरे तरीक़े ढूंढ़ें.
• तकनीक को तकनीक से जीतें. अपने डिवाइसेस में टर्न ऑफ़ अलार्म लगाएं, ताकि नियत समय पर वो आपके पूरे परिवार के स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए चेताएं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट