अदम गोंडवी आम आदमी के कवि थे. आवाम की तकलीफ़ हमेशा उनकी कलम का हिस्सा रही. अपनी कविताओं से उन्होंने सदा ही सत्ता को आईना दिखाया. यहां प्रस्तुत कविता में भी आपको इस बात की बानगी देखने मिलेगी. अद्भुत बात यह है कि यह कविता आज भी सामयिक है यानी उनके समय से आज तक कोई बदलाव आ सका है, यह कहना मुश्क़िल है.
हिन्दू या मुस्लिम के एहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए
हममें से कोई हूण कोई शक कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात अब उस बात को मत छेड़िए
ग़लतियां बाबार की थीं जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहां हिटलर हलाकू जार या चंगेज़ खां
मिट गए सब क़ौम की औकात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग मिलजुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़
दोस्त मेरे मज़हबी नग़्मात को मत छेड़िए
कविता संग्रह: समय से मुठभेड़
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट