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सही रवैय्या और मेहनत का जज़्बा है तो हिंदी में अपार अवसर हैं: इरा टाक

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
September 19, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
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सही रवैय्या और मेहनत का जज़्बा है तो हिंदी में अपार अवसर हैं: इरा टाक
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वे लेखिका हैं, कवयित्री हैं, पेंटर हैं, स्क्रिप्ट राइटर हैं, फ़िल्ममेकर हैं और इसके साथ-साथ एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने हिंदी लेखन के क्षेत्र में बतौर फ्रीलान्सर अपना करियर बहुत मेहनत से संवारा है. हिंदी किस तरह रोज़ी-रोटी में तब्दील हो सकती है, ये बात उनसे अच्छी तरह भला कौन बता सकता है? हिन्दी वाले लोग, हमारी इस साक्षात्कार श्रृंखला में आज मिलिए इरा टाक से.

राजस्थान के जयपुर की रहनेवाली इरा टाक हिंदी के क्षेत्र में अपने काम की वजह से पहचानी जाती हैं. वे बतौर फ्रीलान्सर काम करती हैं. उनकी दस वर्ष की रचात्मक यात्रा में अब तक उनके खाते में तीन काव्य संग्रह (अनछुआ ख्वाब, मेरे प्रिय, केनवस पर धूप), एक कहानी संग्रह (रात पहेली), दो उपन्यास (रिस्क@ इश्क़, मूर्ति), दो लाइफ़ लेसन बुक्स (लाइफ़ सूत्र -पासवर्ड फ़ॉर हैप्पिनेस, आर एक्स लव 365), एक ऑडियो नॉवेल (गुस्ताख इश्क़) और सात ऑडियो स्टोरीज़ दर्ज हैं. उन्होंने “आरोही” नाम के म्यूज़िकल प्ले के संवाद भी लिखे हैं और चार शॉर्ट फ़िल्म्स भी बनाई हैं (रेन्बो, ईवन द चाइल्ड नोज़, डब्लू टर्न, फ़्लर्टइंग मेनिया). उन्होंने दस सोलो आर्ट शोज़ किए हैं और अभी फ़िल्म पटकथा लेखन में सक्रिय हैं. तो आइए, इरा से बात करके जानते हैं हिंदी और हिंदी में अवसरों की उपलब्धता के बारे में.

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पेंटर, लेखिका, कवयित्री, स्क्रिप्ट राइटर, फ़िल्ममेकर, ऑडियोबुक राइटर, इतनी सारी चीज़ों को करने की आख़िर शुरुआत कैसे हुई?
मुझे लगता है क्षेत्र में आना मेरा प्रारब्ध था, वरना मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि मैं एक लेखक बनूंगी या एक चित्रकार बनूंगी या फिर जीवन में कभी फ़िल्में बनाऊंगी. मैंने सिविल की तैयारी की, फिर मास कम्युनिकेशन किया और उसके बाद मैंने कुछ महीने मीडिया में जॉब किया पर वह लाइफ़ मुझे रास नहीं आई. मेरे मन को शायद किसी और चीज़ की तलाश थी. हां, मुझे पेंटिंग्स बनाने का शौक़ था और बचपन से ही मैं अपनी डायरी लिखा करती थी, क्योंकि मैं अपने माता-पिता की इकलौती लड़की थी और मेरे पास मेरे मन की बात कहने के लिए बहुत लोग नहीं थे तो मैं अपनी सारी भड़ास सारे दुख-दर्द, सपने डायरी में लिख दिया करती थी. बीएससी करते हुए पर कुछ कविताएं भी लिखने लगी थी, लेकिन उनको ना कभी किसी को दिखाया ना कभी कहीं छपने भेजा.
वर्ष 2011 के आसपास मैंने फ़ेसबुक जॉइन किया तो वहां कुछ अपनी बनाई हुई पेंटिंग्स अपलोड कर दीं और कभी-कभी वहां पर अपनी कुछ कविताएं भी डालने लगी. अगस्त 2011 में मेरे पास एक अमेरिकन रॉबर्ट कॉलेला का मैसेज आया कि उनको मेरी पेंटिंग्स पसंद थीं और उन्होंने अपनी वेबसाइट पर लगाने के लिए मेरी कुछ पेंटिंग्स मांगीं. हफ़्तेभर बाद उनका मैसेज आया कि इनमें से एक पेंटिंग, उनकी कोई दोस्त ख़रीदना चाहती है. इस तरह मेरी पहली पेंटिंग 250 $ में न्यू यॉर्क में सेल हो गई. वहीं से मेरे प्रोफ़ेशनल आर्टिस्ट बनने की शुरुआत हुई मैंने 2012 में अपने पहली सोलो (शौक़िया!) आर्ट एग्ज़िबिशन की और वर्ष 2012 में ही मेरा पहला कविता–संग्रह “अनछुआ ख़्वाब” आया. बस, मैं कला के इस मार्ग पर लगातार चलती रही और नए रास्ते खुलते गए.

सृजन के इन सभी माध्यमों में से आपके दिल के सबसे क़रीब क्या है? जिसका आप बेतरह आनंद उठती हैं? इन सभी में से कौन-सी चीज़ आपको ज़्यादा कमर्शल फ़ायदा या सीधे कहूं तो ज़्यादा आय देती है?
वैसे तो मुझे लेखन, पेंटिंग, फ़ोटोग्रैफ़ी और फ़िल्म मेकिंग, सभी माध्यम बेहद पसंद हैं और जब भी मैं इनमें से कोई एक काम कर रही होती हूं तो उसमें डूब जाती हूं, लेकिन फिर भी यदि आप चुनाव करने कहें तो फ़िल्म मेकिंग मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है, क्योंकि इसमें बाक़ी सभी कलाएं समाहित हैं. अब यदि बात कमर्शल फ़ायदा या आय देने की करूं तो फ़िल्म लेखन और ऑडियो बुक्स ये दो ऐसी विधाएं हैं, जिनसे मुझे सबसे अधिक फ़ायदा हुआ है.

एक फ्रीलान्स आर्टिस्ट का जीवन कैसा होता है? सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक तीनों ही पहलुओं पर हमारे रीडर्स को बताएं.
एक शब्द में कहूं तो-अनिश्चित! मैं तो बाग़ी हूं, क्योंकि इस समाज में सर्वाइव करने के लिए बाग़ी होना पड़ता है, वरना आप वो कभी नहीं कर पाएंगे, जो करने के लिए बने हैं. क्रिएटिव होना एक अलग तरह की यात्रा है, जिसे आम लोग नहीं समझ पाते हैं. क्रिएटिव इन्सान अधिक संवेदनशील होता है. बाक़ी अगर आपका पार्टनर भी क्रिएटिव है तो जीवन आसान होता है, क्योंकि एक कलाकार को एक कलाकार ही समझ सकता है.
मुझे अपना जीवन और जो काम मैंने चुना है वो बहुत पसंद है, इससे मैंने नाम के साथ साथ लोगों का बहुत प्यार पाया है, यात्राएं की हैं, नई कहानियां इकट्ठी करती हूं. फ्रीलांस होने का लाभ ये है कि बहुत वक़्त मिल जाता, ताकि आप अपनी पसंद के काम कर सकें और नए काम भी सीख पाएं. हां, आर्थिक तौर पर ग्राफ़ ऊपर-नीचे ज़रूर होता है, पर उसे मैनेज किया जा सकता है. जब धन ज़्यादा हो तो अमीर और जब न हो तो फकीर! मैं हर हाल में आनंदित रहती हूं.

क्या आपको लगता है कि आज भी फ्रीलान्स राइटर्स या आर्टिस्ट को उनके हक़ से वंचित रह जाना पड़ता है?
हां, ये सच है कि हक़ मारने वाले बहुत हैं, पर आपको अपनी सीमाएं और हक़ पता होने चाहिए. अच्छे लोगों की भी कमी नहीं और बुरे लोगों से होते हुए भी अच्छे लोगों तक पहुंचा जा सकता है. यदि आप फ्रीलान्स काम कर रहे हैं तो फ्री में काम बिल्कुल मत कीजिए, जो ऑथेन्टिक होगा वो कभी आपसे फ्री में काम करवाएगा भी नहीं. दूसरी बात ये कि आपको अपने हुनर को बेचना भी आना चाहिए. ये सोशल मीडिया का दौर है तो अच्छे अवसरों तक पहुंचने के रास्ते भी आसान हुए हैं.

क्या आपको लगता है कि लेखन और इन कलाओं के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी आजीविका अच्छी तरह चला सकता है? यदि हां तो कैसे? यदि नहीं तो क्यों?
हां, बिल्कुल चला सकता है. बस, उसको अपनी आंखें और कान खुले रखने चाहिए. इस समय लेखन में अपार अवसर हैं – ऑडियो बुक्स, सेल्फ़ पब्लिशिंग, डिजिटल बुक्स, पॉडकास्ट, ओ टी टी, डिजिटल फ़िल्म्स वगैरह… जिनमें काम कर के अच्छा पैसा कमाया जा सकता है.
मुझे लगता है कि अगर आप में सही दिशा में सही रवैय्यै यानी ऐटिट्यूड के साथ मेहनत करने का जज़्बा हो तो कितनी भी भीड़ हो, अपनी जगह बनाई जा सकती है.

इस क्षेत्र में अपने संघर्ष के बारे में बताइए, ताकि यदि कोई युवा महिला/पुरुष इस क्षेत्र में आए तो तैयारी से आ सकें.
संघर्ष तो कभी ख़त्म नहीं होता. और मैं इसे संघर्ष के तौर पर नहीं, बल्कि अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलने की यात्रा मानती हूं. एक इम्तिहान ख़त्म तो दूसरा सामने तैयार खड़ा होता है. एक काम के बाद दूसरा काम ज़्यादा बड़ा होना चाहिए. ये एक निरंतर चलने वाली यात्रा है. इस क्षेत्र में आने से पहले ख़ुद को मानसिक रूप से मज़बूत बना लेना चाहिए, लेखन हो, कला हो या फ़िल्म लाइन हर क्षेत्र में लंबा स्ट्रगल और धीरज रखना पड़ता है इसलिए हिम्मत बनाए रखना ज़रूरी है. साथ ही, एजुकेशन पूरी होनी चाहिए, क्योंकि शिक्षा आपका आत्मविश्वास देने के साथ-साथ ज़रूरत पड़ने पर कुछ और रोज़गार अपनाने की भी सहूलियत देती है.

आप क्या सलाह देंगी यदि कोई आपकी तरह कला और साहित्य को ही अपना करियर बनाना चाहे तो?
अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरा दम लगा दीजिए फिर चाहे कोई आपके साथ हो या न हो! ख़ुद को अपडेट करते रहना भी बेहद ज़रूरी है. सकारात्मकता से काम करते रहिए, क्योंकि यही रास्ते बनाता है. एक काम से दूसरा काम, दूसरे से तीसरा, इस तरह एक-एक सीढ़ी चढ़नी होती है. आपको बता दूं कि इसका कोई और शॉर्ट कट नहीं है.

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शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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